तिरुनवुकरसर एक शिव भक्त था तमिलनाडु ७०० मे। वे नयनार सन्घ के सन्त थे। सबसे चार महत्वपूर्ण नयनार और तमिलनाडु में उनका नाम कुरवार था (हिन्दी में "गुरु")। उन्होने भगवान शन्कर के लिए बहुत भजन लिखे और इस वक्त को हमारे पास ३०६६ हे।
ईस्वी ७०० में जन्म तमिलनाडु में। उनके पिता का नाम पुकलनार था औरे उनकी माँ, मथिनियार। उनका पहला नाम "मरुल्नीकिआर" था।
बचपन में उन्होने शिव धर्म को छोड़ दिया और जैन धर्म को अपनाया। वे पाटलिपुत्र गए, जैन शास्त्रों को पढ़ा और जैन विद्यालय को सम्मिलन किया। उनको अहिंसा और ये शास्त्र को बहुत अच्छा लगता था।
एक बार वे बहुत बीमार प़डे और उनकी बहन ने उनसे कहा - "शन्कर को प्रणाम करो"। उन्होने शंकर भगवान के मन्त्र बोले और स्वस्थ्य हो गए। ठीक होने बाद जैन धर्म बदल वापस शैव हो गए।
उनका सिर पूरी तरह मूड़ा हुआ है और उनकी हथेली अंजलिमुद्रा में है। एक घास है उनके कन्घे पर। वह घास उनकी इस ईच्छा का प्रतीक है कि किसी भी मन्दिर में एक भी घास-पात नहीं होना चाहिए।