चित्र:Kenneth Waltz.jpg | |
व्यक्तिगत जानकारी | |
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जन्म | 8 जून 1924 एन आर्बर, मिशिगन |
मृत्यु | मई 12, 2013 न्यू यॉर्क शहर, न्यू यॉर्क | (उम्र 88)
वृत्तिक जानकारी | |
युग | Contemporary philosophy |
क्षेत्र | पश्चिमी दर्शन |
विचार सम्प्रदाय (स्कूल) | नवयथार्थवाद |
मुख्य विचार | अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, परमाणु सुरक्षा, अराजकता |
प्रमुख विचार | Structural realism, defensive realism |
प्रभाव
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केनेथ नील वाल्ट्ज (अंग्रेज़ी- Kenneth Neal Waltz, 8 जून, 1924- 12 मई, 2013)[1] एक अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक थे, जो कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कली और कोलंबिया विश्वविद्यालय दोनों में संकाय के सदस्य थे और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र के सबसे प्रमुख विद्वानों में से एक थे।[2] वे द्वितीय विश्व युद्ध और कोरियाई युद्ध दोनों में सैनिक रहे थे।[3]
वाल्ट्ज नीओरियलिज़्म (नवयथार्थवाद) अथवा संरचनात्मक यथार्थवाद (अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक सिद्धांत) के मूल संस्थापकों में से एक थे। बाद में वे रक्षात्मक नवयथार्थवाद के साथ जुड़ गए। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में वाल्ट्ज के सिद्धांतों पर बड़े पैमाने पर बहस हुई है। 1981 में, वाल्ट्ज ने एक मोनोग्राफ प्रकाशित किया जिसमें कहा गया था कि कुछ मामलों में परमाणु हथियारों के प्रसार से अंतर्राष्ट्रीय शांति की संभावना बढ़ सकती है।
राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र में वाल्ट्ज का सबसे महत्वपूर्ण योगदान नवयथार्थवाद (या संरचनात्मक यथार्थवाद, जैसा कि वे इसे कहते हैं) के निर्माण में है। यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का एक सिद्धांत जो यह बताता है कि संप्रभु राज्योंकी वार्ता को उनपर लगे गए दबावों द्वारा समझाया जा सकता है। ये दबाव अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की अराजकतापूर्ण संरचना के द्वारा लगाए जाते हैं, जो उनके पास मौजूद विकल्पों को सीमित करती है। इस प्रकार नवयथार्थवाद का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय संबंधों में आवर्ती पैटर्न को समझाना है, जैसे किस तरह स्पार्टा और एथेंस के बीच के संबंध कुछ महत्वपूर्ण तरीकों से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच के सम्बन्धों से मेल खाते हैं।
वाल्ट्ज अपनी पुस्तक में और अन्य जगहों पर बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि वे विदेश नीतिका कोई ऐसा सिद्धांत नहीं बना रहे हैं, जिसका उद्देश्य किसी राज्य विशेष के व्यवहार या कार्यों को एक विशिष्ट समय या अवधि के दौरान समझाना है। वाल्ट्ज के लिए, नवयथार्थवाद को दो शाखाओं में बांटा गया है, रक्षात्मक और आक्रामक नवयथार्थवाद। यद्यपि दोनों शाखाएं इस बात से सहमत हैं कि सिस्टम की संरचना वह है जो राज्यों को शक्ति के लिए प्रतिस्पर्धा करने का कारण बनती है, रक्षात्मक यथार्थवाद का मानना है कि अधिकांश राज्य यथास्थिति चाहते हैं और शक्ति संतुलन को बनाए रखने पर ही अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। संशोधनवादी राज्यों को ही ऐसे राज्य कहा जाता है जो संतुलन को बदलना चाहते हैं। वाल्ट्ज के विपरीत आक्रामक नवयथार्थवाद, जोर देकर यह कहता है कि राष्ट्र पड़ोसी राज्यों पर स्थानीय आधिपत्य चाहते हैं और प्रतिद्वंद्वी राज्यों के समक्ष स्थानीय संबंधों में अधिकार जताते हैं।
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