कुण्डलिनी योग या लय योग का अर्थ है - चित्र मिलन मे लीन हो जाना, प्राण संचार करना, ब्रह्म के ज्ञान में लीन होना। कुण्डलिनी योग पर तन्त्र सम्प्रदाय और शाक्त सम्प्रदाय का अधिक प्रभाव रहा है।
चित्त का अपने स्वरूप विलीन होना या चित्त की निरूद्ध अवस्था लययोग के अन्तर्गत आता है। साधक के चित्त में जब चलते, बैठते, सोते और भोजन करते समय हर समय ब्रहम का ध्यान रहे - इसी को लययोग कहते हैं। योगत्वोपनिषद में इस प्रकार वर्णन है-