उम्म हकीम बिन्त अल-हारिस: इस्लामी पैगंबर मुहम्मद की एक महिला साथी सहाबा थी। प्रमुख प्रतिद्वंद्वी से साथी बने इक्रिमा बिन अबू जहल की पत्नि थी उनके शहीद (इस्लाम) होने के बाद में इस्लाम के दूसरे खलीफा उमर की पत्नी थीं।जिनसे उन्हें फातिमा नाम की एक बेटी हुई।
कई इस्लाम के युद्धों में शरीक हुईं।
उहुद की लड़ाई: में वह इकरीमा और मक्का के अन्य कुरैशों के साथ थीं जो मुसलमानों के खिलाफ लड़े थे। युद्ध के मैदान में कुरैश महिलाओं के समूह का नेतृत्व करते समय उन्होंने अन्य महिलाओं के साथ मिलकर ड्रम बजाया।
मक्का पर विजय :630 ई. में, जब मुसलमानों ने मक्का पर कब्ज़ा कर लिया, तो उम्म हकीम अन्य कुरैशों के साथ इस्लाम में परिवर्तित हो गए। इसके बाद, उम्म हकीम ने अपने पति इकरीमा को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मना लिया। मक्का विजय के बड़े मुजरिम होते हुए भी पत्नी उम्मे हकीम के अनुरोध पर माफ़ किये गए।[1] ज़ईफ़ हदीस के मुताबिक इनका नया निकाह नहीं कराया गया पहले धर्म के निकाह (विवाह) को ही जारी माना गया।[2] [3][4]
मार्ज अल-सफ़र की लड़ाई: अबू सईद के मारे जाने के बाद, उम्म हकीम ने अकेले ही 634 में मार्ज अल-सफ़र की लड़ाई के दौरान एक पुल के पास एक तम्बू के खंभे से सात बीजान्टिन सैनिकों को मार डाला, जिसे अब दमिश्क के पास उम्म हकीम के पुल के रूप में जाना जाता है।[5]
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