पर एक श्रृंखला का भाग |
जोरोएस्ट्रिनिइजम |
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अतार (अग्नि), जोरोस्ट्रियानिम का प्राथमिक चिह्न |
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Divine entities |
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क़िस्सा-ए-संजान (फ़ारसी: قصه سنجان, गुजराती: કિસે સનજાન/કિસ્સા-એ-સંજાણ, अंग्रेज़ी: Qissa-i-Sanjan) भारत में पारसी शरणार्थियों के आरम्भिक काल का एक समकालीन ऐतिहासिक वर्णान है। इसकी घटनाएँ आज से हज़ार वर्ष से भी पहले गुज़री थी। क़िस्से का नाम गुजरात राज्य के वलसाड ज़िले के संजान शहर के नाम पर पड़ा था जो भारत में पारसियों के पहले आश्रयों में प्रमुख था। आधुनिक काल के कई पारसी इस काव्य को अपने पूर्वजों की गाथा मानते हैं।[1][2][3]
क़िस्सा प्राचीन ख़ुरासान में शुरु होता है और यहाँ से प्रवसियों की गुजरात की यात्रा का बखान करता है। काव्य का पहला अध्याय सबसे लम्बा है और संजान में आतिश बेहराम (पारसी अग्निमंदिर) की स्थापना के साथ समाप्त होता है। बाद के अध्यायों में ईरान पर मुस्लिम आक्रमकों के शुरुआती हमलों को सफलतापूर्वक वापस धकेल देने और फिर बाद में रक्षा करने में असफलता और फिर भारत की ओर प्रवास का ब्योरा है। इस प्रस्थान से पहले ईरान के बूशहर में 15 वर्षों तक के ठहरने का भी उल्लेख है। अंत में ईरान से पवित्र अग्नि को संजान लाने और वहाँ स्थापित करने का वर्णन है। ब्योरे की समाप्ति पर बहमान काइकोबाद नामक पारसी पुजारी के हस्ताक्षर हैं।[4][5][6]