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गौतमीपुत्र सातकर्णी सातवाहन राजवंश के 23 वे सम्राट थे। गौतमीपुत्र सातकर्णी के पिता का नाम शिवस्वाती तथा माता का नाम गौतमी बलश्री था।गौतमीपुत्र सातकर्णी सातवाहन वंश के सबसे महान शासक थे। उन्होने विदेशी शक, यवन, पहल्लव इन जैसे विदेशी आक्रमणकारीयो को हराया और सनातन वैदिक आर्य हिंदू धर्म का और दक्षिण भारत का रक्षण किया। उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह था की उन्होने विदेशी शक क्षत्रपो के राजा नहपान को हराया उनकी अंतिम लड़ाई महाराष्ट्र के नाशिक के पास गोवर्धन क्षेत्र मे हुई। इस लढाई मे उन्होने शको का संपूर्ण पराभव किया नहपान का शिरच्छेद किया और इस तरह दक्षिण भारत को विदेशी शको के आक्रमण से मुक्त किया। इस विजय की खुशी में उन्होने अपनी राजधानी प्रतिष्ठानपुरी यानी आज के पैठण मे एक विजयस्तंभ का निर्माण किया जो आज भी है उसे आज तीर्थखाम कहा जाता है। और शालिवाहन शक इस हिंदू कालगणना की सुरुवात की जो आज भी दक्षिण भारत में उपयोग की जाती है। अपने नाम के आगे अपनी माता का नाम लगाने वाले सातवाहन वंश के यह पहले सम्राट हुए। उनका नाम सातकर्णी था और माता का नाम लगाने के कारण गौतमीपुत्र सातकर्णी ऐसा नाम करण हुआ। गौतमीपुत्र शातकर्णी ने इसवी 106 स्व 130 तक ऐसे 24 वर्ष शासन किया ऐसा कुछ इतिहासकारो का मानना है।
गौतमीपुत्र के समय तथा उनकी विजयों के बारें में हमें उनकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों से सम्पूर्ण जानकारी मिलती है। उनके सन्दर्भ में हमें इस लेख से यह जानकारी मिलती है
उनका वर्णन शक, यवन तथा पहलाव शासको के विनाश कर्ता के रूप में हुआ है। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात वंश के शक शासक नहपान तथा उसके वंशजों की उसके हाथों हुई पराजय थी।
जोगलथम्बी (नासिक) समुह से प्राप्त नहपान के चान्दी के सिक्कें जिन्हे की गौतमी पुत्र सातकर्णी या शातकर्णी ने दुबारा ढ़लवाया तथा अपने शासन काल के अठारहवें वर्ष में गौतमी पुत्र द्वारा नासिक के निकट पांडु-लेण में गुहादान करना- ये कुछ ऐसे तथ्य है जों यह प्रमाणित करतें है कि उसने शक शासकों द्वारा छीने गए प्रदेशों को पुर्नविजित कर लिया। नहपान के साथ उनका युद्ध उसके शासन काल के 17वें और 18वें वर्ष में हुआ तथा इस युद्ध में जीत कर र्गातमी पुत्र ने अपरान्त, अनूप, सौराष्ट्र, कुकर, अकर तथा अवन्ति को नहपान से छीन लिया। इन क्षेत्रों के अतिरिक्त गौतमी पुत्र का ऋशिक (कृष्णा नदी के तट पर स्थित ऋशिक नगर), अयमक (प्राचीन हैदराबाद राज्य का हिस्सा), मूलक (गोदावरी के निकट एक प्रदेश जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी) तथा विदर्भ (आधुनिक बरार क्षेत्र) आदि प्रदेशों पर भी अधिपत्य था। उसके प्रत्यक्ष प्रभाव में रहने वाला क्षेत्र उत्तर में मालवा तथा काठियावाड़ से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूर्व में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैला हुआ था।
उसने त्रि-समुंद्र-तोय-पीत-वाहन उपाधि धारण की जिससे यह पता चलता है कि उसका प्रभाव पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक था। ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले गौतमी पुत्र शातकर्णी द्वारा नहपान को हराकर जीते गए क्षेत्र उसके हाथ से निकल गए। गौतमी पुत्र से इन प्रदेशों को छीनने वाले संभवतः सीथियन जाति के ही करदामक वंश के शक शासक थे। इसका प्रमाण हमें टलमी द्वारा भूगोल का वर्णन करती उसकी पुस्तक से मिलता है। ऐसा ही निष्कर्ष 150 ई0 के प्रसिद्ध रूद्रदमन के जूनागढ़ के शिलालेख से भी निकाला जा सकता है। यह शिलालेख दर्शाता है कि नहपान से विजित गौतमीपुत्र शातकर्णी के सभी प्रदेशों को उससे रूद्रदमन ने हथिया लिया। इस महान शासक की कई उपाधियां है जैसे आगमन निलय वेणुकटक स्वामी, दक्षिणापथपती, त्रिसमुद्रतोयपितवाहन एसी थी। यह वैदिक सनातन हिंदू धर्म के अनुयायी और प्रचंड धर्म अभिमान इथे नाशिक के शिलालेख में गौतमीपुत्र सातकर्णी की तुलना भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान परशुराम, अर्जुन भीमसेन तथा सूर्यवंशी राजा अंबरीश के साथ की है।