दिनेश त्रिवेदी | |
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पद बहाल 13 जुलाई 2011 – 18 मार्च 2012 | |
राष्ट्रपति | प्रतिभा पाटील |
प्रधानमंत्री | मनमोहन सिंह |
पूर्वा धिकारी | ममता बनर्जी |
उत्तरा धिकारी | मुकुल रॉय |
पदस्थ | |
कार्यालय ग्रहण 22 मई 2010 | |
उत्तरा धिकारी | सुदीप बंद्योपाध्याय |
पदस्थ | |
कार्यालय ग्रहण मई 2009 | |
चुनाव-क्षेत्र | बैरकपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र |
जन्म | 4 जून 1950 नई दिल्ली, दिल्ली, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राजनीतिक दल | सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस |
जीवन संगी | मिनाल त्रिवेदी |
बच्चे | 1 |
निवास | नई दिल्ली कोलकाता |
शैक्षिक सम्बद्धता | सेंट जेवियर्स कॉलेज, कलकत्ता टेक्सास विश्वविद्यालय, ऑस्टिन |
पेशा | पायलट राजनीतिज्ञ |
धर्म | हिन्दू धर्म |
जालस्थल | http://www.dineshtrivedi.com/ |
दिनेश त्रिवेदी; (जन्म- ४ जून १९५०) तृणमूल कांग्रेस से एक भारतीय राजनेता हैं, जो पश्चिम बंगाल के बैरकपुर से सांसद हैं। त्रिवेदी इंडो-यूरोपीय संघ संसदीय मंच के अध्यक्ष भी हैं। वे पूर्व में भारत के रेल मंत्री रह चुके हैं और क्यों हटा दिए गए थे कोई पता नहीं।[1][2][3]
दिनेश त्रिवेदी गुजराती दंपति हीरालाल और उर्मिला की सबसे छोटी संतान हैं, जो भारत विभाजन के समय कराची, पाकिस्तान से आए थे, जहां त्रिवेदी के सभी भाई-बहन पैदा हुए थे। दिल्ली आने से पहले उनके माता-पिता कई जगहों पर भटकते रहे, दिल्ली में त्रिवेदी का जन्म हुआ। उनके पिता कोलकाता की एक कंपनी हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने लगे।[2]
कोलकाता के सेंट जेवियर्स कालेज से उन्होंने वाणिज्य में स्नातक किया। इससे पहले उन्होंने हिमाचल प्रदेश के बॉर्डिंग स्कूलों में शिक्षा पाई। स्नातक में डिग्री लेने के बाद वो बीस हजार रुपये कर्ज लिए और ऑस्टिन स्थित आर्लिंग्टन का टॅक्सस विश्वविद्यालय से एमबीए पूरा किया। भारतीय वायुसेना के विमानों को उड़ाने की इच्छा लेकर उन्होंने पॉयलट की ट्रेनिंग ली। उन्होंने सितार बजाने की भी शिक्षा ली और शास्त्रीय संगीत का आनंद लिया। पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में अभिनय का प्रशिक्षण लेने के लिए आवेदन भी दिया, लेकिन उन्हें लगा कि ये एक अगंभीर काम है, इसलिए उन्होंने अभिनेता बनने का विचार छोड़ दिया। रामकृष्ण मिशन के एक विज्ञापन में स्वामी विवेकानंद का चित्र देखकर उन्होंने संन्यासी बनने का फैसला कर लिया। लेकिन परिवार और शिकागो में एक स्वामी की सलाह के बाद उन्होंने संन्यासी बनने का विचार छोड़ दिया।[2][4]
१९७४ में एमबीए करने के बाद, भारत लौटने से पहले, उन्होंने दो सालों तक शिकागो में डेटेक्स कंपनी में काम किया। १९८४ में उन्होंने कोलकाता में अपनी हवाई भाड़ा कंपनी शुरू करने के लिए नौकरी छोड़ दी। उन्होंने उपभोक्ता संरक्षण केंद्र भी शुरू किया।[2]