नागपुर प्रांत नागपुर | |||||||||
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ब्रिटिश भारत के प्रांत | |||||||||
11 दिसम्बर 1853–1861 | |||||||||
Flag | |||||||||
ब्रिटिश भारत के मध्य प्रांत का मानचित्र | |||||||||
History | |||||||||
• नागपुर राज्य पर ब्रिटिश कब्जा | 11 दिसम्बर 1853 | ||||||||
• सौगर और नेरबुड्डा क्षेत्र के साथ विलय | 1861 | ||||||||
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नागपुर प्रांत, ब्रिटिश भारत का एक प्रांत था, जिसमें वर्तमान मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्र शामिल थे। नागपुर शहर, प्रांत की राजधानी थी।
1861 में, नागपुर प्रांत को सौगर और नेरबुड्डा क्षेत्र के साथ मध्य प्रांत में विलय कर दिया गया था।[1]
नागपुर प्रांत का गठन 1853 में उत्तराधिकारी-विहीन महाराजा राघोजी तृतीय की मृत्यु के बाद हुआ था। अंग्रेजों ने नागपुर रियासत पर व्यपगत का सिद्धान्त के तहत कब्जा किया था। प्रांत में नागपुर के मराठा भोंसले महाराजा राज्य था, मराठा संघ के शक्तिशाली सदस्यों ने 18वीं शताब्दी में केंद्रीय और पूर्वी भारत के बड़े इलाकों पर विजय प्राप्त की थी।[2] 1818 में, तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध के समापन पर, भोसले महाराजा ने सहायक सन्धि की, और नागपुर, ब्रिटिश साम्राज्य के तहत एक रियासत बन गया। इसके बाद इसे भारत के गवर्नर जनरल के तहत एक आयुक्त द्वारा प्रशासित किया जाता था।
1861 में, नागपुर प्रांत को सौगर और नेरबुड्डा क्षेत्र के साथ विलय कर एक नया मध्य प्रांत और बरार, प्रशासनिक प्रभाग का गठन किया गया। नागपुर, भंडारा, चाडा, वर्धा और बालाघाट के जिले नए प्रांत में नागपुर संभाग के अन्तर्गत आये, जबकि दुर्ग, रायपुर और बिलासपुर जिले को मिला कर छत्तीसगढ़ संभाग बनाया गया। छिंदवाड़ा जिला, नेरबुड्डा संभाग में जोड़ा गया था।[3]