कालीकृष्ण मित्रा | |
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जन्म |
१८२२ कोलकाता, पश्चिम बंगाल, ब्रिटिश भारत |
मौत |
२ अगस्त १८९१ |
पेशा | लेखक, समाजसेवी, शिक्षक |
कालीकृष्ण मित्रा (१८२२ - २ अगस्त १८९१) एक बंगाली समाजसेवी, शिक्षक और लेखक थे। उन्होंने भारत में पहली गैर-सरकारी कन्या विद्यालय की स्थापना की थी।[1]
कालीकृष्ण मित्रा का जन्म ब्रिटिश भारत के कोलकाता में शिबानारायण मित्रा के घर हुआ था। उन्होंने हरे स्कूल से शिक्षा प्राप्त की और प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन खराब आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी और बारसात (वर्तमान में उत्तर २४ परगना जिला ) में अपने मामा के घर में रहना शुरू किया।[1] उनके बड़े भाई एक उल्लेखनीय डॉक्टर, नबिनकृष्ण मित्रा थे।[2]
मित्रा बंगाल में प्रगतिशील शिक्षा आंदोलन और कई सामाजिक सुधार कार्यों के साथ जुड़े। १८४७ में उन्होंने अपने भाई नबिनकृष्ण मित्रा और शिक्षाविद् पीरी चरण सरकार की मदद से बारसात में एक निजी लड़कियों के लिए विद्यालय की स्थापना की।[3] यह किसी भी भारतीय द्वारा स्थापित कुलीन हिंदू परिवारों की लड़कियों के लिए पहला विद्यालय था।[4] शुरुआत में इसे केवल दो लड़कियों के साथ शुरू किया गया था। नबिनकृष्ण की बेटी कुन्तीबाला उनमें से एक हैं। हालाँकि इस तरह की गतिविधियों का हिन्दू ज़मींदारों और तत्कालीन रूढ़िवादी समाज ने कड़ा विरोध किया था, लेकिन ईश्वर चंद्र विद्यासागर और जॉन इलियट ड्रिंकवाटर बेथ्यून ने बंगाल में महिला शिक्षा के लिए मित्र के भारी प्रयास का समर्थन किया।[5] इसके बाद विद्यालय का नाम बदलकर कालीकृष्ण गर्ल्स हाई स्कूल कर दिया गया। यहां तक कि बेथ्यून को १९४९ में बेथ्यून स्कूल की स्थापना के लिए भी उनसे प्रेरणा मिली, जब वे शिक्षा परिषद के अध्यक्ष के रूप में निरीक्षण के लिए वहां गए।[6] मित्रा ने बारसात में वैज्ञानिक खेती, वृक्षारोपण और अनुसंधान के लिए १५० बीघा की एक कृषि फर्म का आयोजन किया। वह इस उद्देश्य के लिए इंग्लैंड से आधुनिक उपकरण लाए थे। उन्होंने होम्योपैथी दवा के प्रसार में भी योगदान दिया।[1][7]
मित्रा को अंग्रेजी साहित्य, दर्शन, योग, इतिहास और विज्ञान में ज्ञान था। उन्होंने बंगाली और अंग्रेजी पत्रिकाओं में विभिन्न लेख लिखे थे। मित्रा ने कुछ पुस्तकें लिखी थी जो नीचे बताई गयी है:[8]