केरल अनूपझीलें या केरल बैकवॉटर्स भारत के दक्षिण में स्थित केरल राज्य में अरब सागर से सामांतर कुछ दूरी पर स्थित खारी अनूप झीलों और झीलों की एक शृंखला है। इसमें प्राकृतिक और कृत्रिम नहरों द्वारा जुड़ी हुई पाँच बड़ी झीलें हैं जिनमें ३८ नदियाँ जल लाती हैं। यह केरल की उत्तर-दक्षिण लम्बाई के लगभग आधे भाग पर विस्तृत है। केरल अनूपझीलें पश्चिमी घाट से उतरती हुई नदियों के नदीमुखों के सामने समुद्री लहरों व ज्वार-भाटा के प्रभाव से बने बाधा द्वीपों के पीछे बन गई हैं।
केरल अनूपझील क्षेत्र में नहरों, झीलों, नदियों और समुद्री क्षेत्रों पर विस्तृत ९०० किलोमीटर से अधिक जलमार्ग हैं।[1] यहाँ जल के किनारे कई गाँव और नगर बसे हुए हैं जहाँ से पर्यटक इन अनूपझीलों का आनंद लेने आते हैं।[2] भारत का राष्ट्रीय जलमार्ग ३ यहाँ कोल्लम से कोट्टापुरम तक २०५ किमी तय करता है और दक्षिणी केरल में तट के साथ-साथ समानांतर चलता है। यह माल-वहन और पर्यटन के लिये महत्वपूर्ण है।[3]
२०० वर्ग किमी क्षेत्रफल वाली अष्टमुडी झील कोल्लम के पास स्थित है और यह पर्यटकों द्वरा सबसे अधिक देखी जाने वाली झील है। इसके सम्बन्धित एक विस्तृत नहरों का जाल है जो पास के शहर में बिछी हुई हैं।[3]
उत्तर से दक्षिण क्रमानुसार इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण नदियाँ (और उनकी लम्बाई) इस प्रकार हैं: वालपट्टनम नदी (११० किमी), चलियार नदी (६९ किमी), कदलुंदिपुड़ा (२०९ किमी), चालाकुडी नदी (१३० किमी), पेरियर (२४४ किमी), पम्बा (१७६ किमी), अचनकोइल (१२८ किमी) और कल्लदायार (१२१ किमी)। इनके अतिरिक्त ३५ अन्य छोटी नदियाँ और झरने पश्चिमी घाट से उतरकर आते हैं जिनमें से कई पर नाविक परिवहन चलता है।
केरल अनूपझीलों का एक अनूठा पारिस्थितिक तंत्र है जहाँ नदियों का मीठा पानी अरब सागर के खारे पानी से मिलता है। कोल्लम में नीन्दाकारा के पास यहाँ एक बाँध बनाया गया है जिस से खारे समुद्री पानी को रोका जाता है ताकि मीठा पानी बचा रहे और सिंचाई के लिये प्रयोग किया हाता है।[3][4]
इसमें जलीय जीव जातियाँ पनपती हैं जिनमें केकड़े, मेढक, पंकलंघी, कई प्रकार के जलीय पक्षी (जैसे कि टर्न, किंगफिशर, डार्टर व जलकाक) और प्राणी (जैसे कि ऊदबिलाव और कछुआ) रहते हैं। ताड़, केतकी और कई पत्तेदार पौधे और झाड़ियाँ इन अनूपझीलों के किनारों को हराभरा रूप देती हैं।[4]