ट्राइकोराइसिस, जिसे व्हिपवर्म संक्रमण भी कहते हैं जो कि परजीवी कृमि ट्राइकोरिस्ट्यूरा (व्हिपवर्म) द्वारा फैलने वाला संक्रमण है।)[1] यदि संक्रमण केवल कुछ कृमियों से हैं, कोई लक्षण नही होता है।[2] वे लोग जिनको कई कृमियों से संक्रमण हुआ हो, उनमें पेट दर्द, थकान और दस्त हो सकता है।[2] कई बार दस्त में खून हो सकता है।[2] बच्चों में संक्रमण के कारण बौद्धिक और शारीरिक विकास खराब हो सकता है। [2] रक्त की हानि के कारण लाल रक्त कणिकाओं का निम्न स्तर हो सकता है।[1]
यह रोग आम तौर पर तब फैलता है जब लोग इन कृमियों से संक्रमित भोजन या पानी को खाते व पीते हैं। [2] यह तब भी हो सकता है जब संक्रमित सब्जियों को पूरी तरह से साफ नहीं किया जाता या पकाया नहीं जाता है।[2] अक्सर ये अंडे उस मिट्टी में होते हैं जहां पर लोग खुले में शौंच जाते हैं और जहां पर मानव मल को खाद खाद के रूप में उपयोग करते हैं। [1] ये अंडे संक्रमित लोगों के मल से उत्पन्न होते हैं।[2] ऐसी मिट्टी में खेलने वाले बच्चे अपने मुंह में हाथ लगाने से आसानी से संक्रमित हो जाते हैं।[2] ये कृमि बड़ी आंत में रहते हैं और लगभग चार सेंटीमीटर लंबे होते हैं।[1] व्हिपवर्म का निदान मल को माइक्रोस्कोप में देख कर अंडों की उपस्थिति से होता है।[3] ये अंडे बैरल के आकार के होते हैं।[4]
सही तरीक से खाना पका कर व खाना पकाने से पहले हाथ धोकर रोकथाम संभव है। [5] अन्य उपायों में कार्यशील तथा साफ शौचालय जैसी स्वच्छता तथा साफ पानी [5] तक पहुंच को बढ़ावा देना शामिल है। [6] दुनिया के वे क्षेत्र जहां पर ये संक्रमण आम है अक्सर नियमित रूप से लोगों को पूरे समूह का एक साथ उपचार किया जाएगा।[7] उपचार में तीन दिन तक दवा देनी होती है: अल्बेंडाज़ॉल, मेबेन्डाज़ॉल या इवरमेक्टिन।[8] उपचार के बाद अक्सर लोग फिर से संक्रमित हो जाते हैं।[9]
व्हिपवर्म संक्रमण पूरी दुनिया में लगभग 600 से 800 मिलियन लोगों को संक्रमित करता है।[1][10]उष्णकटिबंधीय देशों में यह सबसे आम है।[7] विकासशील देशों में व्हिपवर्म से संक्रमित लोगों में अक्सर हुकवर्म तथा एस्कारियासिस संक्रमणों को भी देखा गया है।[7] उनका अनेक देशों की अर्थव्यवस्था पर काफी अधिक प्रभाव होता है।[11] रोग के विरुद्ध एक टीके के निर्माण के लिए काम चल रहा है। [7] ट्राइकोराइसिस को उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।[12]