गणेश नारायणदास देवी | |
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जन्म | 01 अगस्त 1950 भोर, पुणे, बंबई राज्य (अभी का महाराष्ट्र) |
पेशा | गंभीर, विचारक, संपादक, शिक्षक, सांस्कृतिक कार्यकर्ता |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
विधा | साहित्यिक आलोचना |
उपाधि |
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गणेश नारायणदास देवी (जन्म :१९५०) प्रसिद्ध साहित्यिक आलोचक एवं भाषा अनुसन्धान एवं प्रकाशन केन्द्र, वडोदरा के संस्थापक निदेशक हैं। वे पहले सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय, वडोदरा के अंग्रेजी के प्राध्यापक थे। डॉ॰ गणेश और उनकी पत्नी सुरेखा देवी 'भाषा' नामक गैर राजनीतिक ट्रस्ट संचालित करते हैं, जो गुजरात के जनजातीय क्षेत्रों में विशेष रूप से सक्रिय हैं। डॉ॰ गणेश का प्रबल दावा है कि भारत से 'लोक' की जुबान काटने की सुनियोजित साजिश रची जा रही है। 'भाषा' इसी के विरूद्ध एक अभियान है।[1]
भारत की लुप्त होती भाषाओं पर व्यापक सर्वेक्षण, संवर्धन और संरक्षण तथा दस्तावेजीकरण करने का उन्होंने स्वेच्छा से बीड़ा उठाया है। इसी सर्वेक्षण के माध्यम से उनका कहना है कि हिन्दी आम धारणा को तोड़ती हुई तेजी से आगे बढ़ रही है। २०१० उनके नेतृत्व में पीपल्स लिंग्विटिक सर्वे ऑफ इण्डिया ने भारत की ७८० जीवित भाषाओं का सर्वेक्षण प्रकाशित किया।
श्री गणेश देवी को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2014 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया।[2]
इनके द्वारा रचित एक समालोचना आफ़्टर ऐम्नीसिया : ट्रेडिशन एंड चेंज इन इंडियन लिटरेरी क्रिटिसिज़्म के लिये उन्हें सन् 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[3]