गोविंद सखाराम सरदेसाई | |
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जन्म |
17 मई 1865[1] रत्नागिरि जिला |
मौत |
29 नवम्बर 1959[1] ![]() |
नागरिकता |
ब्रिटिश राज, भारत ![]() |
पेशा |
लेखक,[1] इतिहासकार, विश्वविद्यालय शिक्षक ![]() |
पुरस्कार |
पद्म भूषण[2] ![]() |
गोविन्द सखाराम सरदेसाई (17 मई 1865 - 1959) का मराठों के अर्वाचीन इतिहासकारों में अग्रगण्य स्थान है। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९५७ में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
गोविन्द सखाराम सरदेसाई का जन्म 17 मई 1865 को कोंकण, तत्कालीन महाराष्ट्र, के गोविल ग्राम में हुआ। वह कर्हाड ब्राह्मण थे और इनके पितामह ने छत्रपति शिवाजी, पेशवा, प्रतिनिधि इत्यादि की सेवा की। बाद में आर्थिक स्थिति गिर जाने के कारण पिता सखाराम महादेव ने खेती की। गोविन्द सखाराम का बाल्यकाल काफी कठिनाई से बीता। शिक्षा, रत्नगिरि, फर्ग्युसन कालेज पूना और एलफिंस्टन कालेज बंबई, में प्राप्त की। 1888 में बी. ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद बड़ौदा रियासत के महकमा खास में उनकी नियुक्ति हो गई और अगले 37 वर्ष तक बड़ौदा राज्य की सेवा में रहे तथा जागीरदारों के लड़कों और महाराजकुमार को शिक्षा देने का कार्य भी करते रहे। 1892 और 1911 के बीच वे सर सयाजीराव गायकवाड़ के साथ कई बार यूरोप गए। गोविंद सखाराम को पारिवारिक सुख न मिल सका। उनके दोनों प्रतिभाशाली पुत्र युवावस्था में ही तपेदिक के शिकार हो गए। 1925 में उन्होंने राज्य से मनमुटाव के कारण एक छोटी पेंशन पर अवकाश ग्रहण किया।
उन्हें बाल्यकाल से ही इतिहास की ओर रुचि थी। उन्होंने विविध विषयों पर पुस्तकें लिखी और मराठी में अनुवाद किया। 1899 में "मुसलमानी रियासत" प्रकाशित की (संशोधित संस्कण 1927-28)। तीन वर्ष बाद "मराठी रियासत" का प्रथम खंड छपा। यह रचना 9 खंडों में अगले तीस वर्षों में पूरी हुई और इसी बीच विविध खंडों के कई संशोधित खंड भी प्रकाशित हुए। यदुनाथ सरकार से उनका संपर्क 1904 में प्रारंभ हुआ और एक आजीवन मैत्री में परिणत हो गया। यदुनाथ सरकार से ऐतिहासिक विषयों पर उनका पत्रव्यवहार 1958 में दो जिल्दों में प्रकाशित हुआ (Life and Letters of Sir Jadunath Sarkar, ed. H. R. Gupta)। अवकाश ग्रहण करने के बाद उनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य पेशवा दफ्तर के अभिलेखों का 45 जिल्दों में बंबई सरकार के तत्वावधान में प्रकाशन था (पेशवे दफ्तर निवडक कागदपत्र, Selections from the Peshwa Daftar ; 1930-1934)। मराठी इतिहास के लिए और 18वीं शती के इतिहास के लिए यह ग्रंथ बहुमूल्य है, यद्यपि पैसों की तंगी, सरकार जल्दबाजी इत्यादि के कारण संपादकीय दृष्टि से इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हैं।
मराठा इतिहास के अपने लंबे अध्ययन का निचोड़ सरदेसाई ने अपनी पुस्तक 'न्यू हिस्टरी ऑव द मराठाज़' (New History of the Marathas, हिंदी में- मराठों का नवीन इतिहास, 1961-1964) में छापा। यह ग्रंथ मराठा इतिहास की पुरानी और नवीन अध्ययनपद्धति के बीच की कड़ी है।
मृत्यु पूना के पास अपने निवासस्थान कमशेट में हुई।[3]