गणेश वासुदेव जोशी (जुलाई २०, १८२८ - जुलाई २५, १८८०) महाराष्ट्र के समाजसुधारक तथा सामाजिक कार्यकर्ता थे। उनके द्वारा किए गए सार्वजनिक कार्यों के कारण उनको 'सार्वजनिक काका' ही कहा जाने लगा था। भारत में 'स्वदेशी' का विचार सबसे पहले उन्होने ही प्रस्तुत किया था। न्यायमूर्ति रानडे के साथ मंत्रणा कर सार्वजनिक काका ने १८७२ में स्वदेशी आंदोलन का श्रीगणेश किया था। उनके स्वदेशी आन्दोलन से ही गाँधीजी को खादी के प्रचार की प्रेरणा मिली थी।[1]
उन्होंने 'देशी व्यापारोत्तेजक मंडल" की स्थापना कर स्याही, साबुन, मोमबत्ती, छाते आदि स्वदेशी वस्तुओं का उत्पादन करने को प्रोत्साहन दिया था। इसके लिए स्वयं आर्थिक हानि भी सही थी। इस स्वदेशी माल की बिक्री के लिए सहकारिता के सिद्धांत पर आधारित पुणे, सतारा, नागपुर, मुंबई, सूरत आदि स्थानों पर दुकाने प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित किया था। स्वदेशी वस्तुओं की प्रदर्शनियां भी आयोजित की। उन्हीं के प्रयत्नों से आगरा में कॉटन मिल शुरु की गई थी।
१२ जनवरी १८७२ को उन्होंने खादी उपयोग में लाने की शपथ ली थी और उसे आजीवन निभाया। खादी का उपयोग कर उसका प्रचार-प्रसार करनेवाले वे पहले दृष्टा देशभक्त थे।
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