चॉल (मराठी : चाळ) शहर मुम्बई में जगह की कमी और भीड़भाड़ के कारण एक खास तरह की बनाई गईं इमारतें हैं। ये इमारतें बहुमंजिला होती हैं , जिनमें एक-एक कमरे वाली आवासीय इकाइयाँ बनाई जाती थीं। इमारत के सारे कमरों के सामने एक खुला बरामदा या गलियारा होता है और बीच में दालान होता है।
चॉल की शुरुआत लगभग १८वीं सदी में हुईं थी उस समय भारत पर ब्रिटिश का राज था। जनसंख्या की अधिकता के कारण चॉलों का निर्माण करवाया गया।
चॉल में कई सुविधाएँ होती है। यहाँ पर एक साथ कई परिवार अपने सुख-दु:ख को बांटकर एक साथ रहते हैं तथा सभी लोग एक-दूसरे के सुख-दु:ख में भागीदार होते थे। [1][2]
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