नरवर दुर्ग | |
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Narwar Fort | |
![]() नरवर दुर्ग | |
सामान्य विवरण | |
प्रकार | दुर्ग |
वास्तुकला शैली | भील,राजपूत व मुगल |
स्थान | नरवर, शिवपुरी ज़िला, मध्य प्रदेश |
राष्ट्र |
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निर्देशांक | 25°38′46″N 77°54′18″E / 25.646°N 77.905°Eनिर्देशांक: 25°38′46″N 77°54′18″E / 25.646°N 77.905°E |
निर्माणकार्य शुरू | महाभारत काल |
निर्माण सम्पन्न | कश्यप,10वीं शताब्दी, कछवाहा राजपूत |
ग्राहक | राजा कमल नल |
Landlord | राजा नल |
ऊँचाई | 500 फीट (150 मी॰) |
योजना एवं निर्माण | |
वास्तुकार | प्राचीन |
सिविल अभियंता | अज्ञात |
नरवर दुर्ग (Narwar Fort) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के शिवपुरी ज़िले के नरवर नगर में स्थित एक ऐतिहासिक दुर्ग है। यह विंध्य पर्वतमाला की एक पहाड़ी पर 500 फुट की ऊँचाई पर खड़ा है और 8 वर्ग किमी के क्षेत्रफल पर फैला है। यह किला मूलतः कछवाहा क्षत्रिय वंश के राजा नल द्वारा बनवाया गया राजा नल और विदर्भ देश की राजकुमारी दमयंती की प्रेम कहानी इसी किले से जुड़ी है कहा जाता है कि यहाँ एक पुराना सैन्य निर्माण था [1]। ।[2][3]
पहले इस दुर्ग का निर्माण या पुनर्निर्माण दांगी कछवाहा राजपूतों ने करा। कछवाहों के बाद यहाँ परिहार और फ़िर तोमर राजपूतों का आधिपत्य रहा और अन्ततः यह 16वीं शताब्दी में मुगलों के अधीन आ गया, किंतु इस पर से राजपूत शासन चले जाने के कारण आस पास के राजपूत सरदारों और जमींदारों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। जो राजपूत सरदार पहले से ही स्वतंत्र शासन कर रहे थे, वे भी शक्तिशाली थे। उनमे एक बड़ी और शक्तिशाली जमींदारी रायपुर रही जिसपर पवैया चौहान राजपूतों का अधिकार था। उस समय नरवर से मालवा की और जाने का यहां से एक प्रमुख मार्ग था जो की चौहानों के अधिकार में होने के कारण मुघलों के लिये अच्छा नहीं था। मुघलों के अनेक प्रयासों के वाद भी वे कुछ ना कर सके और मुघल चौहानों तथा अन्य शक्तिशाली राजपूत सरदारों के कारण कमजोर हो रहे थे। नरवर राजपूतों का राज्य रहा इसलिये राजपूत सरदार पुनः उसपर राजपूत शासन चाहते थे। रायपुर के चौहान निरंतर अपनी सीमाओं का विकास कर रहे थे और शक्ति में वृद्धि कर रहे थे। और संभवतः चौहान जल्द ही नरवर पर अधिकार कर लेते किंतु कालान्तर में १९वीं शताब्दी के आरम्भ में यहां मराठा सरदार सिन्धिया ने अधिकार किया और चौहानों से रक्षित करने का प्रयास किया किंतु लोक कथाओं से पता चलता हे की चौहानों ने मराठों को भी कभी कर नहीं दिया और मराठे भी यहां राजपूतों के प्रभाव के कारण मुघलों को यहां से परास्त और उनका पूर्णतः शासन समाप्त करने के वाद भी राजपूतों के ठिकानों पर अधिकार नहीं कर पाये। आल्हा कााव्यं मे नरवर गढ़ को मोहरम गढ भी कहा गया हे।जहा के राजा मोतीमल बघेल का नाम का राजा का जिक्र हे। यहाँ पर दांगी राजपूत शासक नेपाल सिंह दांगी नेे राज्य किया 1150 से के बाद यह किला छोड़
दिया
नरवर का किला बुंदेलखंड में पहले एवं मध्य भारत के ग्वालियर किले के बाद दूसरे नंबर का है। नरवर दुर्ग नाग राजाओं की राजधानी था। यहां ९ नाग राजाओं ने राज किया। ये राजा इस प्रकार से थे:
इनके बाद समुद्र गुप्त ने नाग राजाओं पर आक्रमण किया एवं इस वंश को समाप्त कर किले को अधीन किया। इस बारे में इलाहाबाद स्तंभ में उल्लेख मिलते हैं।
महाभारत कालीन नरवर का उल्लेख श्री हर्ष रचित नैषिधीयचरितम् में निषध नगर या निषध देश के नाम से विस्तारपूर्वक मिलता है। प्रसिद्ध संस्कृत सूक्ति नरवर (तत्कालीन नलपुर) के राजा नल द्वारा अपनी पत्नी दमयन्ती को कही गयी:
नरवर का किला भारतीय किलों की शान और अत्यन्त प्राचीन व सबसे सुरक्षित किला माना जात है। विदेशी यात्री टिफिनथलर ने नरवर किले की सुरक्षा के बारे में वर्णन करते हुए लिखा है कि - "नरवर किले को जीत पाना बेहद दुष्कर है। सुरक्षा के दृष्टि से इसका कोई जवाब नहीं"। इस शहर का ऐतिहासिक महत्व भी रहा है और इसे १२वीं शताब्दी तक नालापुरा के नाम से जाना जाता था। इस महल का नाम राजा नल के नाम पर रखा गया है जिनके और दमयंती की प्रेमगाथाएं महाकाव्य महाभारत में पढ़ने को मिलती हैं।
इस दुर्ग के पूर्वी ओर पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर लंबवत् एक दूसरा पहाड़ है, जिसे हजीरा पहाड़ कहते है, क्योंकि इसके पश्चिमी भाग के शिखर पर दो कलात्मक हजीरा निर्मित हैं। दुर्ग के दक्षिण–पश्चिम एवं उत्तर में लगी हुई सिंध एवं पूर्व से अहीर नदी ने चारो ओर से प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान कर दी है। नरवर दुर्ग में अनेक हिंदू मंदिर निर्मित है।