ऋषभदेव | |
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प्रथम तीर्थंकर | |
ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा, गोलाकोट, मध्य प्रदेश | |
विवरण | |
अन्य नाम | आदिनाथ, ऋषभनाथ, वृषभनाथ |
शिक्षाएं | अहिंसा, अपरिग्रह, असि, मसि,कृषि, विद्या, वाणिज्य, आयुर्वेद, युद्धकला, शस्त्रविद्या |
पूर्व तीर्थंकर | भूतकाल चौबीसी के अनंतवीर्य भगवान |
अगले तीर्थंकर | अजितनाथ |
गृहस्थ जीवन | |
वंश | इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय |
पिता | नाभिराय |
माता | मरूदेवी |
पुत्र | भरत चक्रवर्ती, बाहुबली और वृषभसेन,अनन्तविजय,अनन्तवीर्य आदि 98 पुत्र |
पुत्री | ब्राह्मी और सुंदरी |
पंच कल्याणक | |
च्यवन स्थान | सर्वार्थ सिद्धि विमान |
जन्म कल्याणक | चैत्र कृष्ण नवमी (तीर्थंकर दिवस) |
जन्म स्थान | अयोध्या |
दीक्षा कल्याणक | चैत्र कृष्ण नवमी |
दीक्षा स्थान | सिद्धार्थकवन में वट वृक्ष के नीचे |
केवल ज्ञान कल्याणक | फाल्गुन कृष्ण एकादशी |
केवल ज्ञान स्थान | सहेतुक वन अयोध्या |
मोक्ष | माघ कृष्ण चतुर्दशी |
मोक्ष स्थान | अष्टापद/कैलाश पर्वत |
लक्षण | |
रंग | स्वर्ण |
ऊंचाई | ५०० धनुष (१५०० मीटर) |
आयु | ८,४००,००० पूर्व (५९२.७०४ × १०१८ वर्ष)[1][2][3] |
वृक्ष | दीक्षा वट वृक्ष के नीचे |
शासक देव | |
यक्ष | गोमुख देव |
यक्षिणी | चक्रेश्वरी |
गणधर | |
प्रथम गणधर | वृषभसेन |
गणधरों की संख्य | चौरासी 84 |
भगवान ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं।[4] उन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान हुंडा अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर हैं।
तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर के पांच कल्याणक होते हैं।
जैन पुराणों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज और महारानी मरुदेवी के पुत्र भगवान ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्ण नवमी को अयोध्या में एक इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ था।[5][6][7][8]वह वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर थे। भगवान ऋषभदेव का विवाह नन्दा और सुनन्दा से हुआ। ऋषभदेव के 100 पुत्र और दो पुत्रियाँ थी।[9][10] उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े एवं प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। दूसरे पुत्र बाहुबली भी एक महान राजा एवं कामदेव पद से बिभूषित थे। इनके आलावा ऋषभदेव के वृषभसेन, अनन्तविजय, अनन्तवीर्य, अच्युत, वीर, वरवीर आदि 98 पुत्र तथा ब्राम्ही और सुन्दरी नामक दो पुत्रियां भी हुई, जिनको ऋषभदेव ने सर्वप्रथम युग के आरम्भ में क्रमश: लिपिविद्या (अक्षरविद्या) और अंकविद्या का ज्ञान दिया।[11][12] बाहुबली और सुंदरी की माता का नाम सुनंदा था। भरत चक्रवर्ती, ब्राह्मी और अन्य 98 पुत्रों की माता का नाम नन्दा था। ऋषभदेव भगवान की आयु 84 लाख पूर्व की थी जिसमें से 20 लाख पूर्व कुमार अवस्था में व्यतीत हुआ और 63 लाख पूर्व राजा की तरह|[13]
जैन पुराण साहित्य में अहिंसा, अस्तेय,अचौर्य,ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प और कला का उपदेश ऋषभदेव जी ने दिया।
जैन ग्रंथो के अनुसार लगभग 1,000 वर्षो तक तप करने के पश्चात् ऋषभदेव को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। और निर्वाण मोक्ष की प्राप्ति कैलाश पर्वत से हुई थी। भगवान ऋषभदेव के समवशरण में निम्नलिखित व्रती थे :[14]
भगवान ऋषभदेव जी की एक ८४ फुट की विशाल प्रतिमा भारत में मध्य प्रदेश राज्य के बड़वानी जिले में बावनगजा नामक स्थान पर है और मांगीतुंगी (महाराष्ट्र ) में भी भगवान ऋषभदेव की 108 फुट की विशाल प्रतिमा है। उदयपुर जिले के एक प्रसिद्ध शहर का नाम भी "ऋषभदेव" है जो भगवान ऋषभदेव के नाम पर ऋषभदेव पड़ा। इस ऋषभदेव शहर में भगवान ऋषभदेव का एक विशाल जैन मंदिर तीर्थ क्षेत्र विद्यमान हैं । भगवान आदिनाथ ऋषभदेव की विशाल पद्मासन प्रतिमा मूलनायक के रूप में सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर जिला दमोह में एक विशाल नागौरी शैली में निर्मित लाल पाषाण के मंदिर में विराजमान है इस प्रतिमा को बड़े बाबा के नाम से जाना जाता है।
भारत में अनेकों स्थान पर ऋषभनाथ भगवान के जिनालय विद्यमान है इनमे कुछ अति प्राचीन है
कुछ प्राचीन मंदिरों के नाम आदिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र चांदखेड़ी खानपुर राजस्थान, दिगंबर जैन दर्शनोदय अतिशय क्षेत्र थूबोनजी जिला अशोकनगर मध्य प्रदेश, दिगंबर जैन सर्वोदय तीर्थ क्षेत्र अमरकंटक