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चंद्रताल | |
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स्थान | मध्य हिमालय, लाहौल घाटी, |
निर्देशांक | 32°28′31″N 77°37′01″E / 32.47518°N 77.61706°E |
द्रोणी देश | भारत |
अधिकतम लम्बाई | 1 कि॰मी॰ (3,280 फीट 10 इंच) |
अधिकतम चौड़ाई | 0.5 कि॰मी॰ (1,640 फीट 5 इंच) |
सतही ऊँचाई | 4250 m |
द्वीप | |
आधिकारिक नाम: Chandertal Wetland | |
अभिहीत: | 8 नवम्बर 2005 |
चंद्रताल हिमालय पर लगभग 4,300 मीटर (14,100 फीट) की ऊँचाई पर स्थित एक झील है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश[1] के लाहौल-स्पीति जिले में, लाहौल व स्पीति घाटियों की सीमा पर कुंजम पास के निकट स्थित चंद्र ताल से चंद्र नदी का उद्गम होता है जो आगे चलकर भागा नदी से मिलकर चंद्रभागा और जम्मू-कश्मीर में जाकर चेनाब कहलाने लगती है। कॉपेन जलवायु वर्गीकरण मानकों के अनुसार अतिशीत जलवायु वाला यह स्थान रामसर आर्द्रभूमि के रूप में वर्गीकृत है।
चंद्रमा जैसे आकार के कारण इस झील का नाम "चंद्रताल"पड़ा। लाहौल-स्पीति जिले के लाहौल क्षेत्र में स्थित यह दुर्गम झील ट्रेकिंग व कैंपिंग जैसी रुचि वाले साहसी पर्यटकों में बहुत प्रसिद्ध है।
चन्द्र ताल का व्यास लहभग २.५ किलोमीटर है तथा झील के चारों ओर विशाल मैदान हैं, जो कि वसंत/गरमी के मौसम में कई प्रकार की वनस्पति व जंगली फूलों से भर जाता है। चरवाहे इसे चरागाहों के रूप में प्रयोग करते हैं और पर्यटक कैंप लगाने के लिए।[2] झील के बीचों बीच एक टापू भी है, जिसे समुद्र टापू कहा जाता है।
आश्चर्य की बात यह भी है कि इस झील में पानी के आने का कोई स्रोत दिखाई नहीं पड़ता जबकि निकलने का रास्ता स्पष्ट है। इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि पानी का स्रोत झील में धरती के नीचे से ही है।
चंद्र ताल से 30 कि॰मी॰ (98,000 फीट) की दूरी पर सूरज ताल भी दर्शनीय है।
चंद्र ताल से चंद्र नदी का उद्गम होता है और सूरज ताल से भागा नदी का। लाहौल स्पीति के जिला मुख्यालय केलांग से ७ किमी दूर, पत्तन घाटी के टाण्डी[3] गांव के पास दोनों मिल कर चंद्रभागा नदी का रूप ले लेती हैं जो कि जम्मू-कश्मीर में जाकर चेनाब कहलाने लगती है।
चंद्र ताल एक अति दुर्गम स्थान है। सर्दियों में तो यहां पहुंचा ही नहीं जा सकता। केवल मई के अंत से अक्टूबर प्रारंभ तक के समय में यह झील गम्य है।
निकटतम सुविधा संपन्न स्थान मनाली[4] है, जो कि राष्ट्रीय राजमार्ग २१ पर स्थित हिमाचल का एक अतिप्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। मनाली से भी आगे रोहतांग पास से होते हुए ७-८ घंटे का सफर करके ही यहां पहुंचा जा सकता है। मनाली से चलने से पहले ईंधन, वाहन की मरम्मत आदि व खाने पीने के सामान का पूरा इंतज़ाम कर लेना चाहिए। रोहतांग पास के आगे लगभग लगभग बिलकुल ही निर्जन क्षेत्र है।
रोहतांग दर्रा पार करने के बाद पहला गाँव ग्राम्फू है जहाँ से एक रास्ता लद्दाख की ओर चला जाता है तथा दूसरा लाहौल स्पीति की ओर। चंद्रताल यहाँ से ५० किमी है। मुख्य सड़क छतड़ू, छोटा दड़ा, होते हुए बातल तक है। बातल में कुल दो इमारतें हैं जिनमें से एक है सरकारी विश्राम गृह और दूसरा है ४० साल पुराना चंद्रा ढाबा, जो अपने आप में एक विशिष्ट स्थान है। इस ढाबे को चला रहे दंपत्ति पिछले ४० वर्षों में सैकड़ों पर्यटकों की जान बचा चुके हैं जिसके लिए उन्हें कई सम्मान भी दिए गए हैं। यदि कहा जाए कि चंद्रताल की बोधगम्यता इस ढाबे की मौजूदगी के कारण ही संभव है तो गलत ना होगा क्योंकि इसके अतिरिक्त यहाँ पर दूर दूर तक कोई ईंसानी बस्ती नहीं है, सुविधाओं का तो कहना ही क्या। इस इलाके में एक पेड़ तक नहीं है जैसा कि इस क्षेत्र के चित्रों में स्पष्ट देखा जा सकता है।
बातल से वाहन योग्य एक सड़क भी है, जिससे चंद्र ताल 14 कि॰मी॰ (46,000 फीट) की दूरी पर पड़ती है, किंतु अगस्त से पहले इस सड़क की हालत प्रायः खराब ही होती है।
यहाँ पहुँचने का दूसरा रास्ता कुंजम पास से है जो केवल पैदल ही रास्ता है और वो लगभग 8 कि॰मी॰ (26,000 फीट) है। चंडीगढ़ से शिमला, रामपुर बुशहर, किन्नौर के रास्ते स्पीति घाटी के नाको, किब्बर, काज़ा से होते हुए कुंजम पास या बातल आने के एक लंबे रास्ते का भी विकल्प है।
झील के किनारे विशाल घास के मैदान हैं। वसंत ऋतु के दौरान, इन घास के मैदानों को सैकड़ों प्रकार के जंगली फूलों से सजाया जाता है।[5] 1871 में, कुल्लू के सहायक आयुक्त, हरकोर्ट ने बताया कि चद्र ताल के उत्तर में अच्छी घास का एक मैदान था, जहां चरवाहे कुल्लू और कांगड़ा से चरने के लिए बड़े झुंड लाते थे।[6] अत्यधिक चराई के कारण, घास के मैदान अब खराब हो रहे हैं।[7]चंद्र ताल कुछ प्रजातियों का घर है जैसे हिम तेंदुआ, स्नो कॉक, चुकोर, ब्लैक रिंग स्टिल्ट, केस्ट्रेल, गोल्डन ईगल, चॉफ, रेड फॉक्स, हिमालयन आइबेक्स और ब्लू शीप। समय के साथ, इन प्रजातियों ने विशेष शारीरिक विशेषताओं को विकसित करके ठंडी शुष्क जलवायु, तीव्र विकिरण और ऑक्सीजन की कमी के लिए अनुकूलित किया है। रूडी शेल्डक जैसी प्रवासी प्रजातियां गर्मियों में पाई जाती हैं।[8]
केलांग (सीधा रास्ता नहीं, वाया बातल, ग्राम्फू) | बरालाचा ला, सारचू, लद्दाख (सीधा रास्ता नहीं, वाया बातल, ग्राम्फू, केलांग) | लद्दाख (सीधा रास्ता नहीं, वाया बातल, ग्राम्फू, केलांग) | ||
ग्राम्फू, रोहतांग पास | (वाया बातल) लोसर, | |||
'चंद्रताल' | ||||
मनाली, कुल्लू (वाया बातल, ग्राम्फू, रोहतांग पास) | बातल | (पैदल रास्ता मात्र)कुंजम पास (वाया बातल, लोसर) काज़ा, किब्बर, क्यी मठ, नाको, पूह, किन्नौर, तिब्बत |
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