ख़ाकी | |
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ख़ाकी का पोस्टर | |
निर्देशक | राजकुमार संतोषी |
लेखक | राजकुमार संतोषी |
निर्माता | केशु रामसे |
अभिनेता |
अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, ऐश्वर्या राय, अजय देवगन, तुषार कपूर, तनुजा, अतुल कुलकर्णी |
संगीतकार | राम सम्पत |
प्रदर्शन तिथियाँ |
23 जनवरी, 2004 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
ख़ाकी वर्ष 2004 की एक्शन थ्रिलर-ड्रामा आधारित हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसके निर्देशक राजकुमार संतोषी है।[1] उन्होंने श्रीधर राघवन के साथ पटकथा का सह-लेखन भी किया है। फिल्म की कहानी भारतीय पुलिस टीम के उस अभियान पर केंद्रित है जहाँ उन्हें महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर से एक गिरफ्तार संदिग्ध आतंकवादी को मुंबई वापिस लाना है।
फिल्म में कई प्रतिष्ठित अभिनेता जैसे अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, अक्षय कुमार, प्रकाश राज, अतुल कुलकर्णी, तुषार कपूर, तनुजा और ऐश्वर्या राय सम्मिलित हैं।[2] लारा दत्ता फिल्म गीत 'ऐसा जादू' में एक बार-डांसर की भूमिका में है। यह फिल्म व्यावसायिक एवं समीकाक्षात्मक रूप से काफी प्रशंसनीय प्रदर्शन की है। इसे वर्ष 2011 में सत्यमेव जयते नाम से तेलुगु संस्करण के रूप में पुनर्निर्माण किया गया था।
महाराष्ट्र के एक नगर चंदनगढ़ में हुए साम्प्रदायिक दंगों की जांच में लगी राज्य पुलिस को डाॅ. इक़बाल अंसारी (अतुल कुलकर्णी) नाम के एक मुस्लिम डाॅक्टर के आवास से भारी मात्रा में अवैध हथियारों की बरामदगी होती हैं। जिससे पुलिस उसे आईएसआई एजेंट और दंगे की साजिशकर्ता का आरोप मढ़ती है। गिरफ्तार अंसारी की पेशी के लिए मुंबई विशेष न्यायालय बुलाया जाता हैं। लेकिन चंदनगढ़ से पुलिस घेराबंदी के बीच निकलवाने बावजूद उनपर किसी अज्ञात दल का हमला होता है। पुलिस किसी तरह उसे बचा तो लेती है पर तब तक काफी गंभीर नुकसान हो चुका होता है। पुलिस चीफ, एसीपी नायडू (प्रकाश राज) को विशेष न्यायालय की सुनवाई पर अंसारी को पेशी पर चंदनगढ़ से लाने के लिए पांच पुलिसकर्मियों की नियुक्ति की जिम्मेदारी मिलती है। टीम प्रमुख में डीसीपी अनंत श्रीवास्तव (अमिताभ बच्चन) को नियुक्त किया जाता है जो एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर है पर स्वयं के कैरियर में अब तक कोई विशेष प्रभाव नहीं ला सके। वह इस अभियान को इसलिए राजी होता है कि किसी तरह अपने कैरियर में सफल होने पर उसे एडिशनल कमिश्नर की पदोन्नति मिले ताकि उसे उसके सेवाएँ एवं प्रयासों का उचित सम्मान मिल सके।
अब उसकी टीम में सम्मिलित हैं, वरिष्ठ इंस्पेक्टर शेखर वर्मा (अक्षय कुमार) जो एक भ्रष्ट पुलिसकर्मी हैं, सह-इंस्पेक्टर अश्विन गुप्ते (तुषार कपूर) और दो हवलदार कमलेश सावंत और गजानन म्हात्रे। लेकिन मुंबई से प्रस्थान से पूर्व ही उनके हाथों एक फोटोग्राफर (अबीर गोस्वामी) पकड़ा जाता हैं जो गुप्त रूप से उनकी तस्वीरें ले रहा था पर उससे वे कुछ उगलवा नहीं पाते। दरअसल वह यशवंत आंग्रे (अजय देवगन) के कहने पर टीम की जासूसी कर रहा था। लेकिन पुलिस इन दोनों के बीच जुड़े सूत्र पर कुछ कार्यवाई करती उससे पहले आंग्रे उस फोटोग्राफर और उसके परिवार को उनके टेलीफोन रिसीवर से जुड़े विस्फोट के जरिए धमाका कर मार डालता है। अनंत अपनी टीम साथ चंदनगढ़ पहुंचता ही है कि पुलिस को महालक्षमी (ऐश्वर्या राय) नाम से एक स्कूल टीचर की ओर से उसके स्कूल संपदा में कुछ संदिग्ध गतिविधियों के खुलासे की खबर मिलती है। अनंत और उसकी टीम को स्थानीय पुलिस के साथ जांच में आतंकियों के कमरे से शव बरामद होते हैं।
पुलिस स्टेशन में वापसी दौरान अनंत से मिलने अंसारी की मां (तनुजा) यह फरियाद लेकर आती है कि उसे बीच राह में न मारकर सीधे अदालत ले जाए और सही न्याय कराया जाए। अनंत उसे आश्वस्त कराता है उसे उसके बेटे से जरूर मिलवायेगा। वहीं आंग्रे की ओर से अनंत को अंजान काॅल मिलती है, लेकिन वह पहचान नहीं पाता और काॅल ट्रेस करने की कोशिश भी नाकाम रहती है। पर तभी उसी लाईन पर उसकी पत्नी और बेटी की आवाज सुनाई पड़ती हैं। अनंत फौरन घर को फोन काॅल लगाता हैं लेकिन स्थिति सामान्य पाकर समझ जाता है कि आंग्रे ने महज उसे डराने के लिए रिकाॅर्डिंग टेप का इस्तेमाल किया था। अनंत अपनी टीम में महालक्षमी को साथ लेकर मुंबई को रवाना ही होते हैं कि हाईवे पर लगी लंबे जाम पर उनको रुकना पड़ता है। इस जाम से परे निकलकर एक कच्चे रास्ते द्वारा चलते ही है कि उसका सामना पशु-मेले के तौर पर भारी भीड़ से होता हैं। रास्ते से मवेशियों और लोगों को हटाते हुए अनंत को तभी आंग्रे का फोन आता हैं जोकि कि उसी के आस-पास होने का एहसास कराता हैं। आंग्रे मेले में जबरदस्त भगदड़ मचाकर अनंत के पकड़ से बच जाता है।
दरअसल आंग्रे पुलिस विभाग का ही घोर भ्रष्ट और निर्मम पूर्व-ऑफिसर है। जिसे पाँच निर्दोषों की हत्या करने के अपराध में अनंत जेल भेजकर पुलिस विभाग से बर्खास्त करता हैं। फिर तब टीम को पुलिस वैन नजर आती है, पर जिसे वो अपनी सहयोग टीम मान रही थी असल में वे आंग्रे के हत्यारे साबित होते हैं। चंद मिनटों में भारी गोलीबारी चलती है और जवाबी बचाव में अनंत की टीम के सारे गोली-कारतूस कम पड़ जाते हैं। वहीं आंग्रे के आदमी पुलिस के हवलदार ड्राइवर को फेंक अंसारी को रिहा करने को कहते हैं। शेखर को और कोई विकल्प समझ न आने पर अंसारी को खींच बाहर करने की चेष्टा ही करता कि अनंत उसकी राह रोकता हैं। बहस को उलझते देख अंततः अनंत और अश्विन अपनी पिस्तौलें शेखर पर तान देते हैं लेकिन तब अंसारी बिफरते हुए कह देता है कि यहां आतंकवादी उसकी रिहाई के लिए नहीं बल्कि मारने आए हैं। उसके मुताबिक वह तो महज चंदनगढ़ का साधारण डाॅक्टर है जो ईमानदारी से अपने पेशे और परिवार के बीच सामंजस्य बिठाए था।
इसी बीच, आंग्रे और उसके आदमी घर अंदर पहुँचकर अनंत और बाकियों पर बंदूक तान ही देते हैं सिवाय शेखर और अश्विन के जो अंधेरे का लाभ उठाकर फौरन अंसारी को घर पीछे के वेयरहाऊस में छिप जाते हैं। जब तक आंग्रे के आदमी घर की तलाशी करते, आंग्रे अनंत से उसके हाथों बेज़्जती का बदला लेने के तरीके बताता हैं क्योंकि उसके मुताबिक अनंत को अपनी जान से ज्यादा अपने कर्तव्य और आदर्शों की ही परवाह हैं। वहीं आंग्रे के आदमी घर की छानबीन करते हूए वेयरहाऊस पहुँचते हैं। आंग्रे उनके साथ प्रवेश ही कर पाता कि वहां रखे ज्वलनशील गैस से भरे सिलिण्डरों पर बाहर खड़ा अश्विन उस पर गोली दाग एक जानलेवा धमाका करता है जिससे कुछ गुण्डे मारे जाते हैं। इस अफरातफरी में टीम पुलिस वैन पर जल्द सवार होकर भागती ही हैं कि आंग्रे की चलाई गोली से अंसारी बुरी तरह घायल होता है। अनंत समझ जाता है कि नायडू भी एक भ्रष्ट पुलिसकर्मी हैं जो देवधर का काम करता हैं और अनंत की हर गतिविधियों की जानकारी आंग्रे को देता हैं। अनंत अपनी टीम के साथ घायल अंसारी को स्थानीय अस्पताल में भरती कराते हैं। डाॅक्टर उसकी जान तो बचा लेते हैं मगर उसकी स्थिति और बिगड़ने की भी अंदेशा करते हैं। तब शेखर बीती रात को हुई बदतमीज़ी की माफी मांगता है और वह भी उनके साथ आखिर तक चलने की जिद करता है ताकि एक बार खुद को ईमानदार पुलिस साबित कर सकें। और फिर अन्य सदस्य भी अपनी यही राय देते हैं।
वहीं आंग्रे और नायडू की नाकामी पर मंत्री देवधर अनंत की टीम के खिलाफ समाचार-समूह की मंत्रणा पर जनता को प्रचारित करता है कि यह टीम बिक चुकी हैं और आईएसआई के संबंध से जुड़ चुकी हैं। दूरदर्शन और अन्य समाचार माध्यमों से गुमराह कर जन-समूह उसी अस्पताल के यहां पहुँच अंसारी को उनके सुपुर्द करने के लिए पथराव करती है। अनंत बिना विरोध किए उनके मध्य जाकर कहता है कि जो लोग सच्चाई से अवगत नहीं होते तो ऐसे ही भ्रष्ट राजनेता उनको भ्रमित कर अपना हित साधते हैं। यहां अनंत की टीम को मुंबई रवाना होने के लिए एक कार्यवाहक रेल सुविधा मिलती है। लेकिन उनकी सावधानी बरतने से पहले ही उसी ट्रेन पर आंग्रे अपने हथियारबंद आदमियों के साथ स्टेशन पहुँचता है। पर तभी हवलदार कमलेश को स्टेशन बाहर पुलिस वैन भगाते देख आंग्रे व उसके आदमी गोलियाँ बरसाने के झांसे में फंसते हैं और उन्हीं के पीठ पीछे शेखर ट्रेन पर कब्जा जमाते हुए वहीं छिपे अन्य सदस्यों को बचाते हुए अनंत बाकी आतंकियों पर गोलीबारी करता है। कमलेश पटरियों के समीप वैन रोक ट्रेन पकड़ने की कोशिश करता है पर अंततः आंग्रे के चलाई गोली से वह मारा जाता। मुंबई पहुँचकर जब अंसारी को अस्पताल में इलाज के लिए लाया जाता है डाॅक्टर उसके गंभीर स्थिति को देखते हुए मृत घोषित करते हैं। वहीं अंसारी की मां को लगता हैं कि अनंत ने जानबूझकर उनकी प्रार्थना की उपेक्षा की हैं और उसकी जवाबदेही से पहले ही गुस्से में पत्रकारों के बीच उन्हें तमाचा मारती हैं। बावजूद अगली सुबह अनंत अपनी टीम के साथ अंसारी का सम्मान सहित अंतिम संस्कार कराती है और मिडिया के समक्ष इस केस की दुबारा कार्यवाई का ऐलान करती हैं।
यहां अनंत अपनी टीम को पत्रकार भास्कर के बेटे के जरिए उस के ठिकाने को किसी प्रकार ढुंढ़ निकालता है। शेखर और महालक्षमी उस फाईल को तलाशने ग्रेंड पोस्ट-ऑफिस पहुँचते हैं जहां पहले ही घात लगाए आंग्रे से उनका सामना होता है। स्थिति बिगड़ने से पहले शेखर वह फाईल महालक्षमी को देकर अनंत को सौंपने का जिम्मा देता है और शेखर तब आंग्रे के आदमियों से भिड़ जाता है। किसी तरह शेखर को नजदीकी स्टेडियम तक पहुँचाने बाद वह समझ जाता हैं कि महालक्षमी आंग्रे की ही गर्लफ्रैंड है जो उनकी ही सूचना पर इस फाईल को कब्जा चुकी है। शेखर मरने से पहले ही अनंत को काॅल करता है जिससे मालूम हो जाता है कि महालक्षमी आंग्रे की जासूस है और फिर शेखर आंग्रे के हत्यारों के चलाई गोलीबारी में शहीद होता है। अगले दिन अनंत और अश्विन महालक्षमी का पीछा करते हुए आंग्रे को ढुंढ़ निकालते हैं। लेकिन गोलीबारी की मुठभेड़ में आंग्रे महालक्षमी को अपनी आड़ में लेकर उसे भी मार देता हैं। अनंत तब आंग्रे का पीछा करते हूए अन्य पुलिसकर्मियों के सहारे उसे घेर लेता है और गिरफ्तारी से पहले अनंत आवेग में आंग्रे की खूब पिटाई कर उसे बेदम कर पुलिस के हवाले करता है।
बरामद फाइल की पुख्ता सबूतों के मद्देनजर न्यायालय आंग्रे, देवधर और नायडू पर विभिन्न संगीन अपराधों में संलिप्त होने का दण्ड करार देती हैं। कारावास को ले जाने दौरान आंग्रे को जिस वैन से ले जाया गया उसकी हथकड़ी फंसाने वाली फ्रेम को वह ढीला पाता है। खुद को फौरन छुड़ाते हुए, आंग्रे हवलदार पर हमला कर, रायफल छीनते हुए वैन को रोकता है। तब तक अश्विन के वैन से बाहर आते ही आंग्रे उसपर रायफल तानता हैं। आंग्रे ट्रिगर खींचता है, लेकिन गोली न होने पर चला नहीं पाता। बंदूक रखकर जैसे ही आंग्रे समर्पण कर उसकी बेवकूफी समझ हंसता है, अश्विन दो गोलियाँ आंग्रे पर दाग देता है। अश्विन तब हवलदार को पूरे घटनाक्रम के जरूरी निर्देश देता है और अपने वरिष्ठ अफसर को फोन पर आंग्रे के हिरासत से भागने और आत्मरक्षा में गोली चलाने की दुर्घटना में बुरी तरह घायल होने की सूचना देता है।
सभी गीत समीर द्वारा लिखित; सारा संगीत राम सम्पत द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "वादा रहा" | अर्नब चक्रवर्ती, श्रेया घोषाल | 4:40 |
2. | "ऐसा जादू" | सुनिधि चौहान | 3:24 |
3. | "यूँ ही तुम मुझसे प्यार करते रहो" | सोनू निगम, श्रेया घोषाल | 5:21 |
4. | "दिल डूबा" | सोनू निगम, श्रेया घोषाल | 3:50 |
5. | "वादा रहा" (दुःखी संस्करण) | सोनू निगम | 5:59 |
6. | "दिल डूबा" (रिमिक्स) | सोनू निगम, श्रेया घोषाल | 4:16 |
7. | "मेरे मौला" | ऋचा शर्मा, कैलाश खेर | 4:50 |
8. | "ऊपर वाले" | सोनू निगम, सुखविंदर सिंह, कुणाल गांजावाला | 4:57 |
9. | "ऐसा जादू" (रिमिक्स) | सुनिधि चौहान | 5:20 |
10. | "वादा रहा" (II) | उदित नारायण, श्रेया घोषाल | 4:41 |
वर्ष | नामित कार्य | पुरस्कार | परिणाम |
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2005 | राजकुमार संतोषी | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार | नामित |
अमिताभ बच्चन | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार | नामित | |
अक्षय कुमार | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार | नामित | |
अजय देवगन | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार | नामित |