धनीराम 'चातृक' (४ अक्टूबर १८७६ – १८ दिसम्बर १९५४) आधुनिक पंजाबी कविता के संस्थापक माने जाते हैं। आपकी कृतियाँ प्राचीन और अर्वाचीन पंजाबी काव्य की कड़ी हैं। आप ही सर्वप्रथम विद्वान् हैं, जिन्हें साहित्यसेवा के उपलक्ष में 75वीं वर्षगाँठ पर 'अभिनंदन ग्रंथ' समर्पित करके सम्मानित किया गया।
चातृक जी की रचनाएँ ये हैं :
अंतिम रचना सन् 1954 में उर्दू लिपि में प्रकाशित हुई थी। शेष सभी गुरुमुखी लिपि और पंजाबी भाषा में हैं। मुहावरेदार ठेठ पंजाबी का ही इन्होंने व्यवहार किया है। इनकी प्रारंभिक कविताओं पर तो आध्यात्मिक और पौराणिक विचारधारा की गहरी छाप थी। किंतु कालांतर में इनकी काव्यप्रतिभा यथार्थवाद की ओर उन्मुख हुई। इनके यथार्थवाद में वैज्ञानिक सूझ बूझ के स्थान पर निजी अनुभवों का प्राबल्य है। यथार्थवाद के नाम पर वे समाज का नग्न घिनौना चित्र प्रस्तुत नहीं करते, वरन् नियंत्रित दृष्टिकोण रखकर शिक्षाप्रद संदेश भी देते हैं। उनकी कविताओं में सूफीवाद के दर्शन भी होते हैं, पर सैद्धांतिक विवेचन की अभिलाषा के अभाव के कारण वे स्थल गूढ़ातिगूढ़ नहीं हो पाए हैं। धार्मिक क्षेत्र में वे समन्वयवादी प्रतीत होते हैं। उनके हलके फुलके गीतों में व्यक्तिगत प्रेम की अभिव्यक्ति भी हुई हैं, किंतु उसमें लाज और शर्म की सीमाओं का बंधन विद्यमान है। स्वाधीन भारत की समस्याएँ, देश और समाज में उन्नत और अवनत पक्ष 'सूफीखाना' में भली प्रकार चित्रित हुए हैं। विषयों की बहुविधता और छंदवैविध्य (विशेषत: बैंत, दोहरा, कोरड़ा) इनकी काव्यगत विशेषताएँ हैं।