कोटपूतली-बहरोड़ कोटबहरोड़, राठक्षेत्र, साबी कांठा, कोट, बैराठ [1][2] | |
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Coordinates (कोट बहरोड़ जिला): 27°53′12″N 76°17′00″E / 27.8867°N 76.2834°Eनिर्देशांक: 27°53′12″N 76°17′00″E / 27.8867°N 76.2834°E | |
देश | ![]() |
राज्य | राजस्थान |
संभाग | जयपुर |
मुख्यालय | कोटपूतली |
तहसील | |
Time zone | भारतीय मानक समय (UTC+5:30) |
राजमार्ग | राष्ट्रीय राजमार्ग 48, ट्रांस हरियाणा द्रुतगति राजमार्ग , पनियाला-बड़ौदामेव द्रुतगति राजमार्ग, राजकीय राजमार्ग 14, नीमकाथाना-अलवर राजमार्ग |
Website | kotputlibehror.rajasthan.gov.in |
कोटपूतली-बहरोड़ जिला भारत के राजस्थान राज्य के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में स्थित सन 2023 में नवीन स्थापित 17 जिलों में से एक है। । [3] अलवर जिले और तत्कालीन जयपुर जिले से अलग की हुई आठ तहसीलों - कोटपूतली , बहरोड़ , नीमराणा , बानसूर , विराटनगर , माँढण , पावटा व नारायणपुर से बने इस जनपद की अधिकारिक स्थापना 7 अगस्त 2023 को हुई थी। बैराठ इस जिले के प्राचीनतम क्षेत्र में से है जिसका जिक्र पौराणिक कथाओं में कई जगह पर मिलता है, जो कभी मत्स्य साम्राज्य की राजधानी था एवं मौर्य वंश के सम्राट अशोक के नाम - प्रियदशी के बारे में भी इस जिले के भाब्रू में मिले शिलालेख से पता चलता है । इस जिले के एक बड़े क्षेत्र को आमतौर पर "राठ" के रूप में जाना जाता है जिसमें बहरोड़, नीमराणा, माँढण, बानसूर व मुण्डावर तहसीलें आती है जिसमे से मुण्डावर तहसील का अब नवगठित खैरथल-तिजारा जिले में विलय कर दिया गया । अन्य संदर्भ में इसे 'साबी-कांठा' भी कहा जाता है, अर्थात जो साबी नदी के तट के इर्द-र्गिद स्थित है। [4]
इस जिले में एक भी रेलवे स्टेशन नहीं है और इसके साथ हरियाणा के महेंद्रगढ़, रेवाड़ी जिले सीमा बनाते है
जिले का नाम जिले के दो सबसे बड़े शहरों - कोटपूतली और बहरोड़ के नामों के विलय से बनाया गया है। अन्यत्र इसके बड़े हिस्से को आमतौर पर "राठ क्षेत्र" के रूप में जाना जाता है। अन्य संदर्भों में इसे 'साबी-कांठा' भी कहा गया है । साबी नदी उत्तर की और बहते हुए इस जिले के बीच से निकलते हुए जिले को लगभग दो बराबर भागो में बाँटती है , पश्चिम छोर पर पावटा, कोटपूतली, बहरोड़ व नीमराणा तहसील स्थित है वहीं पूर्वी छोर पर बानसूर व मुण्डावर तहसील स्थित हैं ।[5]
आसमान में उन्मुक्त उड़ते हुए सारस जैसी आकृति वाले इस जिले की सीमाओं का तीन तरफ से प्राकृतिक रेखांकन अरावली पर्वत की श्रृंखलाएँ करती है जिनके आगोश में मौजूद उपजाऊ मैदानी इलाकों के बीचों बीच साबी नदी का बहाव है जो इन्ही पहाड़ियों से अपना जल एकत्र करती है और दिल्ली की ओर बहती है - लेकिन इसके जलगृह क्षेत्र में अत्यधिक पर्यावरण विरोधी गतिविधियों जैसे पेड़-पौधों की अत्यधिक कटाई, खनन के कारण आजकल यह नदी ज्यादातर सूखी ही रहती है । विराटनगर- भाब्रू की अरावली पहाड़ियाँ जिले की दक्षिण-पश्चिम सीमा की ओर जयपुर ग्रामीण जिले की सीमा निर्धारण करती है । इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व में जिले की बानसूर व नारायणपुर तहसीलों को चूना/पत्थर की पहाड़ियां अलवर जिले से अलग करती हैं वहीं पश्चिम में इसी अरावली श्रृंखला की पहाड़ियां जिले की शेखावाटी क्षेत्र से सीमा का रेखांकन करती हैं और थार रेगिस्तान से इस भू-भाग को बचाती हैं जिससे उपजाऊ कृषि भूमि को संरक्षित रहती है। अरावली श्रृंखला के उत्तरी छोर पर बसे इस जिले को ये पर्वत की श्रृंखलाएं राजस्थान के मुख्य भू-भाग से अलग करते हुए एक घाटी का रूप देती हैं जिसका मुंह दिल्ली की ओर खुलता है।
वैसे तो इस जिले में गैर संरक्षित वन क्षेत्र काफी हैं जैसे विराटनगर, भाब्रू , नीमराणा लेकिन अभमारणय मुख्य रुप से एक ही है जिसकी घोषणा सन् 2023 में हुई है - बुचारा राजकीय तेंदुआ अभ्यारण्य । इसके अलावा दक्षिण पूर्व सीमा पर सरिस्का राष्ट्रीय अभ्यारण्य मौजूद है । [7][8][9]
जिले में सीमित सतही जल संसाधनों, साबी नदी के बहाव क्षेत्र में गिरावट, और भूजल संसाधनों के अत्यधिक उपयोग के कारण पानी की कमी के मुद्दों का सामना करना पड़ता है। जिले की सीकर व जयपुर सीमा पर मौजूद अरावली पहाड़ियों में से निकलने वाली तीन सौ किलोमीटर लंबी साहिबी नदी /साबी नदी यहां की मुख्य और सबसे बड़ी नदी है। यह एक छोर से प्रवेश कर पूरे जिले को पार कर खैरथल जिले में मुण्डावर के पास प्रवेश करती है । यह एक अल्पकालिक, वर्षा आधारित नदी है जो हरियाणा और दिल्ली की ओर बहती है और दिल्ली में यमुना में मिल जाती है। इसकी सहायक सोता नदी एक अन्य प्रमुख नदी है जिसका बहरोड़ के सोतानाला में संगम होता है। नारायणपुर नाला बानसूर तहसील के उत्तर-पश्चिम की जल निकासी करता है और साहिबी में जाता है। बानसूर में बाबरिया बांध से सुरख नाला सोडावास में साहिबी में गिरता है । बानसूर से हाजीपुर या हरसोरा नाला मुंडावर तहसील के बीजवाड़ में साहिबी में मिलता है। अजबगढ़ नाला या काली नदी और प्रतापगढ़ नाला का उद्गम बानसूर और थानागाज़ी से होता है और जयपुर में बलदेवगढ़ के पास बाणगंगा धारा में बदल जाता है। बानसूर तहसील के पास तालवृक्ष में गर्म पानी के झरने मौजूद है।[10]
जिले में कोई प्राकृतिक या कृत्रिम बडी झील मौजूद नहीं है । सिर्फ एक दो बाँध है - बुचारा का बाँध , और बाबरिया बाँध । जलवायु शुष्क उपोष्ण कटिबंधीय है और अधिकतर वर्षा मुख्यतः चार माह के अंतराल में ही होती है । खनिज के रूप में मुख्यतः ग्रेनाइट और क्वार्टज के भंडार मौजूद हैं । मुख्यतः पेड - नीम, कीकर, खेजड़ी, ढोक, इत्यादि पाए जाते हैं । साबी नदी के आस पास झुंडे/लेमनग्रास काफी मात्रा में पायी जाती है।
प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष साहिबी नदी के किनारे मिलते आए हैं, इस नदी का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि यह मनुस्मृति में वर्णित ब्रह्मव्रत की दक्षिणी सीमा को यह नदी चिन्हित करती है, हालांकि शोधकर्ताओं में इस पर मतभेद हैं ।
यह जिला मत्स्य सांस्कृतिक क्षेत्र का हिस्सा है। जिले की विराटनगर तहसील का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मत्स्य साम्राज्य की राजधानी के रूप में मिलता है, ऐसा कहा जाता है कि इस शहर की स्थापना राजा किरट ने की थी, जहां पांडवों ने अपने 12 साल के निर्वासन को भेष बदलकर बिताया था। गोलाकार बौद्ध तीर्थ के सबसे पुराने साक्ष्य जिले के विराटनगर में पाए गए है।[11] बैराठ के आसपास का क्षेत्र मौर्य साम्राज्य में शामिल था, इसका प्रमाण इस स्थान पर लघु शिलालेख और भाबरू शिलालेख की खोज से मिलता है। मौर्य साम्राज्य के विघटन के बाद विदेशियों के आक्रमण और छोटी-छोटी रियासतों का विकास हुआ। बैराठ की खुदाई से प्राप्त मुद्रा से इंडो-ग्रीक शासन के स्पष्ट संकेत मिलते है।
सन् 1009 ई. में गजनी के महमूद ने नारायणपुर के राजा पर आक्रमण किया। राजा अपने राज्य की रक्षा में बहादुरी से लड़े लेकिन हार गए। सुल्तान मूर्तियों को तोड़ और लूट का माल लेकर गजनी लौट गया । इस युद्ध में नारायणपुर कस्बा पूरी तरह नष्ट हो गया, जो नारायणपुर कस्बा पहाड़ी के एकदम नीचे बसा हुआ था वहीं वर्तमान नारायणपुर कुछ दूर पर बसाया गया । इस बीच, तोमर और चौहान दो उभरती हुई शक्तियाँ थीं। तब रेवाडी और भिवानी के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र और इस जिले के कुछ हिस्से भदानका साम्राज्य में शामिल थे। जिनपाल (मृत्यु वि. 1295) की खरतरगच्छपट्टावली में विक्रम वर्ष 1239 तक पृथ्वीराज चौहान की मुख्य उपलब्धि के रूप में भदानकों की हार का उल्लेख है। चौहानों द्वारा भदानकों को उखाड़ फेंकना निर्णायक प्रतीत होता है। हालाँकि, 1192 ई. में तराइन की दूसरी लड़ाई के बाद चौहानों का अधिकार काफी हद तक कमजोर हो गया था। इसके बाद, इस क्षेत्र पर चौहानों की पकड़ ढीली हो गई और इस क्षेत्र पर काफी समय तक दिल्ली के सुल्तानों का कब्जा रहा जिसका नियंत्रण मुख्य रूप से नारनौल सूबा से होता था । अजमेर के पृथ्वीराज के वंशज पहले ही (लगभग 1070 ई.) राठ (अलवर जिले का उत्तर-पश्चिम क्षेत्र) नामक क्षेत्र में बस गए थे और नीमराणा के राजा उसके परिवार का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं।
मदन सिंह, जिन्हें आमतौर पर राव मदे चौहान के नाम से जाना जाता है ने मदनपुर गाँव की स्थापना की थी जिसे अब मुंडावर के नाम से जाना जाता है। समय के साथ बर्ड़ोद को भी उसके वंशजों ने हासिल कर लिया। फ़िरोज़ शाह ने राव झामा (राव हासा के पुत्र) को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया था लेकिन उन्होंने मौत को प्राथमिकता दी। हालाँकि, कहा जाता है कि राव झामा के पुत्र राव चांद ने संवत 1499 (1442 ई.) में इस्लाम धर्म अपना लिया था। इसके बाद विरोध स्वरूप राजदेव जो राव चांद के चाचा थे ने मुंडावर को छोड़ दिया और नीमराणा को अपनी की राजधानी के रूप में चुना। राव चांद के वंशजों ने बानसूर तक अपनी पकड़ बढ़ा ली। लेकिन उन्हें संवत 1560 (1503 ई.) में शेखावतों (जिनमें राव शेखा, राव सुजा और राव जगमाल सबसे महत्वपूर्ण थे) द्वारा बानसूर से निष्कासित कर दिया गया था। राव सुजाजी ने बसई को अपनी राजधानी बनाया जबकि जगमाल ने खुद को हाजीपुर में स्थापित किया। संवत 1594 (1537 ई.) में सुजाजी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र लूणकरण, रायमल, चांद और भेरुजी ने खेतड़ी, सीकर, खंडेला और शाहपुरा तक अपना अधिकार बढ़ा लिया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद आंतरिक मतभेदों ने छोटे सरदारों को सत्ता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया। भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने अलवर किले और निकटवर्ती कुछ क्षेत्र पर विजय प्राप्त की। लेकिन उनके पुत्र जवाहर सिंह, मोंडा-मंडोली की लड़ाई में जयपुर शासक से हार गए और अपने पिता द्वारा प्राप्त क्षेत्र खो दिया। मराठों ने तिजारा और किशनगढ़ पर कब्ज़ा कर लिया। 1775 ई. में नरुका परिवार के प्रताप सिंह ने अलवर किले का अधिग्रहण किया और अलवर राज्य की स्थापना की। और इस प्रकार जिले का एक मुख्य भाग अलवर राज्य का हिस्सा बना । [12][13]
इस प्रकार ब्रिटिश शासन से पहले इस पर मुगलों, मराठों और अंततः अलवर रियासत का शासन रहा है, जबकि जिले की कोटपूतली तहसील खेतड़ी रियासत के शासन के अधीन थी ।
नीमूचाना जनसंहार
अलवर राजा द्वारा लगान बढ़ाए जाने के विरोध में बानसूर के जागीदारों ने विद्रोह खड़ा किया जिसे अलवर के राजा ने क्रूरता पूर्वक कुचल दिया इसे नीमूचाना नरसंहार के रूप में जाना जाता है ।
वर्तमान कोटपूतली और बहरोड़ के क्षेत्रों में नए जिलों की मांग की जाती रही है। कारण बताया जाता है कि वर्तमान जिले की दूरी बहरोड़ से 60 किमी तथा नीमराना से 80 किमी तथा कोटपुतली से 100 किमी है। 2023 के बजट के दौरान राजस्थान विधान सभा ने नए 19 जिले बनाए जिनमें से एक कोटपुतली-बहरोड़ जिला था।
इस जिले में फैले विभिन्न औद्योगिक क्षेत्र राजस्थान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहलाते है - नीमराणा जापानी जोन में ईपीआईपी ( निर्यात आयात प्रोत्साहन क्षेत्र ) जोन जो जिले के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे अधिक योगदान देता है। कोटपूतली में एशिया का सबसे बड़ा सीमेंट का कारखाना मौजूद है और बहरोड़ में देश की सबसे बड़ी ग्रीनलैम प्लाईवुड इंडस्ट्री है। नीमराना में डाइकिन एसी, हैवेल्स, हीरो बाइक प्लांट, पारले-जी बिस्किट, रिचलाइट बिस्किट सहित 1500 छोटे-बड़े उद्योग हैं।
हालांकि लोगों के लिए मुख्यत: आय का स्त्रोत खेती है बहरोड़-नीमराना सरसों और गेहूं के उत्पादन में अग्रणी है। इसके अलावा यह कपास के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बैराठ अपने दर्शनीय प्राचीन स्थलों के कारण जाना जाता है । सिंचाई का मुख्य साधन जमीनी पानी है । क्षेत्र में कई मदिरा फैक्ट्रियां भी है पानी की समस्या में जिनका काफी बड़ा योगदान है। बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ जिले में प्रदूषित अपशिष्ठ , घरेलू अपशिष्ठ के डिस्पोजल की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है ।
बीजक की पहाड़ी पर स्थित ये बौद्ध परिसर सांस्कृतिक रूप से समृद्ध अतीत के प्रमाण हैं। इन्हें तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के समय में बनाया गया था, और उनके पास अशोक के दो लघु शिलालेख, बैराट और कलकत्ता-बैराट लघु शिलालेख पाए गए थे। यह सबसे पुराना गोलाकार बौद्ध मंदिर है और इसलिए बैराट मंदिर भारत की वास्तुकला की एक महत्वपूर्ण धरोहर है।[14]
इन शिलालेखों में सम्राट अशोक का उल्लेख प्रियदशी के रूप में किया गया है। ये भाब्रू पहाड़ियों के पास पाए गए लघु शिलालेख हैं जो अब एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता के संग्रहालय में स्थित हैं। इस शिलालेख की खोज कैप्टन बर्ट ने 1840 में की थी और इसे कलकत्ता में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया था इसलिए इसका नाम "कलकत्ता-बैराट" पड़ा जिसे भाबरा या भाब्रू शिलालेख भी कहा जाता है। इस शिलालेख में, अशोक को "पियादासी राजा मगधे" ("पियादासी, मगध का राजा") कहा गया है।[15]
नीमराणा किला परिसर सबसे महत्वपूर्ण लैंडमार्क है जिसे अब एक हैरिटेज होटल के रूप में संचालित किया जा रहा है। प्रसिद्ध नीमराणा किला 16 वीं शताब्दी में बनाया गया था और 1947 तक चौहान राजपूतों के कब्जे में था ।
नीमराणा में मौजूद इस ऐतिहासिक बावड़ी का निर्माण मुगल सम्राट अकबर के समय में हुआ था। इस 9 मंजिला बावड़ी की प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई लगभग 20 फीट है ।
नगर के मध्य में एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित दुर्ग की संरचना बहुकोणीय है। सामरिक दृष्टिकोण से, किले का निर्माण 16वीं शताब्दी के अंत से 17वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक किया गया था।
पूर्व में अलवर रियासत भरतपुर के अधीन थी। ऐसे में जयपुर और भरतपुर रियासतों के बीच आपसी मनमुटाव और युद्ध की आशंका के कारण जयपुर और अलवर की सीमा बानसूर थी। यह दुर्ग अलवर क्षेत्र की सीमा का प्रहरी रहा है।
बहरोड़ के पास अरावली पहाड़ियों में स्थित तासींग किला आकर्षण का एक और स्थान है लेकिन अब उपेक्षा के कारण खराब स्थिति में है। यह आखिरी बार बडगुर्जरों के अधिपर्य में था। उनसे पहले माचेड़ी के चौहान इसके निवासी थे।
दहमी में मनसा देवी मंदिर में नवरात्रि के दौरान दूर-दूर से भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यह 637 साल पुराना मंदिर है जिसमें लगी घंटा मराठा सरदार द्वारा स्थापित किया गया था।
सोता नदी के तट पर एक पहाड़ी पर स्थित यह प्राचीन मंदिर शक्ति की अराधना का केंद्र है। कोटपूतली को नीमकाथाना से जोड़ने वाले डाबला रोड स्थित ग्राम सरूंड में बना श्री सरूंड माता का मंदिर अपने आप में विशेष महत्व रखता है। प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। राजस्थान समेत देश के कोने-कोने से हजारों की तादाद में श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं। महाभारत कालीन यह मंदिर ग्राम सरूंड में एक पहाड़ी पर स्थित है। जिस पर पहुंचने के लिए 284 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। कहा जाता है कि मंदिर में मां की मूर्ति पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान स्थापित की थी। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मंदिर में स्थापित चिलाय देवी मां की मूर्ति पांडवों की कुल देवी का ही रूप है।यहां नवरात्र की सप्तमी से नवमी तक तीन दिवसीय मेले भरता है। साथ ही सप्तमी की रात्रि को जागरण भी होता है। एंव प्रत्येक माह की शुक्ल अष्टमी को भी जागरण का आयोजन होता है। मंदिर का वार्षिकोत्सव वैशाख शुक्ल षष्टी से नवमी तक लगातार चार दिन तक प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। विभिन्न समाजों के लोग मां सरूंड की पूजा कुलदेवी के रूप में करते हैं।
यह नीमराना के जोशीहेड़ा में स्थित है ।
बहरोड़ के पास बर्ड़ोद के पास स्थित यह मंदिर एक सेक्रेड ग्रोव (पवित्र बनी)में स्थित है ।
आरटीडीसी मिडवे बहरोड़ में राष्ट्रीय राजमार्ग- 48 पर दिल्ली और जयपुर के बीच एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक होटल और मील का पत्थर है जहां विभिन्न राज्यों और देशों के नेताओं, पूर्व प्रधान मंत्रियों, प्रशासनिक अधिकारियों और न्यायिक अधिकारियों के अलावा विदेशी राजदूतों ने राजस्थानी खाने का स्वाद चखा है।प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यहां अपना 79 वाँ जन्मदिन मनाया था। [5]
सोता नदी पर स्थित बाँध ।
इस किले का निर्माण मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में डाकुओं द्वारा अलवर की ओर वाणिज्यिक काफिलों पर लगातार होने वाले हमलों पर लगाम लगाने के लिए किया गया था। यह बानसूर तहसील में स्थित है।
यह अलवर रियासत के शासकों का शिकारगाह निवास था और बर्डोद रूंध में है।
रुंध अलवर रियासत के अंतर्गत आरक्षित वन थे जिनका उपयोग राजघरानों द्वारा शिकार और बड़ी चरागाह भूमि के रूप में किया जाता था। कोटपूतली-बहरोड़ जिले में कई रूंध हैं लेकिन इन पर अब अतिक्रमण होता जा रहा है। जबकि बनी छोटे गैर-अधिसूचित सामुदायिक वन कहलाते थे ।
राजस्थान बजट 2023 में इन वनों को तेंदुआ अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया है। यह कोटपूतली/पावटा तहसील में स्थित है और 50 किमी2 के क्षेत्र में फैला हुआ है।[16]
यह जिला हिंदू धर्म बहुल्य है जिसमें अन्य धर्म जैसे जैन और मुस्लिम भी मौजूद हैं। अहीरावाटी जिले के प्रमुख हिस्सों में बोली जाने वाली सबसे आम भाषा है। हिन्दी राजभाषा है।
भारत के सबसे व्यस्त राजमार्गों में से एक NH-48 जिले को पार करता है और जिले के दोनों मुख्यालयों को जोड़ता है, यह जिले को राज्य की राजधानी जयपुर और राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से भी जोड़ता है।
ट्रांस हरियाणा द्रुतगति राजमार्ग (NH 152-D) जिला मुख्यालय को चंडीगढ़ से जोड़ता है जबकि पनियाला-बड़ौदामियो द्रुतगति राजमार्ग जो निर्माणधीन है जिले को खैरथल व अलवर जिले और दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे से जोड़ता है।
निकटतम रेलवे स्टेशन रेवाड़ी-फुलेरा लाइन पर नारनौल और रेवाड़ी-अलवर रेलवे लाइन पर बावल है।
निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे दोनों बहरोड़ मुख्यालय से 120 किमी की दूरी पर हैं। वहीं निकटतम घरेलु हवाई स्ट्रिप बहरोड़ मुख्यालय से 25 किमी दूरी पर है । वहीं कोटपूतली मुख्यालय से 50 किमी पूरी पर । जिले में सिर्फ एक रेलवे स्टेशन मौजूद है काठूवास रेल स्टेशन जहाँ इनलैण्ड कंटेनर डिपो भी है , पूरे जिले में कोई रेल लाइन मौजूद नहीं है ।
जिले में कई नामी केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड व राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड आधारित विद्यालय हैं । रैफलस व एन आई आई टी विश्वविद्यालय भी जिले में स्थित है । जिले में इंजिनियरिंग कॉलेज , एयरोनोटिक कॉलेज, आर्टस व कामर्स कालेज भी स्थित हैं - लाल बहादुर शास्त्री कॉलेज व बहरोड़ पीजी महाविद्यालय जिला मुख्यलयों पर स्थित हैं ।
जिले में कोई भी मेडिकल कॉलेज वर्तमान में मौजूद नहीं हैं सिर्फ एक डेण्टल कॉलेज संचालित हे, नजदीकी मेडिकल कॉलेज 120 की मी की दूरी पर जयपुर में स्थित है । राजस्थान के सर्वप्रथम इंटिग्रेटेड पब्लिक हेल्थ लैब की स्थापना जून 2023 में कोटपूतली जिला अस्पताल में सी डी सी अमेरिका की सहायता से की गई थी । [17][18]
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) का महाराणा प्रताप क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र (एमपीआरटीसी) बहरोड़ में बहरोड़-नारनौल राज्य राजमार्ग पर स्थित है। इस संस्थान की स्थापना वर्ष 2010 में की गई थी जहां नए रंगरूटों का बुनियादी प्रशिक्षण और विभिन्न सेवाकालीन विशेष पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं । [19]
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