जमात-ए-इस्लामी कश्मीर | |
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महासचिव | फहीम रमज़ान |
गठन | 13 अक्टूबर 1954 (01 कार्तिक, कृष्ण प्रतिपदा, 2011 विक्रम संवत् ) |
मुख्यालय | श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर, भारत |
विचारधारा | |
भारत की राजनीति राजनैतिक दल चुनाव |
जमात-ए-इस्लामी कश्मीर या जमात-ए-इस्लामी जम्मू एवं कश्मीर जमात-ए-इस्लामी हिन्द से भिन्न, जम्मू एवं कश्मीर में एक कैडर-आधारित सामाजिक-पान्थिक-राजनीतिक सङ्गठन है। कश्मीर सङ्घर्ष पर सङ्गठन की घोषित स्थिति यह है कि जम्मू एवं कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और इस विषय को संयुक्त राष्ट्र के अनुसार या भारत, पाकिस्तान तथा जम्मू एवं कश्मीर के वास्तविक प्रतिनिधियों के मध्य त्रिपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिए।
भारत सरकार ने फरवरी २०१९ में इस संगठन को पाँच वर्ष के प्रतिबन्धित कर दिया। प्रतिबन्ध के विज्ञापन में कहा गया था कि यह अलगाववाद को बढ़ावा देती है।
27 फरवरी, 2024 को, भारत के गृह मंत्रालय ने जमात-ए-इस्लामी जम्मू और कश्मीर पर लगे प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया। गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA), 1967 के तहत इस संगठन को "गैरकानूनी संगठन" घोषित किया गया था, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के लिए हानिकारक गतिविधियों का हवाला दिया गया था।[1][2] भारत सरकार ने जमात-ए-इस्लामी जम्मू और कश्मीर के खिलाफ दर्ज 47 मामलों की एक सूची प्रस्तुत की, जिसमें एनआईए का एक मामला भी शामिल है जिसमें हिंसक और अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए धन इकट्ठा करने पर प्रकाश डाला गया है। एनआईए की चार्जशीट से आगे पता चला कि इन फंडों का इस्तेमाल हिज़बुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी समूहों के गुर्गों द्वारा सार्वजनिक अशांति भड़काने और सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिए किया गया था।[3] सरकार ने ज़ोर देकर कहा कि जमात-ए-इस्लामी जम्मू और कश्मीर आतंकवादी समूहों के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है, और जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ भारत के अन्य हिस्सों में भी सक्रिय रूप से उग्रवाद और आतंकवाद का समर्थन करता है।[4][5]
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