नेमिचन्द्र जैन (16 अगस्त 1919 -- 24 मार्च 2005) हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, समालोचक, नाट्य-समीक्षक, पत्रकार, अनुवादक, शिक्षक थे। वे भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में भी शामिल हुए थे। ये नटरंग प्रतिष्ठान के अध्यक्ष थे। वे 1959-76 राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में वरिष्ठ प्राध्यापक, 1976-82 जवाहरलाल नेरूह विश्वविद्यालय के कला अनुशीलन केन्द्र के फैलो एवं प्रभारी रहे। अंग्रेजी दैनिक ‘स्टेट्समैन’ के नाट्य-समीक्षक, ‘दिनमान’ तथा ‘नवभारत टाइम्स’ के स्तम्भकार एवं रंगमंच की विख्यात पत्रिका ‘नटरंग’ से संस्थापक संपादक रहे। नाट्य विशेषज्ञ के रूप में रूप, अमरीका, इंगलैंड, पश्चिम एवं पूर्वी जर्मनी, फ्रांस, यूगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया, पौलेंड आदि देशों की यात्रा की।
अंग्रेज़ी में एम. ए. की उपाधि प्राप्त करने के वाद वे देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी शामिल हुए थे। जीवन के सघर्ष में रास्ता चुनकर उन्होंने पिता की व्यापारिक विरासत को सँभालने से इंकार किया और शुजालपुर (उज्जैन) स्थित ‘शारदा शिक्षा सदन’ में नारायण विष्णु जोशी तथा गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ के साथ अध्यापन कार्य किया। उसी विद्यालय में, अध्यापन करते ‘मुक्तिबोध’ को उन्होंने मार्क्सवाद की ओर प्रेरित किया, जो उस समय तक दार्शनिक किस्म के लेखक थे। वहां से निकलकर वे कलकत्ता गये, जहाँ वे वामपंथी साप्ताहिक 'स्वाधीनता' से जुड़े। इसी दौरान 1944 में 'तार सप्तक' का प्रकाशन हुआ, जिसमें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
संगीत नाटक अकादमी के सहायक सचिव और कार्यकारी सचिव का दायित्व सँभालने के बाद उसकी एक इकाई के रूप में स्थापित होनेवाले राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय को व्यवस्था देने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वहाँ से सेवानिवृत्ति के बाद वे कला अनुशीलन केन्द्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फ़ेलो भी रहे। 1965 से निकलनेवाली रंगमंच की त्रैमासिकी 'नटरंग' के ख्यात संपादक नेमिचंद्र जैन ने जहां रंगदर्शन भारतीय नाट्य परपंरा रंगकर्म की भाषा और तीसरा पाठ जैसी कृतियों के माध्यम से नाट्यालाचन की सैद्धांतिकी निर्मित की, वहीं 'अधूरे साक्षात्कार' और जनान्तिक पुस्तकों के माध्यम से हिन्दी की औपन्यासिक आलोचना को व्यवस्था दी। 'बदलते परिप्रेक्ष्य', 'दृश्य-अदृश्य' जैसी पुस्तकें उनके गहरे सांस्कृतिक विमर्श की परिचायक हैं तो 'मेरे साक्षात्कार' उनके संघर्षों तथा उनके निर्द्वन्द्व विचारों का प्रामाणिक साक्ष्य है।
लंबी जीवन-यात्रा के दौरान अपने कार्यों में अन्यता सिद्ध करनेवाले नेमिचंद्र जैन को भारत के राष्ट्रपति की ओर से पद्मश्री अलंकरण, संगीत नाटक अकादमी द्वारा राष्ट्रीय सम्मान तथा दिल्ली हिन्दी अकादमी के शलाका सम्मान से विभूषित किया गया था।
इनकी प्रमुख पुस्तकों में अधूरे साक्षात्कार, रंगदर्शन, जनान्तिक, बदलते परिप्रेक्ष्य, रंग-परंपरा, दृश्य-अदृश्य, भारतीय नाट्य-परंपरा प्रमुख आलोचना पुस्तके हैं। इन्होंने 'मुक्तबोध रचनावली' एवं 'मोहन राकेश के संपूर्ण नाटक' नामक पुस्तकों का संपादन कार्य भी किया।