कामाक्षी अम्मन मन्दिर | |
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Kamakshi Amman Temple காஞ்சிபுரம் காமாட்சியம்மன் கோயில் | |
धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | कामाक्षी (पार्वती) |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | कांचीपुरम |
ज़िला | कांचीपुरम ज़िला |
राज्य | तमिलनाडु |
देश | भारत |
भौगोलिक निर्देशांक | 12°50′26″N 79°42′12″E / 12.840684°N 79.703238°Eनिर्देशांक: 12°50′26″N 79°42′12″E / 12.840684°N 79.703238°E |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | द्रविड़ वास्तुशिल्प |
निर्माता | पल्लव राजा |
कामाक्षी अम्मन मंदिर (Kamakshi Amman Temple) भारत के तमिल नाडु राज्य के कांचीपुरम तीर्थ-नगर में स्थित देवी त्रिपुर सुन्दरी रूप में देवी कामाक्षी को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। इसके साथ आदि गुरु शंकराचार्य का नाम भी जुड़ा है। यह मदुरई के मीनाक्षी मन्दिर, तिरुवनैकवल के अकिलन्देश्वरी मंदिर तथा वाराणसी के विशालाक्षी मन्दिर की तरह देवी पार्वती का मुख्य मन्दिर है। यहाँ पद्मासन में विराजमान देवी की भव्य मूर्ति है।[1]
कामाक्षी मंदिर को पल्लव राजाओं ने संभवतः छठी शताब्दी में बनवाया था। मंदिर के कई हिस्सों को पुनर्निर्मित कराया गया है, क्योंकि मूल संरचनाएं या तो प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गईं या फिर इतने समय तक खड़ी न रह सकीं। यह मंदिर, कांचीपुरम शहर के मध्य में स्थित है। यह श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। डेढ़ एकड़ में फैला ये मंदिर शक्ति के तीन सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। मदुरै और वाराणसी अन्य दो पवित्र स्थल हैं। कांचीपुरम के इस मंदिर, एकाम्बरेश्वर मंदिर और वरदराज पेरुमाल मंदिर को सामूहिक रूप से "मूमुर्तिवासम" कहा जाता है, यानि "त्रिमूर्तिवास" (तमिल भाषा में "मू" से तात्पर्य "तीन" है)।[2][3]
यह मंदिर कांचीपुरम के शिवकांची में स्थित है। कामाक्षी देवी मंदिर देश की 51 शक्ति पीठों में संमिलित है। मंदिर में कामाक्षी देवी की आकर्षक प्रतिमा है। यह भी कहा जाता है कि कांची में कामाक्षी, मदुरै में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्षी विराजमान हैं। मीनाक्षी और विशालाक्षी विवाहिता हैं। इष्टदेवी देवी कामाक्षी खड़ी मुद्रा में होने की बजाय बैठी हुई मुद्रा में हैं। देवी पद्मासन (योग मुद्रा) में बैठी हैं और दक्षिण-पूर्व की ओर देख रही हैं। कहा गया है कि:
मंदिर परिसर में गायत्री मंडपम भी है। कभी यहां चंपक का वृक्ष हुआ करता था। मां कामाक्षी के भव्य मंदिर में भगवती पार्वती का श्रीविग्रह है, जिसे कामाक्षीदेवी या कामकोटि भी कहते हैं। भारत के द्वादश प्रधान देवी-विग्रहों में से यह एक मंदिर है। इस मंदिर परिसर के अंदर चारदीवारी के चारों कोनों पर निर्माण कार्य किया गया है। एक कोने पर कमरे बने हैं तो दूसरे पर भोजनशाला, तीसरे पर हाथी स्टैंड और चौथे पर शिक्षण संस्थान बना है। कहा जाता है कि कामाक्षी देवी मंदिर में आदिशंकराचार्य की काफी आस्था थी। उन्होंने ही सबसे पहले मंदिर के महत्व से लोगों को परिचित कराया। परिसर में ही अन्नपूर्णा और शारदा देवी के मंदिर भी हैं।
यह भी कहा जाता है कि देवी कामाक्षी के नेत्र इतने सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गई। वास्तव में कामाक्षी में मात्र कमनीयता ही नहीं, वरन कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्व भी है। यहां पर 'क' कार ब्रह्मा का, 'अ' कार विष्णु का और 'म' कार महेश्वर का प्रतीक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं। अग्नि उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है 'का' सरस्वती का, 'मां' महालक्ष्मी का प्रतीक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती तथा लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है।
खुलने का समय: मंदिर सुबह 5.30 बजे खुलता है और दोपहर 12 बजे बंद हो जाता है। फिर शाम को 4 बजे खुलता है और रात्रि 9 बजे बंद हो जाता है। ब्रह्मोत्सव और नवरात्रि मंदिर के खास त्योहार हैं।