गणेश प्रसाद | |
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जन्म |
15 नवम्बर 1876 बलिया, उत्तर प्रदेश, भारत |
मौत |
9 मार्च 1935 आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत | (उम्र 58 वर्ष)
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा की जगह |
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, कलकता विश्वविद्यालय कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, गोटिंगेन विश्वविद्यालय |
पदवी | गणित के प्रोफेसर |
प्रसिद्धि का कारण | भारत में गणित विषय में सुव्यवस्थित शोध संस्कृति के संस्थापक |
गणेशप्रसाद (1876 - 1935 ई.) भारतीय गणितज्ञ तथा 'बनारस मैथेमैटिकल सोसायटी' के संस्थापक थे। वे हिन्दी के महान प्रेमी थे।[1]
इनका जन्म 15 नवम्बर 1876 ई. का बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा बलिया और उच्च शिक्षा म्योर सेंट्रल कालेज, इलाहाबाद में हुई। 1898 ई. में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डी. एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। तदुपरान्त कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद, में दो वर्ष प्राध्यापक रहकर राजकीय छात्रवृति की सहायता से ये गणित के अध्ययन के लिए कैंब्रिज (इंग्लैंड) और गटिंगेन (जर्मनी) गए।
1904 ई. में भारत लौटने पर ये संयुक्त प्रान्त में दस वर्ष तक गणित के प्रोफेसर रहे। तदुपरान्त 1914 से 1918 ई. तक कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रयुक्त गणित के घोष-प्रोफेसर और 1918 ई. से 1923 ई. तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर और 1923 ई. के पश्चात् आजीवन कलकत्ता विश्वविद्यालय के शुद्ध गणित के हार्डिज प्रोफसर रहे।
1918 ई. में इन्होंने बनारस मैथिमैटिकल सोसायटी की स्थापना की। इन्होंने विभवों, वास्तविक चल राशियों के फलनों, फूर्ये श्रेणी और तलों आदि के सिद्धान्तों पर 52 शोधपत्र और 11 पुस्तकें लिखीं। इनमें से इनका शोधपत्र ऑन द कान्स्टिट्यूशन ऑव मैटर ऐंड ऐनालिटिकल थ्योरीज़ ऑव हीट (On the Constitution of Matter and Analytical Theories of Heat) अत्यन्त विख्यात है।
9 मार्च 1935 ई. को, जब ये आगरा विश्वविद्यालय की एक बैठक में भाग ले रहे थे, उसी दौरान मस्तिष्क सम्बन्धी रक्तस्राव के कारण इनकी मृत्यु हुई।