गुरुवायूर Guruvayur ഗുരുവായൂർ | |
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गुरुवायूर मन्दिर प्रवेश | |
निर्देशांक: 10°35′42″N 76°02′24″E / 10.595°N 76.040°Eनिर्देशांक: 10°35′42″N 76°02′24″E / 10.595°N 76.040°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | केरल |
ज़िला | त्रिस्सूर ज़िला |
ऊँचाई | 11 मी (36 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 20,510 |
भाषा | |
• प्रचलित | मलयालम |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 680101 |
दूरभाष कोड | +91-487 |
वाहन पंजीकरण | KL-46 |
गुरुवायूर (Guruvayur) भारत के केरल राज्य के त्रिस्सूर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थान है और त्रिस्सूर से 28 किमी पश्चिमोत्तर में स्थित है।[1][2]
गुरुवायूर अपने मंदिर के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जो कई शताब्दियों पुराना है और केरल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। मंदिर के देवता भगवान गुरुवायूरप्पन हैं जो बालगोपालन (कृष्ण भगवान का बालरूप) के रूप में हैं। हालांकि गैर-हिन्दुओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है, तथापि कई धर्मों को मानने वाले भगवान गुरूवायूरप्पन के परम भक्त हैं।
एक विख्यात शास्त्रीय प्रदर्शन कला कृष्णनट्टम कली, जोकि विश्व स्तर पर प्रसिद्ध नाट्य-नृत्य कथकली के प्रारंभिक विकास में सहायक थी, उसका गुरुयावूर में काफी प्रचलन है क्यूंकि मंदिर प्रशासन (गुरुयावूर देवास्वोम) एक कृष्णट्टम संस्थान का संचालन करता है। इसके अतिरिक्त, गुरुयावूर मंदिर दो प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों के लिए भी विख्यात है: मेल्पथूर नारायण भट्टाथिरी के नारायणीयम और पून्थानम के ज्नानाप्पना, दोनों (स्वर्गीय) लेखक गुरुवायूरप्पन के परम भक्त थे। जहां नारायणीयम संस्कृत में, दशावतारों (महाविष्णु के दस अवतार) पर डाली गयी एक सरसरी दृष्टि है, वहीं ज्नानाप्पना स्थानीय मलयालम भाषा में, जीवन के नग्न सत्यों का अवलोकन करती है और क्या करना चाहिए व क्या नहीं करना चाहिए, इसके सम्बन्ध में उपदेश देती है।
गुरुवायूर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय कर्नाटकीय संगीत का एक प्रमुख स्थल है, विशेषकर यहां के शुभ एकादसी दिवस के दौरान जोकि सुविख्यात गायक चेम्बाई वैद्यनाथ भगावतार की स्मृति में मनाया जाता है, यह भी गुरुवायूरप्पन के दृढ़ भक्त थे। मंदिर वार्षिक समारोह (उल्सवम) भी मनाता है जो कुम्भ के मलयाली महीने (फरवरी-मार्च) में पड़ता है इसके दौरान यह शास्त्रीय नृत्य जैसे कथकली, कूडियट्टम, पंचवाद्यम, थायाम्बका और पंचारिमेलम आदि का आयोजन करता है। इस स्थान ने कई प्रसिद्ध थाप वाले वाद्यों जैसे चेन्दा, मद्दलम, तिमिला, इलाथलम और इडक्का आदि के वादकों को जन्म दिया है।
मंदिर का संचालन गुरुवायूर देवास्वोम प्रबंधन समिति के द्वारा, केरल सरकार के निर्देशन में किया जा रहा है। समिति के अस्थायी सदस्यों का "नामांकन" राज्य सरकार के सत्तारूढ़ दल द्वारा समय-समय पर किया जाता है। स्थायी सदस्य, चेन्नास माना (मंदिर के परंपरागत तंत्री), सामुथिरी और मल्लिस्सेरी माना, परिवारों के वर्तमान मुखिया होते हैं।
टीपू सुल्तान के आक्रमण के दौरान श्री गुरुवायूरप्पन की पवित्र प्रतिमा को अम्बलाप्पुज्हा मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया था और फिर मवेलिक्कारा श्री कृष्णास्वामी मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया था।
मंदिर के भगवान के सम्बन्ध में सर्वाधिक प्रसिद्ध पौराणिक कथा गुरु बृहस्पति और वायु (पवन देवता) से सम्बंधित है। वर्तमान "युग" के आरम्भ में, बृहस्पति को भगवान कृष्ण की एक तैरती हुई मूर्ति मिली। उन्होंने और वायु देवता ने, इस युग में मानवों की सहायता हेतु इस मंदिर में भगवान की स्थापना की। यह पौराणिक कथा ही दोनों लघु प्रतिमाओं के नाम गुरुवायूरप्पन और इस नगर के नाम गुरुवायूर का आधार है। यह माना जाता है कि यह मूर्ति जो अब गुरुवायूर में है, वह द्वापर युग में श्री कृष्ण द्वारा प्रयोग की गयी थी।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में हिन्दुस्तान की सामाजिक बुराइयों में में छुआछूत एक प्रमुख बुराई थी जिसके के विरूद्ध महात्मा गांधी और उनके अनुयायी संघर्षरत रहते थे। उस समय देश के प्रमुख मंदिरों में हरिजनों का प्रवेश पूर्णतः प्रतिबंधित था। केरल राज्य का जनपद त्रिशुर दक्षिण भारत की एक प्रमुख धार्मिक नगरी है। यहीं एक प्रतिष्ठित मंदिर है गुरूवायूर मंदिर, जिसमें कृष्ण भगवान के बालरूप के दर्शन कराती भगवान गुरूवायुरप्पन की मूर्ति स्थापित है। आजादी से पूर्व अन्य मंदिरों की भांति इस मंदिर में भी हरिजनों के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध था।
केरल के गांधी समर्थक श्री केलप्पन ने महात्मा की आज्ञा से इस प्रथा के विरूद्ध आवाज उठायी और अंततः इसके लिये सन् 1933 ई0 में सविनय अवज्ञा प्रारंभ की गयी। मंदिर के ट्रस्टियों को इस बात की ताकीद की गयी कि नये वर्ष का प्रथम दिवस अर्थात 1 जनवरी 1934 को अंतिम निश्चय दिवस के रूप में मनाया जायेगा और इस तिथि पर उनके स्तर से कोई निश्चय न होने की स्थिति में महात्मा गांधी तथा श्री केलप्पन द्वारा आन्दोलनकारियों के पक्ष में आमरण अनशन किया जा सकता है। इस कारण गुरूवायूर मंदिर के ट्रस्टियो की ओर से बैठक बुलाकर मंदिर के उपासको की राय भी प्राप्त की गयी। बैठक में 77 प्रतिशत उपासको के द्वारा दिये गये बहुमत के आधार पर मंदिर में हरिजनों के प्रवेश को स्वीकृति दे दी गयी और इस प्रकार 1 जनवरी 1934 से केरल के श्री गुरूवायूर मंदिर में किये गये निश्चय दिवस की सफलता के रूप में हरिजनों के प्रवेश को सैद्वांतिक स्वीकृति मिल गयी। गुरूवायूर मंदिर जिसमें आज भी गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है तथापि कई घर्मो को मानने वाले भगवान भगवान गुरूवायूरप्पन के परम भक्त हैं।
महात्मा गांधी की प्रेरणा से जनवरी माह के प्रथम दिवस को निश्चय दिवस के रूप में मनाया गया और किये गये निश्चय को प्राप्त किया गया। [3]।
अन्य आकर्षणों में मंदिर के पास एक प्रसिद्ध गज अभयारण्य (पुन्नतूर कोट्टा) है, जहां मंदिर के कार्यों हेतु विशाल हाथियों को प्रशिक्षित किया जाता है। वर्तमान में इस अभयारण्य में 60 से भी अधिक हाथी हैं, यह सभी भगवान गुरुवायूर के भक्तों द्वारा समर्पित हैं। मंदिर से जुड़े प्रमुख हाथियों में से एक अग्रणी हाथी का नाम गुरुवायूर केसवन है जो एक सुविख्यात हाथी था। इसे मंदिर के पौराणिक साहित्य में स्थान दिया गया है। यह मंदिर केरल में हिन्दू विवाहों का प्रमुख स्थल है। मंदिर में प्रतिदिन अत्यधिक संख्या में विवाह होते हैं- कभी-कभी एक ही दिन में 100 से भी अधिक. भगवान गुरुवायूरप्पन के भक्त यह मानते हैं कि भगवान के सामने वैवाहिक जीवन शुरू करना अत्यंत शुभ है।
यदि आप गुरुयावूर मंदिर देखने आये हैं तो पास ही स्थित माम्मियूर के शिव मंदिर के दर्शन के बिना इसका भ्रमण अधूरा है। यदि आपके पास एक अतिरिक्त दिन का समय है तो और भी कई मंदिर देखने योग्य हैं। आप भगवान वडक्कनाथन के दर्शन के लिए थ्रिसुर (या त्रिचूर) जा सकते हैं। प्रसिद्ध थ्रिसुर पूरम, इसी मंदिर के पास स्वराज घेरे में आयोजित होता है। पास ही में आप परमेलकावु (भगवती) मंदिर और थुरुवाम्पादी कृष्ण मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं। इसके बाद कूदाल्मानिक्यम मंदिर में संगमेश्वरर के दर्शन के लिए इरिन्जलाक्कुडा जा सकते हैं (यहां से पेरुवानाम (भगवान शिव) और फिर थ्रिप्रयर (भगवान राम) जाया जा सकता है। इसके बाद वापस गुरुवायूर.
श्री कृष्ण चेतना अंतर्राष्ट्रीय संस्थान (ISKCON) ने हाल ही में यहां एक केंद्र और नगर आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए एक अतिथि भवन की शुरुआत की है। यहां कई होटल, सराय, रेस्तरां और विवाह हाल हैं और यह फलता-फूलता बाज़ार केंद्र है।
हर कुछ मिनटों पर थ्रिसुर शक्तन थामपुरण बस अड्डे, एर्नाकुलम बोर जेट्टी केएसआरटीसी (KSRTC) अड्डे और कलूर से बसें चलती हैं। उत्तरी परावुर, कोझिकोड, पलक्कड़, कोडुन्गल्लुर, कोट्टायम, पथानाम्थित्ता, पाम्बा/सबरीमाला, मवेलिक्कारा और थिरुवनंतपुरम से भी बसें चलती हैं। प्रत्येक कुछ मिनटों पर गुरुवायूर केएसआरटीसी (KSRTC) अड्डे से कोडुन्गल्लुर, पारावुर होते हुए एर्नाकुलम बोट जेट्टी के लिए बसें चलती हैं, जो दक्षिण केरल पहुंचने का सबसे आसान रास्ता है। गुरुवायूर स्टेशन से थ्रिसुर और एर्नाकुलम के लिए यात्री ट्रेनें चलती हैं, साथ ही साथ रात को चलकर सुबह पहुंचाने वाली एक एक्सप्रेस ट्रेन भी थिरुवनंतपुरम और आगे चेन्नई तक चलती है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा, कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, गुरुवायूर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर है। यदि आप कोझिकोड से आ रहे हैं, तो बस या कार द्वारा गुरुवायूर पहुंचने में लगभग 3.5 घंटे लगेंगे.
गुरुवायूर के नज़दीक चवक्कड़ से होते हुए 3 किलोमीटर की दूरी पर एन एच - 17 है और जो र त्रिप्रयर, कोडुन्गल्लुर, पारावुर जंक्शन से इडापल्ली जंक्शन की ओर बढ़ता है। यह थ्रिसुर शहर और व्यस्त एनएच - 47 (NH - 47) से बचते हुए कोच्ची, केंदीय केरल और दक्षिण केरल पहुंचने का सबसे सरल रास्ता है।
भारतीय जनगणना 2001[4] के अनुसार, गुरुवायूर की जनसंख्या 21,187 थी। जनसंख्या का 46% हिस्सा पुरुष तथा 54% महिलाएं थीं। गुरुवायूर में औसत साक्षरता दर 85 प्रतिशत है, जोकि राष्ट्रीय औसत 59.5 प्रतिशत से भी अधिक है: पुरुष साक्षरता दर 86 प्रतिशत और महिला साक्षरता 85 प्रतिशत है। गुरुवायूर में, जनसंख्या के 10 प्रतिशत लोग 6 वर्ष से कम उम्र के हैं।
गुरुवायूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र त्रिचूर (लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र) का एक हिस्सा है।
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