निर्देशांक: 28°39′32″N 77°13′16″E / 28.6588423°N 77.2211152°E
खारी बावली एक सड़क का नाम है जो भारत के दिल्ली में थोक किराना और एशिया की सबसे बड़ी थोक मसाले के बाजार के रूप में जानी जाती है। यहाँ सभी प्रकार के मसाले, मेवे, जड़ी बूटियों और खाद्य उत्पादों में दाल, चावल और चाय जेसी समान बिक्री होते हैं। 17 वीं सदी से चल रहा यह बाजार दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के पास स्थित है। चांदनी चौक के पश्चिमी छोर पर स्थित फतहपुरी मस्जिद के निकट स्थित है और वर्षों से यह एक पर्यटक आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है, विशेष रूप से दिल्ली के हेरिटेज सर्किट का।[1][2][3]
खारी बावली की सीढ़ी नुमा कुऐं कि नींव ख्वाजा अब्दुल्ला लाज़र कुरैशी द्वारा इस्लाम शाह (सलीम शाह) के शासनकाल के दौरान रखा गया था जो कि शेरशाह सूरी के पुत्र थे। सन् 1551 इस का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया था। इस बावली का अब कुछ भी अवशेष नहीं बचा सिर्फ कुछ शिलालेख की संरक्षित प्रतियां जो कि "आसर उस सनादीद" (सर सैयद अहमद खान) ओर "मिफ़ताह अल तवारीख़" के किताबों में पाये जाते है।[4] [5]
यह बाजार फतहपुरी मस्जिद के आसपास जो कि 1650 में फतहपुरी बेगम द्वारा बनाया गया था जो की मुगल सम्राट शाहजहां' की एक पत्नी थी। शाहजहां के शासनकाल के दौरान यह खारी बावली के नाम से जानी जाती थी (बावली, जिसका अर्थ सीड़ी नुुुमा कुआँ ओर खारी या खारा जिसका अर्थ नमकीन है) नमकीन पानी की बावड़ी जो की जानवरों और स्नान के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इसका निर्माण कार्य शंहज़ाहनाबाद के पश्चिमी प्रवेश द्वार लाहोरी गेट जो की शंहज़ाहनाबाद के 14 प्रवेश द्वार में से एक था के साथ किया गया था। इसका नाम लाहोरी गेट इसलिए पड़ा क्योंकि एक सड़क इस गेेट से लाहौर, जो अब पाकिस्तान में है जाती थी। बहरहाल, आज वहाँ ना तो बावली ना ही गेट के कोई निशान बचा है जो की मुख्यबाजार की सड़क के नीचे दफन है। [6][7]
1936 में, पंजाब सरकार के एक मंत्री चौधरी छोटू राम ने एक कानून जारी किया, जिसमें ग्रामीणों के सभी ऋणों को रद्द कर दिया गया।[8] इस प्रकार अनेक अग्रवाल व्यापारियों ने अपना व्ययवसा खो दिया और दिल्ली में कमला नगर, शक्ति नगर और मॉडल बस्ती,जेेेसे इलाकों में आ बसे और व्यापार करने के लिए पुरानी दिल्ली, विशेष रूप से चांदनी चौक, खारी बावली, दरीबा कलां, नई सड़क, नया बाजार, सदर बाजार और चावडी बाजार जेसे क्षेत्रों में काम शुरू किया.
यहाँ पर बहुत सारे दुकानें अपने नम्बर द्वारा पहचाने जाते है। "13 नंबर चावल वाले" या "21 नंबर की दुकान"। 17 वी ओर 18 वी शताब्दी में स्थापित ये दुकानें अपनी नोवीं या दसवीं पीढी के द्वारा चलाई जा रही है।[9]
"गाडोदिया मार्केट", खारी बावली के दक्षिण में स्थित है, जो की धनी व्यापारियों द्वारा 1920 में बनायी गई थी जिसमें कई मसालों की दुकाने हैं और यह एशिया का सबसे बड़ा थोक मसाला बाजार है। आज, खारी बावली न केवल एशिया का सबसे बड़ा मसाला बाजार है, बल्कि एक महत्वपूर्ण और व्यस्त वाणिज्यिक जिला भी है और यह संपूर्ण उत्तर भारत के मसालों की मांग की पुर्ति करता है जिसमें जम्मू और कश्मीर, राजस्थान और यहाँ तक कि मध्य प्रदेश जेसे राज्य शामिल है। जिस के कारण यहाॅं व्यापारियों की लगातार भीड़ बनी रहती है, और सबसे सस्ते सौदों और सस्ते दामों की मसाला, मेवे और अन्य खराब होने वाली वस्तु की दुकानों की तलाश में रहते हैं।[10]
खारी बावली बाजार के दूसरे छोर पर जीबी रोड है।(रेड लाइट जिला और इंजीनियरिंग माल के थोक विक्रेता) और सदर बाज़ार (गैर-ब्रांडेड उपभोक्ता वस्तुओं का थोक बाज़ार ).
वहाँ कटारा तम्बाकू में असली जड़ी बूटियों का एक थोक बाजार है जहां कुछ आयातक और निर्यातक जड़ी बूटी का थोक व्यापार करते है।
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