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उम्मेद सागर बाँध राजस्थान के जोधपुर जिले का एक बाँध है। यह कायलाना झील के नजदीक है तथा शाहपुरा के लिए पानी की आपूर्ति करती है। इसका निर्माण महाराजा उम्मेद सिंह ने अपने शासन काल में सन 1933 ई. में करवाया था। बांध तत्कालीन चौपासनी जागीर में निर्मित हुआ था जो तत्कालीन जोधपुर राज्य के अधीन थी जो महान रत्न वल्लभाचार्य के वंशजों से संचालित थी। बांध में एक प्राचीन मंदिर श्री जी की बैठक थी जिसके पास भूमि पर पाल तक गायों का लीला चारा उगाने की व्यवस्था की जाती थी जिसकी जिम्मेदारी जरिए कैफियत / अनुबंध /आदेश तत्कालीन जागीर के हवलदार के अधीन थी, जिस सम्बन्ध में कैफियत जारी कर आदेश दिए जाते थे। बांध में बेरे कुएं ओर बावड़ी है जिनमें बागा बावड़ी, बैरा बागवाला, सुलिया, बैरा, जती बैरा,आदि स्थित है बांध के दक्षिण की पहाड़ी पर तिकोने पहाड़ है, पहाड़ पर छोटी गुफा में शिवलिंग त्रयंबकेश्वर की प्रतिमूर्ति, भेरूजी, त्रिकोणी माता देवी की पूजा स्थली है, उक्त स्थान पर बांध सहित जल में प्राचीन ठाकुर जी का कृष्ण मंदिर ओर पाल पर गोशाला, सूर्यास्त बिंदु स्थल, हनुमान मंदिर ओर धार्मिक स्थल स्थित है।[1] आज श्री नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथ जी की जो मूर्ति है वह पहले आगरा और ग्वालियर में थी जब औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया तो वहाँ के महंत इस दिव्य मूर्ति को लेकर वृंदावन से वाया जयपुर, मारवाड़ पहुंचे। तत्कालीन महाराजा ने श्रीनाथ जी को चौपासनी जागीर में रुकवाया। जो श्रीनाथ जी कृपा से जल मग्न होने लगा फिर श्री नाथ जी की मूर्ति की सुरक्षा का बीड़ा पाटोदी(बाड़मेर) ठाकुर ने उठाया और श्रीनाथ जी को पाटोदी ले पधारे। छ माह तक श्रीनाथ जी पाटोदी बिराजे। इस तरह श्रीनाथ जी का पाटोदी से भी बहुत गहरा संबंध है। जब बात लीक हो गई तो महंत जी ने मेवाड़ का रुख किया। कोठारिया के ठाकुर और महाराणा राजसिंह जी मेवाड़ ने अपने प्राणों पर खेल कर श्रीनाथ जी को नाथद्वारा में स्थापित कर दिया। माना जाता है कि प्रतिमा ले जाते हुए रथ, यात्रा करते समय मेवाड़ के सिहाड़ गांव में कीचड़ में फंस गया था, और इसलिए मूर्ति की स्थापना मेवाड़ के तत्कालीन राणा की अनुमति के साथ एक मंदिर में की गई थी। धार्मिक मिथकों के अनुसार, नाथद्वारा में मंदिर का निर्माण 17 वीं शताब्दी में श्रीनाथजी द्वारा स्वयं चिन्हित किए गए स्थान पर किया गया था।
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