सेनापति सूबेदार सरदार तानाजी राव मालूसरे शेर-ए-शिवाजी | |
---|---|
तानाजी मालूसरे सिंहगढ़ के युद्ध पर जाने से पहले | |
नाम | ताणाजी माळुसरे |
जन्मजात नाम | तानाजी |
उपनाम | शिवाजी के शेर |
जन्म | महाबलेश्वर |
देहांत |
4 फरवरी 1670 सिंहगढ़, पुणे, महाराष्ट्र, भारत |
निष्ठा | मराठा साम्राज्य |
सेवा/शाखा | मराठा सेना |
उपाधि | सूबेदार |
युद्ध/झड़पें | सिंहगढ़ का युद्ध |
सम्बंध | रायभा एवं उमाबाई (बेटा-बेटी), देशमुख साहेब कालोजी राव मालूसरे एवं पार्वती बाई (माता-पिता), |
तानाजी मालूसरे मराठा साम्राज्य के मराठा सेना मे कोली सूबेदार सरदार थे।[1][2] वे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य, हिंदवी स्वराज्य स्थापना के लिए सूबेदार (किल्लेदार) की भूमिका निभाते थे । तानाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र थे वे बचपन मे एक साथ खेले थे [3]
वें १६७० ई. में सिंहगढ़ की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। उस दिन सुभेदार तानाजी मालुसरेजी के पुत्र रायबा के विवाह की तैयारी हो रही थी, तानाजी मालुसरे जी छत्रपती शिवाजी महाराज जी को आमंत्रित करने पहुंचे तब उन्हें ज्ञात हुआ की कोंढाणा पर छत्रपती शिवाजी महाराज चढ़ाई करने वाले हैं, तब तानाजी मालुसरे जी ने कहा राजे मैं कोंढाणा पर आक्रमण करुंगा |अपने पुत्र रायबा के विवाह [4] जैसे महत्वपूर्ण कार्य को महत्व न देते हुए उन्होने शिवाजी महाराज की इच्छा का मान रखते हुए कोंढाणा किला जीतना ज़्यादा जरुरी समझा। छत्रपती शिवाजी महाराज जी की सेना मे कई सरदार थे परंतु छत्रपति शिवाजी महाराज जी ने वीर तानाजी मालुसरे जी को कोंंढाना आक्रमण के लिए चुना[5] और कोंढणा "स्वराज्य" में शामिल हो गया लेकिन तानाजी मारे गए थे। छत्रपति शिवाजी ने जब यह समाचार सुनी तो वो बोल पड़े "गढ़ तो जीत लिया, लेकिन मेरा "सिंह" नहीं रहा (मराठी - गढ़ आला पण सिंह गेला)।
तानाजीराव का जन्म 17वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के कोंकण प्रान्त में महाड के पास 'उमरथे' में हुआ था। वे बचपन से छत्रपति शिवाजी के साथी थे। ताना और शिवा एक-दूसरे को बहुत अछी तरह से जानते थे। तानाजीराव, शिवाजी के साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। ऐसे ही एक बार शिवाजी महाराज की माताजी लाल महल से कोंडाना किले की ओर देख रहीं थीं। तब शिवाजी ने उनके मन की बात पूछी तो जिजाऊ माता ने कहा कि इस किले पर लगा हरा झण्डा हमारे मन को उद्विग्न कर रहा है। उसके दूसरे दिन शिवाजी महाराज ने अपने राजसभा में सभी सैनिकों को बुलाया और पूछा कि कोंडाना किला जीतने के लिए कौन जायेगा? किसी भी अन्य सरदार और किलेदार को यह कार्य कर पाने का साहस नहीं हुआ किन्तु तानाजी ने चुनौती स्वीकार की और बोले, "मैं जीतकर लाऊंगा कोंडाना किला"।
तानाजीराव के साथ उनके भाई सूर्याजी मालुसरे और मामा ( शेलार मामा) थे। वह पूरे ३४२ सैनिकों के साथ निकले थे। तानाजीराव मालुसरे शरीर से हट्टे-कट्टे और शक्तिपूर्ण थे। कोंडाणा का किला रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित था और शिवाजी को इसे कब्जा करना के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। Writer ifo
कोंडाणा तक पहुंचने पर, तानाजी और ३४२ सैनिकों की उनकी टुकड़ी ने पश्चिमी भाग से किले को एक घनी अंधेरी रात को घोरपड़ नामक एक सरीसृप की मदद से खड़ी चट्टान को मापने का फैसला किया। घोरपड़ को किसी भी ऊर्ध्व सतह पर खड़ी कर सकते हैं और कई पुरुषों का भार इसके साथ बंधी रस्सी ले सकती है। इसी योजना से तानाजी और उनके बहुत से साथी चुपचाप किले पर चढ़ गए। कोंडाणा का कल्याण दरवाजा खोलने के बाद मुग़लों पर हमला किया।
किला उदयभान राठौड़ द्वारा नियंत्रित किया जाता था, जो राजकुमार जय सिंह-१ द्वारा नियुक्त किया गया था। उदय भान राठौड़ के नेतृत्व में ५००० मुगल सैनिकों के साथ तानाजी का भयंकर भयंकर युद्ध हुआ। तानाजी एक लड़ाई लड़े । इस किले को अन्ततः जीत लिया गया, लेकिन इस प्रक्रिया में, तानाजी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। जब छत्रपती शिवाजी महाराज जी को यह दुःखद वार्ता मिली तो वे अत्यंत दुखी एवं आहात हुये। छत्रपती शिवाजी महाराज ने काहा - मराठी - गढ़ आला, पण सिंह गेला अर्थ -"हमने गढ़ तो जीत लिया, लेकिन मेने मेरा सिंह खो दिया।
तानाजी मालुसरे की स्मृति में कोंढाणा दुर्ग का नाम बदलकर सिंहगढ़ कर दिया गया है। पुणे नगर के 'वाकडेवाडी' नामक भाग का नाम बदलकर 'नरबीर तानाजी वाडी' कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त तानाजी के अनेकों स्मारक हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज जी के परममित्र सूबेदार तानाजी मालुसरे जी ने बड़े वीरता का परिचय देते हुये कोंढाणा किले को, उसके पास के क्षेत्र को मुगलों के कब्जे से स्वतंत्र कराया. इस युद्ध के समय जब उनकी ढाल टूट गई तो तानाजी मालुसरे जी ने अपने सिर के फेटे (पगड़ी) को अपने हाथ पर बांधा और तलवार के वार अपने हाथों पर लिये एक हाथ से वे वायु की तेज गती से तलवार चलाते रहे. कोंढाणा किले के किलेदार उदयभान सिंह राठौड़ से तानाजी मालुसरे जी ने युद्ध किया और ढाल टूटने के कारण उदयभान की तलवार के वार से तानाजी मालुसरे का एक हाथ कट गया और लड़ाई मे एक हाथ से लड़ते हुए तानाजी मालुसरे ने उदयभान सिंह राठौड़ को मार डाला। युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के कारण तानाजी ने अपने प्राण त्याग दिये । तानाजी के भाई सूर्याजी मालुसरे ने कोंढाणा पर भगवा लहराया। शिवाजी महाराज ने कोंढाणा पर पहुंच कर देखा तो उन्होंने तानाजी को मृत पाया। उनकी मृत देह को देखकर शिवाजी महाराज रोने लगे और कहा "गढ़ आणा पण सिंह गेला" अर्थात् किला तो हाथ आ गया लेकिन मेरा शेर तानाजी चला गया। शिवाजी ने तानाजी मालुसरे के नाम पर किले का नाम कोंढाणा से बदलकर सिंहगढ़ रख दिया। साथ ही पुणे के नरबीर वाकेवाडी नामक स्थान का नाम बदलकर नरबीर तानाजी वाडी रख दिया गया।
|url=
मान (मदद) से ०५ जुलै २०१७ को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २४ ऑक्टोबर २०१९. |access-date=, |date=, |archive-date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
|access-date=, |date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
|url=
मान (मदद) से ०५ जुलै २०१७ को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २४ ऑक्टोबर २०१९. |access-date=, |date=, |archive-date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)