ज्या, कोटिज्या और उत्क्रमज्या

ज्या तथा अर्धज्या के अर्थ

'ज्या', 'कोटिज्या' तथा 'उत्क्रमज्या' नामक तीन त्रिकोणमितीय फलन भारतीय खगोलशास्त्रियों एवं गणितज्ञों द्वारा प्रतिपादित किये गये थे। वर्तमान समय में प्राप्त ग्रंथों में सबसे पहले ये सूर्यसिद्धान्त में मिलते हैं। वस्तुतः ये वृत्त के चाँप के फलन हैं न कि कोण के फलन। किन्तु आज हमे ज्ञात है कि ज्या और कोज्या का वर्तमान समय के sine और cosine से बहुत नजदीक का सम्बन्ध है। और वास्तव में sine और cosine नामक इन वर्तमान फलनों के नाम संस्कृत के ज्या और कोज्या से ही व्युत्पन्न हुए हैं।

Sinus (लैटिन) <== जीबा (अरबी) <== जीवा (संस्कृत)

'जीवा' और 'ज्या' समानार्थी हैं। 'जीवा' का मूल अर्थ है - 'धनुष (चाप) की डोरी'

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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