कल्होड़ा राज ڪلهوڙا راڄ سلسله ڪلهوڙا | |||||
राजशाही | |||||
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ध्वज | |||||
राजधानी | ख़ुदाबाद (१७०१-१७३६) हैदराबाद (१७६८-१७८३) | ||||
भाषाएँ | फ़ारसी (सरकारी व दरबारी भाषा) सिन्धी (बाद में) | ||||
धार्मिक समूह | इस्लाम-सुन्नी (१७०१–१७८२) | ||||
शासन | पूर्ण बादशाही | ||||
मियाँ | |||||
- | १७०१-१७१९ | यार मुहम्मद कल्होड़ो (प्रथम) | |||
- | १७७६-१७८२ | अब्दुल कल्होड़ो (अंतिम) | |||
ऐतिहासिक युग | आरम्भिक आधुनिक | ||||
- | स्थापित | १७०१ | |||
- | हलानी का युद्ध | १७८२ | |||
आज इन देशों का हिस्सा है: | ![]() | ||||
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कल्होड़ा राजवंश (सिन्धी: ڪلهوڙا راڄ, कल्होड़ा राज; या سلسله ڪلهوڙا, सिलसिला कल्होड़ा) सिन्ध और आधुनिक पाकिस्तान के कुछ अन्य हिस्सों पर लगभग एक शताब्दी तक शासन करने वाला एक राजवंश था।
कल्होड़ा राजवंश की स्थापना १७वीं सदी के अंतिम दौर में कल्होड़ो क़बीले के सरदार मियाँ नासिर मुहम्मद कल्होड़ो (१६५७-१६९२) ने की थी। उनके पुत्र मियाँ दीन मुहम्मद कल्होड़ो ने मुग़ल सल्तनत के ख़िलाफ़ कई जतन किये। उनके बाद उनके अपने पुत्र मियाँ यार मुहम्मद कल्होड़ो १७०१ में सिन्ध के शासक बनने में सफल हो गए और मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने उन्हें स्थानीय अधिकार सौंपते हुए उन्हें 'ख़ुदायार ख़ान' का राजसी नाम दिया। इनके बाद १७३६ में मियाँ नूर मुहम्मद कल्होड़ो को तब के मुग़ल शासक मुहम्मद शाह ने 'सिन्ध का कल्होड़ा नवाब' कहलाने का अधिकार दिया।
१७३९ में जब ईरान के राजा नादिर शाह ने भारत पर हमला किया तो कल्होड़ा शक्ति कम हुई। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में तब के नवाब मियाँ ग़ुलाम शाह कल्होड़ो ने अफ़ग़ान राजा अहमद शाह दुर्रानी को मराठा साम्राज्य को हराने में सहायता की। इसके बाद अहमद शाह ने उत्तर भारत में मुग़ल ताक़त फिर से बहाल कर दी। १७६२ में इन्ही ग़ुलाम शाह कल्होड़ो ने कच्छ के राव के विरुद्ध अभियान चलाया जो उस समय मराठों के मित्रपक्ष में थे।[1]
बलोच मूल के लेग़ारी समुदाय का तालपूर नामक क़बीला कल्होड़ो के अधीन हुआ करता था। लेकिन १८वीं सदी के अन्त में तालपूरों के अमीर (सरदार) बग़ावत करके कल्होड़ो के ख़िलाफ़ खड़े हो गए। १७८३ में हलानी के युद्ध में तालपूरों ने मियाँ अब्दुल नबी कल्होड़ो को परास्त करके सिन्ध की सत्ता छीन ली और कल्होड़ो का पतन हो गया।[2]
कल्होड़ो राजकाल सिन्ध में सिन्धी साहित्य, संस्कृति और कला का एक सुनहरा दौर माना जाता है। उनके काल में सिन्ध में कई नहरें भी खोदी गई जिस से कृषि को बहुत मदद मिली। सिन्ध के प्रसिद्ध हैदराबाद शहर की स्थापना भी कल्होड़ा राज ने एक प्राचीन मौर्य साम्राज्य के ज़माने के नेरूनकोट नामक गाँव के खंडहर-स्थल पर करी। वर्तमानकाल में हैदराबाद कराची के बाद सिन्ध का दूसरा सबसे बड़ा नगर है।[2][3]