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The Right Honourable The Lord Denning OM PC DL | |
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पूर्वा धिकारी | Lord Evershed |
उत्तरा धिकारी | Lord Donaldson of Lymington |
पूर्वा धिकारी | Lord Oaksey |
उत्तरा धिकारी | Lord Evershed |
जन्म | 23 जनवरी 1899 Whitchurch, Hampshire |
मृत्यु | 5 मार्च 1999 Royal Hampshire County Hospital, Winchester | (उम्र 100 वर्ष)
जन्म का नाम | Alfred Thompson Denning |
राष्ट्रीयता | British |
जीवन संगी |
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बच्चे | 1 |
शैक्षिक सम्बद्धता | Magdalen College, Oxford |
पेशा | Barrister, Judge |
अल्फ़्रेड थॉम्पसन "टॉम" डेनिंग, बैरन डेनिंग(Alfred Thompson "Tom" Denning, Baron Denning), OM(ऑर्डर ऑफ़ मेरिट), PC(प्रिवी काउन्सिल), DL(डिप्यूटी लेफ़्टिनेन्ट) (23 जनवरी 1899 - 5 मार्च 1999) एक अंग्रेज़ वकील और न्यायाधीश थे। उन्हें 1923 में इंग्लैंड और वेल्स के बार में आमन्त्रित किया गया। उन्हें 1938 में किंग्स काउंसल बनाया गया। उच्च न्यायालय के प्रोबेट, तलाक़ और एडमिरल्टी डिवीज़न में नियुक्त किए जाने के बाद डेनिंग को 1944 में न्यायाधीश बनाया गया।1945 में उन्हें किंग्स बेंच डिवीजन में स्थानांतरित कर दिया गया। उच्च न्यायालय में आने के पांच साल के भीतर ही उन्हें 1948 में लॉर्ड जस्टिस ऑफ़ अपील के पद पर नियुक्त कर दिया गया। 1957 में वह लॉर्ड ऑफ़ अपील इन ऑर्डिनरी के पद पर नियुक्त किए गए। हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में पांच वर्ष रहने के बाद वह 1962 में मास्टर ऑफ़ द रोल्स के रूप में कोर्ट ऑफ़ अपील में लौट आए, जहाँ उन्होंने बीस वर्ष तक काम किया। सेवानिवृत्ति के पश्चात् उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं और हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के सदस्य और एक लेखक के रूप में वह लोक विधि (Common law) पर अपने विचार व्यक्त करते रहे।
मार्गरेट थैचर के अनुसार डेनिंग "आधुनिक समय के संभवतः महानतम अंग्रेज़ न्यायाधीश" थे। मार्क गार्नेट और रिचर्ड वेट के अनुसार डेनिंग एक रूढ़िवादी ईसाई थे “जो ऐसे नैतिक रूढ़िवादी ब्रिटिश लोगों के मध्य लोकप्रिय रहे, जो युद्ध के बाद अपराध की घटनाओं में वृद्धि होने से निराश थे और जो उनकी तरह मानते थे कि अधिकारों के लिए व्यक्ति के कर्तव्यों को भुलाया जा रहा था। आपराधिक मामलों में डेनिंग का दृष्टिकोण प्रतिशोधात्मक की अपेक्षा दण्डात्मक अधिक था और इसलिए वे शारीरिक दण्ड और मृत्युदण्ड के मुखर समर्थक थे।” हालांकि बाद में मृत्युदण्ड पर उनके रुख़ में परिवर्तन आया था। प्रॉफ़्युमो मामले(1961 में जॉन प्रॉफ़्युमो, सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फ़ॉर वार तथा 19 वर्षीय मॉडल क्रिस्टीन कीलर के मध्य विवाहेतर रिश्ते से संबन्धित ब्रिटिश राजनीति का एक बड़ा घोटाला) पर अपनी रिपोर्ट के कारण डेनिंग को इंग्लैंड के सर्वोच्च स्तर के न्यायाधीशों में से एक माना जाता था। वह उस समय प्रचलित विधि व्यवस्था के विरुद्ध साहसिक निर्णय देने के लिए जाने जाते थे। एक न्यायाधीश के रूप में अपने 38 साल के कैरियर के दौरान, विशेष रूप से अपीली न्यायालय में, उन्होंने लोक विधि में बड़े बदलाव किए। यद्यपि उनके अनेक निर्णय हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स ने उलट दिए किन्तु संसद ने ऐसे कई निर्णयों के अनुरूप क़ानून बनाकर उनकी पुष्टि कर दी। यद्यपि "लोगों के न्यायाधीश"(the people's judge)के रूप में डेनिंग की भूमिका और जन सामान्य के समर्थन के लिए उनकी सराहना की गई परन्तु लोक विधि व्यवस्था में प्रचलित पूर्व निर्णय के सिद्धांत के विरोध, बर्मिंघम सिक्स(Birmingham Six)और गिल्डफोर्ड फोर(Guildford Four) के बारे में की गई टिप्पणियों और मास्टर ऑफ़ रोल्स के रूप में हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के साथ संघर्षपूर्ण संबन्धों के कारण वह विवादों के घेरे में भी आए।(बर्मिंघम सिक्स वे छह आयरिश व्यक्ति थे जिन्हें 1974 के बर्मिंघम पब बम विस्फोटों के लिए त्रुटिपूर्ण दोषसिद्धि के आधार पर 1975 में आजीवन कारावास से दण्डित किया गया था। 14 मार्च 1991 को उनकी सजा को अपीली न्यायालय रद्द कर दिया गया। गिल्डफोर्ड फोर और मैगुइरे सेवन ऐसे दो समूहों के नाम थे, जो 5 अक्टूबर 1974 के गिल्डफोर्ड पब बम विस्फोटों के लिए दोषसिद्ध किए गए थे और उन्हें न्याय दिलाने हेतु चलाए गए लंबे अभियानों के फलस्वरूप उक्त दोषसिद्धि रद्द कर दी गई।)
प्रारंभिक जीवन और अध्ययन
डेनिंग का जन्म 23 जनवरी 1899 को व्हिचर्च, हैम्पशायर में चार्ल्स डेनिंग और क्लारा डेनिंग (नी थॉम्पसन) के घर पर हुआ था। वह छह बच्चों में से एक थे। उनके बड़े भाई रेजिनाल्ड डेनिंग ब्रिटिश सेना में स्टाफ़ ऑफ़िसर थे और उनके छोटे भाई नॉर्मन डेनिंग नौसेना खुफिया निदेशक और रक्षा स्टाफ (खुफिया) के उप प्रमुख बने।
युद्ध में योगदान
डेनिंग को एक डॉक्टर ने यह बताया था कि सिस्टोलिक हार्ट मर्मर के कारण वह सशस्त्र बलों में सेवा हेतु पात्रता नहीं रखते परन्तु उनका मानना था कि डॉक्टर ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह युवाओं को युद्ध में मरने के लिए नहीं भेजना चाहते थे। उन्होंने डॉक्टर के निर्णय के ख़िलाफ़ अपील की और सफल हुए। वह हैम्पशायर रेजिमेंट में एक कैडेट के रूप में भर्ती हो गए। वह अस्थायी रूप से सेकण्ड लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त किए गए। मार्च 1918 में जर्मन सेना अमीन्स और पेरिस के करीब पहुंच गई और डेनिंग की यूनिट को उसे रोकने में मदद करने के लिए फ्रांस भेजा गया। डेनिंग की कमान के तहत एक यूनिट एक पुल का निर्माण कर रही थी ताकि पैदल सेना को एंकर नदी पर आगे बढ़ने की अनुमति मिल सके। इन पुलों का निर्माण करते समय डेनिंग दो दिन बिना सोए रहे। द फैमिली स्टोरी में प्रथम विश्व युद्ध में अपने अनुभवों को लिखते समय, डेनिंग ने अपनी युद्ध सेवा को चार शब्दों में चार शब्दों में संक्षेप में प्रस्तुत किया: "मैंने अपना काम किया"("I did my bit")।
26 सितंबर 1916 को डेनिंग के सबसे बड़े भाई, कैप्टन जॉन एडवर्ड न्यूडिगेट डेनिंग की लिंकनशायर रेजीमेंट में सेवा के दौरान ग्यूडेकोर्ट के पास हत्या कर दी गई थी। 24 मई 1918 को उनके भाई सब-लेफ्टिनेंट चार्ल्स गॉर्डन डेनिंग, की तपेदिक से मृत्यु हो गई। डेनिंग अपने मृत भाइयों को अपने और अपने भाई-बहनों में सर्वश्रेष्ठ बताते थे।
ऑक्सफोर्ड में वापसी
सेना छोड़ने के बाद डेनिंग ने पुन: शिक्षा प्रारंभ करने का निर्णय लिया। उन्होंने मैग्डलेन कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड में शुद्ध गणित का अध्ययन किया और 1920 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्हें विनचेस्टर कॉलेज में प्रति वर्ष £350 के वेतन पर गणित पढ़ाने की नौकरी की पेशकश की गई, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। विनचेस्टर कैसल में एसिज़ कोर्ट(Assize Court) को देखने के बाद उन्होंने बैरिस्टर बनने का फ़ैसला किया। हर्बर्ट वारेन की सलाह पर, वह अक्टूबर 1921 में न्यायशास्त्र का अध्ययन करने के लिए मैग्डलेन लौट आए। डेनिंग को एल्डन लॉ स्कॉलरशिप के लिए चुना गया। डेनिंग ने न्यायशास्त्र को छोड़कर अपने सभी विषयों में उच्च ग्रेड प्राप्त किया था।
बार में
4 नवंबर 1921 को डेनिंग लिंकन इन के सदस्य बन गए। 13 जून 1923 को उन्हें बार में आमन्त्रित किया गया। कुछ वर्ष तक उन्होंने रेलवे के जुर्माने से संबन्धित मामलों में वकालत की। इस दौरान, उन्होंने रेलवे पुलिस के लिए एक मैनुअल की रचना भी की। 1920 और 1930 के दशक में उनके काम में लगातार वृद्धि होती रही। 1930 के दशक में वह उच्च न्यायालय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे। 1929 में, उन्होंने स्मिथ्स लीडिंग केसेज़(Smith's Leading Cases; 13वां संस्करण) के कई अध्यायों को संपादित करने में मदद की और 1932 में में बुलन एंड लीक्स प्रिसिडेंट्स फॉर प्लीडिंग्स इन किंग्स बेंच डिवीजन (Bullen & Leake's Precedents for Pleadings in the King's Bench Division) के 9वें संस्करण के पर्यवेक्षक संपादक के रूप में काम किया।
एल’ एस्ट्रेंज बनाम ग्रॉकोब लि०(L'Estrange v F Graucob Ltd) [1934] 2 KB 394 के मामले में उनको एक वकील के रूप में महत्वपूर्ण सफलता मिली थी। जब उन्होंने एक न्यायाधीश के रूप में काम किया तो उन्होंने उक्त मामले में स्वयं द्वारा वकील के रूप में दिए गए तर्कों के विपरीत मत व्यक्त किया। उन्होंने कहा 'यदि आप एक वकील हैं तो आप चाहते हैं कि आपका मुवक्किल जीत जाए। यदि आप एक न्यायाधीश हैं तो आप इस बात की परवाह नहीं करते है कि वास्तव में कौन जीतता है। आप को केवल न्याय की चिंता होती है।'
उन्होंने 1937 से 1944 तक साउथवार्क के बिशप क्षेत्र (Diocese) के चांसलर और 1942 से 1944 तक लंदन के बिशप क्षेत्र (Diocese) के चांसलर के रूप में काम किया। 1938 में उन्हें किंग्स काउंसल नियुक्त किया गया। द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद, डेनिंग के उत्तर पूर्व क्षेत्र का कानूनी सलाहकार नियुक्त किया गया। दिसंबर 1943 में, एक न्यायाधीश के बीमार हो जाने के कारण डेनिंग को एक आयुक्त के रूप में उनका स्थान लेने के लिए कहा गया। इसे न्यायपालिका की सदस्यता के लिए एक 'परीक्षण' के रूप में माना गया, और डेनिंग को 17 फरवरी 1944 को प्लायमाउथ का रिकॉर्डर नियुक्त किया गया। 6 मार्च 1944 को, हाउस ऑफ लॉर्ड्स में एक मुक़दमे में बहस के दौरान डेनिंग को लॉर्ड चांसलर ने कहा कि वह चाहते हैं कि डेनिंग प्रोबेट, तलाक और एडमिरल्टी डिवीजन में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनें। डेनिंग ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और मुक़दमे के समापन से पहले ही उनकी नियुक्ति की घोषणा कर दी गई।
उच्च न्यायालय में
डेनिंग को आधिकारिक तौर पर 7 मार्च 1944 को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया। उन्हें 15 मार्च 1944 को नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया।न्यायाधीश बनने के बाद डेनिंग को लिंकन इन का एक बेंचर भी चुना गया। वह 1964 में इसके कोषाध्यक्ष बने।
1945 में डेनिंग को किंग्स बेंच डिवीजन में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने तलाक़ के मामलों में प्रक्रिया में सुधार को देखने वाली एक समिति की अध्यक्षता भी की।इस समिति की रिपोर्टों को जनता ने खूब सराहा और 1949 में डेनिंग को राष्ट्रीय विवाह मार्गदर्शन परिषद का अध्यक्ष बनने के लिए आमंत्रित किया गया।
1947 में उन्होंने सेंट्रल लंदन प्रॉपर्टी ट्रस्ट लिमिटेड बनाम हाई ट्रीज़ हाउस लिमिटेड [1947] केबी 130 (हाई ट्रीज़ केस) में निर्णय पारित किया, जो इंग्लैण्ड के संविदा कानून में एक मील का पत्थर साबित हुआ । इसने ह्यूजेस बनाम मेट्रोपॉलिटन रेलवे कंपनी (1876-77) एलआर 2 ऐप कैस 439 के मामले द्वारा स्थापित प्रोमिसरी एस्टॉपेल के सिद्धांत को पुनर्जीवित किया। वक़ीलों और कानूनी सिद्धांतकारों ने इस निर्णय की प्रशंसा भी की और आलोचना भी की ।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में डेनिंग मृत्युदण्ड की सज़ा भी देते थे। इस विषय में उन्होंने उस समय कहा था कि इस बात ने उन्हें बिल्कुल परेशान नहीं किया। डेनिंग के अनुसार हत्या के लिए मृत्युदण्ड सबसे उपयुक्त है, और निर्णय देने में ग़लती होने पर अपील हमेशा की जा सकती है। 1950 के दशक में मृत्युदण्ड के बढ़ते प्रयोग का विरोध हो रहा था। इसको समाप्त करने पर विचार करने के लिए एक शाही आयोग की नियुक्ति की गई। डेनिंग ने 1953 में आयोग से कहा था कि अधिकतर लोगों द्वारा गंभीर अपराधों के प्रति अनुभव की जाने वाली घृणा इन अपराधों के लिए दी जाने वाली सजा में पर्याप्तरूपेण प्रतिबिंबित भी होनी चाहिए। बाद में उन्होंने मृत्युदण्ड को अनैतिक मानते हुए अपना विचार बदल दिया। 1984 में उन्होंने लिखा, "क्या एक समाज के रूप में हमारे लिए यह उचित है कि हम किसी को फांसी देने जैसा काम करें जिसे हम में से कोई भी ख़ुद करने के लिए या यहां तक कि देखने को भी तैयार नहीं होगा? इसका उत्तर है -नहीं, सभ्य समाज में नहीं।"
अपीलीय अदालत में
14 अक्टूबर 1948 को लॉर्ड जस्टिस ऑफ़ अपील नियुक्त किए जाने के बाद डेनिंग ने विभिन्न क्षेत्रों में, विशेषकर प परित्यक्त पत्नियों के अधिकारों में वृद्धि के संबन्ध में निर्णय लेना जारी रखा।1951 में, उन्होंने कैंडलर बनाम क्रेन, क्रिसमस एंड कंपनी के मामले में एक महत्वपूर्ण असहमत(dissenting) निर्णय दिया, जिसे 'उपेक्षा पूर्ण मिथ्या कथन संबन्धी विधि के क्षेत्र में शानदार प्रगति'('brilliant advancement to the law of negligent misstatements') माना जाता है। उनके निर्णय को हेडली बायर्न बनाम हेलर एंड पार्टनर्स लिमिटेड [1963] 2 ऑल ईआर 575 में हाउस ऑफ लॉर्ड्स द्वारा अनुमोदित किया गया। 1952 में कॉम्बे बनाम कॉम्बे के मामले में उन्होंने प्रॉमिसरी एस्टोपेल के अपने पुनर्जीवित सिद्धांत के संबन्ध में कहा कि यह सिद्धान्त एक 'ढाल' तो हो सकता है परन्तु 'तलवार' नहीं अर्थात् इसका उपयोग किसी दावे का बचाव करने में किया जा सकता है किन्तु यदि कोई वाद कारण मौजूद ही नहीं है तो इसका उपयोग वाद कारण को उत्पन्न करने में नहीं किया जा सकता है। 1954 में, रो बनाम स्वास्थ्य मंत्री [1954] 2 एईआर 131 में उनके निर्णय ने उन आधारों को बदल दिया, जिन पर अस्पताल के कर्मचारियों को लापरवाह ठहराया जा सकता है।
हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में
24 अप्रैल 1957 को डेनिंग को लॉ लॉर्ड के रूप में नियुक्त किया गया। हाउस ऑफ लॉर्ड्स में अपने समय के दौरान, उन्होंने ईस्ट ससेक्स के क्वार्टर सत्रों के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।
मास्टर ऑफ़ द रोल्स
19 अप्रैल 1962 को डेनिंग को मास्टर ऑफ़ द रोल्स के रूप में नियुक्त किया गया। मास्टर ऑफ़ द रोल्स के रूप में वह विशेषरूपेण महत्वपूर्ण मामलों का चयन करके विधि विशेष के विशेषज्ञ न्यायाधीशों को सुनवाई हेतु मामले भेजते थे। यह तरीक़ा अमेरिकी प्रणाली से भिन्न था, जहां न्यायाधीशों को रोटा पद्धति से मामले दिए जाते थे। 1963 में उन्होंने सार्वजनिक अभिलेख कार्यालय में रखे गए कानूनी दस्तावेजों के संग्रह को कम करने के तरीकों की जांच करने वाली एक समिति की अध्यक्षता की। लॉर्ड चांसलर ने डेनिंग की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया, और उनके द्वारा सुझाए गए परिवर्तनों को तुरंत लागू किया गया।
संविदा विधि
डेनिंग ने 1965 में डी एंड सी बिल्डर्स लिमिटेड बनाम रीस [1965] 2 क्यूबी 617 में महत्वपूर्ण निर्णय दिया। अपीलार्थी ने प्रत्यर्थी को अपनी दुकान पर कुछ निर्माण कार्य करने के लिए काम पर रखा। काम ख़त्म होने के बाद प्रत्यर्थी ने बार-बार अपीलार्थी को फ़ोन करके बकाया राशि के भुगतान का अनुरोध किया। कई महीनों में तीन फ़ोन कॉल के बाद अपीलार्थी की पत्नी ने प्रत्यर्थी को बताया कि उनके काम में कई कमियाँ होने के कारण वह £482 की बकाया धनराशि में से केवल £300 का भुगतान करेगी, जो बमुश्किल सामग्री की लागत के बराबर होती करेगा। यदि प्रत्यर्थी को पैसा न मिलता तो वे दिवालिया हो जाते। अपीलार्थी की पत्नी यह बात अच्छी तरह जानती थी। उक्त परिस्थितियों में प्रत्यर्थी ने £300 का भुगतान स्वीकार कर लिया। डेनिंग ने आंशिक भुगतान तथा समझौते और संतुष्टि पर अंग्रेज़ी निर्णय विधि को संशोधित करते हुए अवधारित किया कि आंशिक भुगतान के नियम उन स्थितियों में लागू नहीं होते हैं जहां एक पक्ष दबाव में है।
थॉर्नटन बनाम शू लेन पार्किंग लिमिटेड [1971] 2 क्यूबी 163 में 1971 में एक व्यक्ति और एक स्वचालित मशीन के बीच प्रस्ताव और स्वीकृति के प्रश्न पर डेनिंग ने अवधारित किया कि प्रस्ताव मशीन द्वारा दिया गया था।
अपकृत्य विधि
लेटांग बनाम कूपर [1964] 2 ऑल ईआर 929 1964 में डेनिंग ने महत्वपूर्ण निर्णय दिया। श्रीमती लेटांग छुट्टी के दिन एक होटल के बाहर घास पर लेट कर आराम कर रही थीं। कूपर ने लेटांग को देखे बिना अपनी कार उनके पैरों पर दौड़ा दी। व्यक्तिगत क्षति, जिसे उपेक्षा के अपकृत्य के अन्तर्गत माना जाता है, की क्षतिपूर्ति हेतु दावा करने की परिसीमा तीन वर्ष होती है। घटना के बाद तीन वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद, लेटैंग ने कूपर के खिलाफ अतिचार के अपकृत्य के अन्तर्गत एक दावा दायर किया। डेनिंग ने अवधारित किया कि अतिचार के अपकृत्य के अन्तर्गत दावा केवल तभी किया जा सकता है जब जानबूझकर क्षति कारित की गई हो। अगर यह अनजाने में होता है तो केवल उपेक्षा के अपकृत्य के अन्तर्गत ही दावा किया जा सकता है।
स्पार्टन स्टील एंड अलॉयज लिमिटेड बनाम मार्टिन एंड कंपनी लिमिटेड [1973] 1 क्यूबी 27 के मामले में उन्होंने उपेक्षा के कारण हुई शुद्ध आर्थिक नुकसान की क्षतिपूर्ति के विषय पर एक प्रमुख निर्णय दिया।
सेवानिवृत्ति और मृत्यु
सेवानिवृत्ति के पश्चात् डेनिंग व्हिचर्च चले गए और व्याख्यान देने, कानूनी सलाह देने और पुरस्कार प्रदान करने के कार्य करते रहे।
उन्होंने अपना 100 वां जन्मदिन 23 जनवरी 1999 को व्हिचर्च में मनाया, जिसमें रानी और रानी की माँ, दोनों से तार प्राप्त हुए। स्थानीय चर्च ने विशेष रूप से इस अवसर के लिए उनके सम्मान में "ग्रेट टॉम" नाम की एक नई घंटी स्थापित की। उस समय तक उनका स्वास्थ्य और भी खराब हो गया था। वह नेत्रहीन हो गए थे और उन्हें श्रवण यन्त्र की आवश्यकता थी। 5 मार्च 1999 को वह बीमार पड़ गए और उन्हें रॉयल हैम्पशायर काउंटी अस्पताल ले जाया गया, जहां आंतरिक रक्तस्राव से उनकी मृत्यु हो गई।
डेनिंग को उनके गृह नगर व्हिचर्च में स्थानीय चर्चयार्ड में दफ़नाया गया। लॉर्ड चीफ़ जस्टिस लॉर्ड बिंघम के अनुसार डेनिंग 'उनके इतिहास में सबसे प्रसिद्ध और सबसे प्रिय न्यायाधीश' थे।
न्यायिक कार्यशैली
डेनिंग अपनी उत्कृष्ट स्मृति के लिए जाने जाते थे। एक न्यायाधीश के रूप में वह मानते थे कि जब तक जनता को यह विश्वास न हो और वह यह समझ नहीं लेती कि कोई निर्णय न्यायसंगत है तब तक वह कानून का पालन नहीं करना चाहेगी। उन्होंने यह प्रयास किया कि उनके निर्णय और तत्संबन्धी विधि साधारण जनता की समझ में आ जाए। वह अपने निर्णयों में "वादी" और "प्रतिवादी" के बजाय पक्षकारों को उनके नाम से संदर्भित करते थे और छोटे वाक्यों और "कहानी कहने" की शैली का इस्तेमाल करते थे।