चंदेरी Chanderi | |
---|---|
![]() किला कोठी से चंदेरी का दृश्य | |
निर्देशांक: 24°42′47″N 78°07′59″E / 24.713°N 78.133°Eनिर्देशांक: 24°42′47″N 78°07′59″E / 24.713°N 78.133°E | |
देश | ![]() |
राज्य | मध्य प्रदेश |
ज़िला | अशोक नगर ज़िला |
ऊँचाई | 456 मी (1,496 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 33,081 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, बुंदेली |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 473446 |
दूरभाष कोड | 07547 |
वाहन पंजीकरण | MP-67 |
चंदेरी (Chanderi) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोक नगर ज़िले का एक ऐतिहासिक नगर है। यह इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी है। मालवा और बुन्देलखंड की सीमा पर बसा यह नगर शिवपुरी से १२७ किलोमीटर, ललितपुर से ३७ किलोमीटर और ईसागढ़ से लगभग ४५ किलोमीटर की दूरी पर है। बेतवा नदी के पास बसा चंदेरी पहाड़ी, झीलों और वनों से घिरा एक शांत नगर है, जहां सुकून से कुछ समय गुजारने के लिए लोग आते हैं। खंगार राजपूतों और मालवा के सुल्तानों द्वारा बनवाई गई अनेक इमारतें यहां देखी जा सकती है। इस ऐतिहासिक नगर का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। ११वीं शताब्दी में यह नगर एक महत्वपूर्ण सैनिक केंद्र था और प्रमुख व्यापारिक मार्ग भी यहीं से होकर जाते थे। वर्तमान में बुन्देलखंडी शैली में बनी हस्तनिर्मित साड़ियों के लिए चन्देरी काफी चर्चित है। यह प्राचीन जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।[1][2][3]
चंदेरी को चित्तौड़ के राणा सांगा ने सुलतान महमूद खिलजी से जीतकर अपने अधिकार में कर लिया था। लगभग सन् १५२७ में मेदिनी राय नाम के एक राजपूत सरदार ने सम्राट राणा सांगा के सहयोग से चंदेरी में अपनी शक्ति स्थापित की। उस समय तक अवध को छोड़ सभी प्रदेशों पर मुगल शासक बाबर का प्रभुत्व स्थापित हो चुका था। फिर रुद्र प्रताप देव ने इसे जीता और बुन्देला शाशन स्थापित किया व बुन्देलखंड राज्य में शामिल कर लिया। 1857 में यंहा के बुन्देला राजा मर्दनसिंह जूदेव बहादुर ने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
यह किला चन्देरी का सबसे प्रमुख आकर्षण है। बुन्देला राजपूत राजाओं द्वारा बनवाया गया यह विशाल किला उनकी स्थापत्य कला की जीवंत मिशाल है। किले के मुख्य द्वार को खूनी दरवाजा कहा जाता है। यह किला पहाड़ी की एक चोटी पर बना हुआ है। यह पहाड़ी की चोटी नगर से 71 मीटर ऊपर है। यह मुगावली से ३८ किलोमीटर मीटर दूर है।
इस महल को 1445 ई. में मालवा के महमूद खिलजी ने बनवाया था। यह महल चार बराबर हिस्सों में बंटा हुआ है। कहा जाता है कि सुल्तान इस महल को सात खंड का बनवाना चाहता था लेकिन मात्र ३ खंड का ही बनवा सका। महल के हर खंड में बॉलकनी, खिड़कियों की कतारें और छत की गई शानदार नक्कासियां हैं।
इस खूबसूरत ताल को बुन्देला राजपूत राजाओं ने बनवाया था। ताल के निकट ही एक मंदिर बना हुआ है। राजपूत राजाओं के तीन स्मारक भी यहां देखे जा सकते हैं। चन्देरी नगर के उत्तर पश्चिम में लगभग आधे मील की दूरी पर यह ताल स्थित है।
चन्देरी से लगभग ४५ किलोमीटर दूर ईसागढ़ तहसील के कडवाया गांव में अनेक खूबसूरत मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में एक मंदिर दसवीं शताब्दी में कच्चापगहटा शैली में बना है। मंदिर का गर्भगृह, अंतराल और मंडप मुख्य आकर्षण है। चंदल मठ यहां का अन्य लोकप्रिय और प्राचीन मंदिर है। इस गांव में एक क्षतिग्रस्त बौद्ध मठ भी देखा जा सकता है।
ओल्ड चन्देरी सिटी को बूढ़ी नाम से जाना जाता है। 9वीं और 10वीं शताब्दी में बने जैन मंदिर यहां के मुख्य आकर्षण हैं। जिन्हें देखने हेतु हर साल बड़ी संख्या में जैन धर्म के अनुयायी आते हैं।
यह स्मारक कुछ अनजान राजकुमारियों को समर्पित है। स्मारक के अंदरूनी हिस्से में शानदार सजावट की गई है। स्मारक की संरचना ज्यामिती से प्रभावित है।
चन्देरी में बनी जामा मस्जिद मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी मस्जिदों में एक है। मस्जिद के उठे हुए गुंबद और लंबी वीथिका काफी सुंदर हैं।
14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में चंदेरी चिशती सूफ़ी परम्परा का केंद्र बना। मौलाना वजीहुद्दीन यूसुफ (मृत्यु 729 हिजरी/ 1329 ईस्वी) दिल्ली के शेख़ निज़ामुद्दीन औलिया (1238-1325) के एक प्रसिद्ध शिष्य थे जिन्होंने धार के मौलाना कमालुद्दीन और उज्जैन के मुग़ीसुद्दीन के साथ अध्ययन किया।[4] 1325 में मौलाना यूसुफ़ को शेख़ निज़ामुद्दीन के अंगरखे और टोपी के रूप में इजाज़त दी गई और शेख़ के सिलसिले में खलीफ़ा का पद प्राप्त हुआ।[5] स्थानीय रूप से मख़दूम शाह-ए विलायत के रूप में प्रतिष्ठित, इन सूफ़ी संत की पुण्यतिथि (उर्स) हर साल 27 से 29 मार्च को बडी धूम-धाम से मनाई जाती है, जब उनके भक्त चादर चढ़ाने और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करने के लिए दरगाह पर आते हैं।[6] इसके अलावा मौलाना वजीहुद्दीन की दरगाह परिसर में एक मस्जिद, एक ख़ानका और कई जाने-माने लोगों की कब्रें है, जिनमें से एक का नाम लिखा मिलता है शेख़ बरकत इब्न नसीब इब्न सिराज जिनका निधन सोमवार 13 मुहर्रम 924 हिजरी (25 जनवरी 1518) को हुआ था।[7]
चन्देरी से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में देवगढ़ किला स्थित है। किले के भीतर 9वीं और 10 वीं शताब्दी में बने जैन मंदिरों का समूह है जिसमें प्राचीन काल की कुछ मूर्तियां देखी जा सकती हैं। किले के निकट ही 5वीं शताब्दी का विष्णु दशावतार मंदिर बना हुआ है, जो अपनी सुंदर मूर्तियों और नक्कासीदार स्तंभों के लिए जाना जाता है।
ग्वालियर चन्देरी का निकटतम एयरपोर्ट है, जो लगभग 227 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चन्देरी पहुंचने के लिए यहां से बसों और टैक्सियों की व्यवस्था है।
अशोक नगर और ललितपुर निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। यहां से नियमित अंतराल में बसें चन्देरी के लिए चलती हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग 346 यहाँ से गुज़रता है और इसे देशभर से जोड़ता है। राज्य के अधिकांश हिस्सों से सड़क मार्ग के द्वारा चन्देरी पहुंचा जा सकता है। झांसी, ग्वालियर, टीकमगढ़ आदि शहरों से नियमित बसों की सुविधा चन्देरी के लिए उपलब्ध है।