जूनागढ़ बौद्ध गुफाएँ भारत के गुजरात राज्य के जूनागढ़ ज़िले में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। यह वास्तव में प्राकृतिक गुफ़ाएँ न होकर, शिलाओं में काटकर बनाएँ गए कक्षों के तीन समूहों का गुट है। इन कक्षों का निर्माण मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक महान के काल से लेकर पहली से चौथी शताब्दी ईसवी तक जारी रहा और इनमें बौद्ध भिक्षु निवास करा करते थे।[1]
खपरा कोडिय गुफाएँ पूरे जूनागढ़ बौद्ध गुफा परिसर की सबसे पुरानी और सबसे साधारण दिखने वाली गुफाएँ हैं। इनकी दीवारों पर लिखाईयों और अंकित अक्षरों के आधार पर इनका निर्माण तीसरी-से-चौथी शताब्दी ईसापूर्व में सम्राट अशोक के राजकाल में हुआ था।[1] यह गुफाएँ "खंगार महल" के नाम से भी जानी जाती हैं।[2] खपरा कोडिय गुफाएँ प्राचीन सुदर्शन झील के किनारे और उपरकोट दुर्ग से ज़रा बाहर उत्तर दिशा में पूर्व-पश्चिम दिशा में चलने वाली चट्टाने तराश कर बनाई गई थीं। यह झील अब नहीं है। इन गुफाओं के अन्दर जगह कम है, लेकिन इनमें पश्चिम में चतुराई से बनाए गए जलशयों से पानी की अच्छी व्यवस्था देखी जा सकती है। भिक्षु इन गुफाओं का प्रयोग वर्षाऋतु में करते थे। कुछ समय बाद इनके पत्थरों में दरारे पड़ने से पानी निवास-कक्षों में चूने लगा जिस कारणवश इन्हें छोड़ दिया गया। कथाओं के अनुसार भिक्षु इस स्थान को छोड़कर महाराष्ट्र चले गए जहाँ उन्होंने इसी प्रकार के, लेकिन इस से बड़े, निर्माण करे। बाद के काल में यहाँ से पत्थर खोदकर अन्य प्रयोगों में लगाने से इन गुफाओं को बहुत हानि हुई लेकिन इनकी सबसे ऊँची मंज़िल अभी-भी अस्तित्व में है।[3]
बावा प्यारा (या कभी-कभी "बावा प्यारे") गुफाएँ मोधीमठ के समीप ऊपरकोट दुर्ग से ज़रा बाहर दक्षिण दिशा में स्थित हैं और खपरा कोडिय गुफाओं से कहीं अच्छी हालत में हैं। इनका निर्माण सातवाहन राजकाल में पहली-से-दूसरी शताब्दी ईसवी में हुआ था।[1] चीनी धर्मयात्री हुएन-सांग के वृतांत के अनुसार इन्हें पहली शताब्दी ईसवी में बनाया गया।[2] इन गुफाओं के उत्तरी समूह में चार कक्ष गुफाएँ हैं जबकि दक्षिणपूर्वी समूह में चैत्य और एक बड़ा आंगन है।[1] समूह में तीन मंज़िलों पर बने १३ कक्ष हैं जिनकी कुल मिलाकर चट्टान में तराशी गई लम्बाई ४५ मीटर (१५० फ़ुट) है।[3] इनमें बौद्ध व जैन धर्मों की कलाकारी मिलती हैं।
यह गुफाएँ ऊपरकोट में एक ३०० फ़ुट गहरी खाई के पार स्थित हैं और आदि कदी वाव के पास हैं। इन्हें दूसरी-से-तीसरी शताब्दी ईसवी में तराशा गया और इनमें सातवाहन वास्तुकला के साथ-साथ यूनानी-स्किथी शैली का मिश्रण दिखता है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार "यह गुफा समूह तीन मंज़िलों पर बना है, जिसके भार वहन करने वाले स्तम्भ अर्ध-रूप से देखे जा सकते हैं लेकिन जिसकी केवल दो मंज़िलों पर ही ठीक से फ़र्श बने हुए हैं। सर्वोच्च मंज़िल पर एक गहरा जलाशय है जिसके तीन ओर बराम्दे और पश्चिमी व पश्चिमोत्तरी तरफ़ कक्षासन हैं। निचली मंज़िल में एक गलियारा और स्तम्भ हैं। इन स्तम्भों पर सुंदर नक्काशी करी गई है और इनके निचले, मध्यम और ऊपरी भागों पर अलग डिज़ाइन दिखते हैं।[1] गुफाओं में सुंदर स्तम्भ व द्वार, जलाशय और घोड़े की नाल के आकार की चैत्य खिड़कियाँ हैं। ध्यान लगाने के लिए एक सभागृह और कक्ष है।[4]