तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (उर्दू: تحریک لبیک پاکستان , देवनागरीकृत : तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान ) पाकिस्तान में एक कट्टर-दक्षिणपन्थी इस्लामी चरमपन्थी राजनीतिक दल है। इस दल की स्थापना अगस्त 2015 में खादिम हुसैन रिज़वी ने की थी। यह 2018 के पाकिस्तानी महानिर्वाचन में पाँचवाँ सबसे बड़ा दल बन गया, किन्तु (National Assembly ; नेशनल असेम्बली , हिन्दी : राष्ट्रीय सभा ) और पंजाब विधानसभा में कोई भी सीट जीतने में विफल रही। हालाँकि सिन्ध विधानसभा में उसे 3 सीटें प्राप्त करने में सफलता मिली थी।
तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान में ईशनिन्दा विधि में किसी भी बदलाव के विरोध में अपने विरोध प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। यह माँग करता है कि शरिया को एक क्रमिक विधिक और राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से पाकिस्तान में इस्लामी मौलिक विधि के रूप में स्थापित किया जाये। तहरीक-ए-लब्बैक एक इस्लामी सामाजिक राजनीतिक आन्दोलन के रूप में प्रारम्भ हुआ।
दल के अधिकांश सदस्य बरेलवी आन्दोलन से सम्बन्धित हैं और इसने 2018 के चुनावों में 22 लाख से अधिक मत प्राप्त किये। प्रतिबन्धित होने के पश्चात् भी टीएलपी को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गयी और कराची उप-चुनाव में तीसरा स्थान प्राप्त किया। दल ने 2021 में पाकिस्तानी विरोध-प्रदर्शन का आयोजन किया।
12 अप्रैल 2021 को, पाकिस्तान सरकार ने रिज़वी को लाहौर में गिरफ्तार किया और पाकिस्तान के आतंकवाद-विरोधी अधिनियम, 1997 (एटीए) के अन्तर्गत आरोप लगाया, जिसने प्रदर्शनकारियों को और नाराज कर दिया, जिससे व्यापक अशान्ति फैल गयी।
पंजाब कारावासों के जनसम्पर्क अधिकारी अतीक अहमद और टीएलपी नेता फ़ैजान अहमद ने 20 अप्रैल को कहा कि साद रिज़वी को रिहा कर दिया गया है। लाहौर के कारावास अधीक्षक असद वराइच ने हालाँकि कहा कि उन्हें ऐसी किसी रिहाई के बारे में पता नहीं है और उन्हें रिहा करने का कोई आदेश नहीं मिला है। आन्तरिक मन्त्री शेख रशीद अहमद ने बाद में पुष्टि की कि रिज़वी को मुक्त नहीं किया गया था।