उमय्यद परिवार या उमय्यद वंश, जिसका नाम उमय्या इब्न अब्द शम्स से निकला है। उमाय्या के महान-पोते मुआवियाह ने 661 ईस्वी में उमाय्याद खिलाफत की स्थापना की, और अपनी राजधानी दमिश्क , सीरिया को स्थानांतरित कर दी। मुअवियाह की शाखा जो मुअवियाह की थी, वह 684 में मुआविया द्वितीय के पदोन्नति के बाद शक्ति का अभ्यास करने के लिए बंद हो गई थी। और खिलाफत को मारवानिद शाखा में स्थानांतरित कर दिया गया था, जो कि खिलाफत पर शासन करना जारी रखा था और 750 में अब्बासी खलिफाओ द्वारा हत्या उमय्यद खलीफा कर दी जाती थी।। जिसके बाद अब्द अल-रहमान प्रथम नामित उमायद खलीफा ने नरसंहार से भाग कर इबेरियन प्रायद्वीप (अल-आँडालस) में कोर्डोबा खिलाफत स्थापित की और एक अमीर रूप शासन किया, जहां उन्होंने कॉर्डोबा शहर से एक स्वतंत्र अमीरात का शासन किया। उनके वंश ने कोर्डोबा के अमीरात पर शासन करना जारी रखा जो 11 वीं शताब्दी तक रहा।
सन् ६६१ में मदीना में मुआवियां और उसके साथियों द्वारा धोखे से हजरत अली राजियाल्लाहू अन्हु को शहीद करने के बाद दमिशक में उमय्यद राजवंश की स्थापना हुई। यह केवल राजवंश और उसके भौगोलिक केन्द्र का परिवर्तन ना था। यह परिवर्तत राजनीतिक और दर्शनशास्त्रगत, एवं धार्मिक दृष्टिकोण तथा सांस्कृतिक रुझान के संबंध में भी परिवर्तन था। इस प्रकार सन् ६६१ शायद इस्लाम की प्रथम शताब्दी का सबसे महत्त्वपूर्ण वर्ष था। इस परिवर्तत और नये कार्य-कलाप के दो नायक थे अली इब्न-अबी-तालिब तथा उमय्यद वंश या उमय्यद खिलाफत का संस्थापक मुआविया इब्न-अबी-सूफयान।[1]