घुँघरू कई जगह लोकनृत्यों के दौरान पाँवों में बाँधा जाने वाला वाद्य यंत्र है।[1] [2] यह धातु की बनी हुई खोखली गोलियाँ जिनके अन्दर धातु की ही छोटी गोलियाँ होती है जिनके आपस में टकराने से ध्वनि होती है। इस तरह की कई गोलियों को चमड़े की पट्टी में गूँथकर बनाया जाता है। इन्हें नर्तक या नर्तकियाँ पैरों में बाँधते हैं।[3]
घन वाद्य के अंतर्गत आने वाले वाद्य घुँघरू पारंपरिक, यानी शास्त्रीय नृत्य का एक आवश्यक घटक है, ये मुख्य रूप से लयबद्ध होते हैं तथा इसमें विशेष ट्यूनिंग (tuning) की आवश्यकता नहीं होती है। घुँघरू पहनने का उद्देश्य पैरों की हरकत के अनुसार ध्वनि को उत्पन्न करना होता है। घुँघरू की एक स्ट्रिंग (string) में 50 घंटी से 200 घंटी तक एक साथ गठित हो सकती है। घंटी और अतिरिक्त तारों के बढ़ते सेट के साथ, एक नर्तक अपनी तकनीकी क्षमता में आगे बढ़ता है।[4]
घुँघरू, शास्त्रीय नर्तकियों के प्रमुख आभूषण होने के अलावा, उन सभ्यताओं से भी जुड़े थे जो नृत्य करते समय उन्हें पहनते थे। इसलिए, आम महिलाओं द्वारा घुँघरू का उपयोग सामाजिक सीमाओं के कारण बाधित था। समय बीतने के साथ, घुँघरू ने कविता, साहित्य और सिनेमा के माध्यम से अपने अस्तित्व को हासिल किया है, जिसे नर्तकियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले गहने के रूप में चित्रित किया गया है।[5]