जागर का मतलब होता है जगाना। उत्तराखण्ड तथा नेपाल के पश्चिमी क्षेत्रोँ में कुछ ग्राम देवताओँ की पूजा कि जाती है, जैसे गंगनाथ, गोलु, भनरीया, काल्सण [ लटवा भंगरा ] आदि। बहुत देवताओँ को स्थानीय भाषा में 'ग्राम देवता' कहा जाता है। ग्राम देवता का अर्थ गांव का देवता है। अत: उत्तराखण्ड और डोटी के लोग देवताओँ को जगाने हेतु जागर लगाते हैँ।
जागर मन्दिर अथवा घर में कहीं भी किया जाता है। जागर "बाइसी" तथा "चौरास" दो प्रकार के होते हैँ. बाइसी बाईस दिनोँ तक जागर किया जाता है। कहीँ-कहीं दो दिन का जागर को भी बाईसी कहा जाता है। चौरास मुख्यतया चौधह दिन तक चलता है। पर कहिँ कहिँ चौरास को चार दिनोँ में ही समाप्त किया जाता है। जागर में "जगरीया" मुख्य पात्र होता है। जो रामायण, महाभारत आदी धार्मीक ग्रंथोँ की कहानीयोँ के साथ ही जीस देवता को जगाया जाना है उस देवता का चरित्र को स्थानीय भाषा में वर्णन करता है। जगरीया हुड्का (हुडुक), ढोल तथा दमाउ बजाते हुए कहानी लगाता है। जगरीया के साथ में दो तीन जने और रहते हैँ. जो जगरीया के साथ जागर गाते हैँ और कांसे की थाली को नगडे की तरह बजाते हैँ. जागर का दुसरा पात्र होता है "डंगरीया" (डग मगाने वाला) डंगरीया के शरीर में देवता चढता है। जगरीया के जगाने पर डंगरीया कांपता है और जगरीया के गीतोँ की ताल में नाचता है। डंगरीया के आगे चावल के दाने रखे जाते हैँ जिसे हाथ में लेकर डंगरीया और लोगोँ से पुछा गया प्रश्न का जवाफ देता है। कोही कोही डंगरीया आदमी का भुत भविष्य तथा वर्तमान सटिक बताते हैँ. जागर का तीसरा पात्र होता है स्योँकार (सेवाकार) स्योँकार उसे कहा जाता है जो अपने घर अथवा मन्दिर में जागर कराता है और जगरीया, डगरीया लगायत अन्य लोगोँ के लिए भोजन पानी का पुरा व्यवस्था करता है। जागर कराने से स्योँकार को इच्छित फल प्राप्ति का विश्वास किया जाता है।
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