ज़माने को दिखाना है | |
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ज़माने को दिखाना है का पोस्टर | |
निर्देशक | नासिर हुसैन |
लेखक | सचिन भौमिक |
निर्माता | नासिर हुसैन |
छायाकार | मुनीर खान |
संपादक | जफर सुल्तान |
संगीतकार | आर॰ डी॰ बर्मन |
प्रदर्शन तिथियाँ |
30 दिसंबर, 1981 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
ज़माने को दिखाना है 1981 में बनी हिन्दी भाषा की संगीतमय फिल्म है। इसका निर्माण और निर्देशन नासिर हुसैन ने किया। फिल्म में ऋषि कपूर, पद्मिनी कोल्हापुरी, अमजद ख़ान, योगिता बाली, कादर खान, असरानी और सिम्पल कपाड़िया किरदार निभाते हैं। यह फिल्म नायिका के रूप में पद्मिनी की पहली फिल्म थी।[1] उन्होंने पहले बाल कलाकार के रूप में और इंसाफ का तराजू (1980) जैसे में सहायक अभिनेत्री के रूप में काम किया था।
मजरुह सुल्तानपुरी के गीतों के साथ राहुल देव बर्मन द्वारा रचित संगीत सफल रहा, लेकिन फिल्म को नासिर हुसैन के उत्पादन से जुड़ी सफलता नहीं मिली। चूँकि उनकी पिछली तीन फिल्में अत्यंत सफल रही थीं (हम किसी से कम नहीं, यादों की बारात और कारवाँ)।
अमीर उद्योगपति, नंदा (श्रीराम लागू), क्रोधित हो जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि उनका सबसे बड़ा बेटा रमेश एक गरीब महिला सीमा के प्यार में पड़ गया है और उससे शादी करना चाहता है। वह अपने बेटे से कहते हैं कि यदि वह उससे शादी करता है, तो वह उसे अपने घर-जायदाद से बेदखल कर देंगे। इसके जवाब में, रमेश सीमा से शादी कर लेता है और नंदा का घर छोड़ देता है। जब नंदा का छोटा बेटा, रवि (ऋषि कपूर) 10 साल बाद विदेश से घर लौटता है, तो उसे बताया जाता है कि उसका भाई व्यवसाय के काम के कारण बाहर गया है।
रवि को पता चलता है कि रमेश को उनके पिता द्वारा जाने के लिए कहा गया था। वह रमेश के बारे में अपने पिता का मन बदलने में सफल होता और रमेश को ढूंढने की कोशिश करने लगता है। उसे पता चलता है कि रमेश और सीमा अब जीवित नहीं हैं। लेकिन सीमा ने एक बेटे को जन्म दिया था और उसे अपनी बहन कंचन (पद्मिनी कोल्हापुरी) की देखभाल में छोड़ दिया था। रवि, कंचन से मिलता है और दोनों एक दूसरे के साथ प्यार में पड़ जाते हैं। जब कंचन को पता चलता है कि रवि नंदा का बेटा है, तो वह गुस्सा हो जाती है और रवि के साथ किसी भी तरह का रिश्ता रखने से इंकार कर देती है। क्योंकि उसे यकीन है कि जब नंदा को पता चलेगा है कि वह गरीब है और सीमा से संबंधित है, तो वह भी उनके द्वारा खारिज कर दी जाएगी। रवि और कंचन को यह नहीं पता कि नंदा का सौतेला भाई शेखर (कादर खान) का एक मकसद है, वह कैसे भी रमेश के बेटे को अपनाना चाहता है।
फिल्म का सबसे प्रसिद्ध गीत मोहम्मद रफी और आशा भोंसले द्वारा "पूछो ना यार क्या हुआ" है। उस समय ये मधुर गीत बहुत लोकप्रिय रहा था।
सभी गीत मजरुह सुल्तानपुरी द्वारा लिखित; सारा संगीत आर॰ डी॰ बर्मन द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "पूछो ना यार क्या हुआ" | आशा भोंसले, मोहम्मद रफी, पद्मिनी कोल्हापुरी, ऋषि कपूर | 6:08 |
2. | "होगा तुमसे प्यारा कौन" | शैलेन्द्र सिंह | 4:41 |
3. | "दिल लेना खेल है दिलदार" | आर॰ डी॰ बर्मन | 8:00 |
4. | "बोलो बोलो कुछ तो बोलो" | आशा भोंसले, मोहम्मद रफी | 7:36 |
5. | "परी हो आसमानी तुम" | शैलेन्द्र सिंह, आशा भोंसले, ऋषि कपूर | 11:07 |