डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी! | |
---|---|
प्रचार छवि | |
निर्देशक | दिबाकर बेनर्जी |
लेखक |
शरदीन्दु बंद्योपाध्याय दिबाकर बेनर्जी |
पटकथा |
दिबाकर बेनर्जी उर्मि जुवेकर |
निर्माता |
आदित्य चोपड़ा दिबाकर बेनर्जी |
प्रदर्शन तिथियाँ |
|
लम्बाई |
148 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
लागत |
₹22 करोड़ (US$3.21 मिलियन) (approx.)[2] |
कुल कारोबार |
₹21.76 करोड़ (US$3.18 मिलियन) (five days; worldwide)[3][4] |
डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी! भारतीय हिन्दी बॉलीवुड फ़िल्म है, जिसका निर्देशन दिबाकर बेनर्जी ने किया है।
वर्ष 1942 के समय जब भारत आजाद नहीं हुआ था, तब ब्योमकेश (सुशांत सिंह राजपूत) कलकत्ता में थे और उनके सहपाठी अजित के पिता और रसायन विज्ञानी भुवन बेनर्जी लगभग दो महीनों से लापता थे। ब्योमकेश को लगता है की उनकी ह्त्या हुई है और अपराधी ने उसकी लाश को किसी जगह छुपा दिया है जिससे सभी को लगे की वे लापता हैं।
ब्योमकेश, अजित के पिता को ढूंढने से इंकार कर देता है और कहता है की उसके पिता डोडगी के व्यापार में मिले हुए है। इससे अजित को क्रोध आ जाता है और वह ब्योमकेश को थप्पड़ मार देता है। उसी दिन ब्योमकेश की प्रेमिका लीला भी उसके पास आती है और बताती है की वह किसी ओर से शादी कर रही है।
ब्योमकेश अजित के पास जाता है और वह उसके पिता को खोजने के लिए सहमत हो जाता है। वह भुवन के फ़ैक्टरी आदि में उसे खोजने के लिए सुराग ढूंढने लगता है। बाद में उसे पता चलता है की भुवन ने कुछ ऐसा आविष्कार किया था। जो वह गलत हाथों से बचाना चाहते थे। जैसे ही यह प्रकरण हल हो जाता है तो वह सत्यवती को शादी के लिए पूछता है और वह मान जाती है।