Ghulam Mohammed Sheikh | |
---|---|
अहमदाबाद, २००८ | |
जन्म |
1937 सुरेन्द्रनगर, गुजरात, भारत |
राष्ट्रीयता | भारत |
प्रसिद्धि का कारण | चित्रकारी |
गुलाम मोहम्मद शेख (जन्म 1937 सुरेंद्रनगर, गुजरात) अन्तर्राष्ट्रीय रूप से प्रसिद्ध चित्रकार, लेखक एवं कला समालोचक हैं। 1983 में कला के प्रति उनके योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उनकी अतियथार्थवादी कविताओं के संग्रह 'अथवा ' को महत्वपूर्ण समीक्षात्मक प्रशंसा प्राप्त हुई है। उन्होंने घर जतन शीर्षक नामक एक गद्य श्रृंखला भी लिखी है और क्षितिज के कई विशिष्ट अंकों का सम्पादन भी किया है।
शेख का जन्म 1937 में सुरेंद्रनगर, गुजरात, भारत में हुआ। उन्होंने ललित कला संकाय, बड़ोदा एवं रॉयल कॉलेज ऑफ आर्ट, लंदन में चित्रकला का अध्ययन किया।[1]
गुलाम ने 1960 में अपने कैरियर की शुरूआत की जब वे ललित कला संकाय, एम.एस. विश्वविद्यालय, बड़ोदा में एक शिक्षक के रूप में शामिल हुए. उनके शिक्षण पदों में ललित कला संकाय, बड़ोदा में कला के इतिहास (1960-63 और 1967-81) का अध्यापन करना एवं ललित कला संकाय, बड़ोदा में चित्रकला के प्राध्यापक के रूप में पढ़ाना (1982-1993) शामिल हैं। 1987 एवं 2002 में वे शिकागो कला संस्थान में एक अभ्यागत कलाकार (विजिटिंग आर्टिस्ट) एवं सिविटेल्ला रैनियेरी केन्द्र, अंबरटाइड, इटली (1998), पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय (2002) एवं मोंटाल्वो, कैलिफोर्निया (2005) में अपने निवास के दौरान एक लेखक/कलाकार रहे हैं।
भारतीय कला की दुनिया में शेख चार से अधिक दशकों तक एक प्रमुख हस्ती (शख्सियत) रहे हैं। उन्होंने पूरी दुनिया में प्रमुख प्रदर्शनियों में भाग लिया है और उनकी कृतियाँ नई दिल्ली में आधुनिक कला की राष्ट्रीय दीर्घा (गैलरी), लंदन में विक्टोरिया एवं अल्बर्ट संग्रहालय एवं सेलम, संयुक्त राज्य अमेरिका के पीबॉडी एसेक्स संग्रहालय सहित निजी एवं सार्वजनिक संकलनों (संग्रहों) में प्रदर्शित की गई हैं। गुलाम न केवल एक कलाकार के रूप में बल्कि एक शिक्षक एवं लेखक के रूप में भी सक्रिय रहे हैं।
1937 में सुरेंद्रनगर, गुजरात में जन्मे, शेख ने बड़ौदा को अपने शहर के रूप में अपनाया. उन्होंने बड़ोदा के जख्म को अपना जख्म समझा एवं अपनी कृतियों में उसका वर्णन किया। चैतन्य संब्रनी लिखते हैं कि "शेख की कला वह है जो अपने स्वभाव से ही वर्णन करने का काम करती है और इसलिए संसार का पुनः सृजन करती है। इस विवरणात्मक एवं संसार का मान-चित्रण करने के कार्य के बीच एक गहरा संबन्ध है जो बोलने वाले पात्र को दुनिया को अपनी कहकर संबोधित करने की संभावना प्रदान करता है". हाल ही में शेख मैप्पा मुंडी (Mappa Mundi) श्रृंखला पर काम कर रहे थे जहाँ वे नए क्षितिज को परिभाषित करते हैं और उसमें अपने आप को तलाशने पर विचार करते हैं। शेख लघु पुण्य स्थलों से प्रेरित इस व्यक्तिगत जगत का अर्थ लगाते हैं जहाँ जहाँ वे दर्शकों को अपने मैप्पा मुंडी (दुनिया का मध्य यूरोपीय नक्शा) का निर्माण करने के लिये को आजादी का इस्तेमाल करने को अनुप्रेरित करते हैं। साहित्यिक परंपरा खासकर सूफी मत (सूफीवाद) की उनकी गहरी समझ उन्हें अपनी रचनाओं में दृश्यात्मक या चित्रात्मक दोहों (शेरों) की सृष्टि में सक्षम बनाती है।
गुलाम मोहम्मद शेख अपनी कलाकार पत्नी नीलिमा के साथ, बड़ोदरा, भारत में रहते हैं।
सम्मान.