पर्चिनकारी

पोप क्लेमेण्ट अष्टम, पीट्रा ड्यूरे में

पीट्रा ड्यूरे (या पर्चिनकारी, दक्षिण एशिया में, या पच्चीकारी हिन्दी में), एक ऐतिहासिक कला है। इसमें उत्कृष्ट पद्धति से कटे, व जड़े हुए, तराशे हुए एवं चमकाए हुए रंगीन पत्थरों के टुकड़ो से पत्थर में चित्रकारी की जाती है। यह सजावटी कला है। इस कार्य को, बनने के बाद, एकत्र किया जाता है, एवं अधः स्तर पर चिपकाया जाता है। यह सब इतनी बारीकी से किया जाता है, कि पत्थरों के बीच का महीनतम खाली स्थान भी अदृश्य हो जाता है।[1] इस पत्थरों के समूह में स्थिरता लाने हेतु इसे जिग सॉ पहेली जैसा बानाया जाता है, जिससे कि प्रत्येक टुकडा़ अपने स्थान पर मजबूती से ठहरा रहे। कई भिन्न रंगीन पत्थर, खासकर संगमर्मर एवं बहुमूल्य पत्थरों का प्रयोग किया जाता है। यह प्रथम रोम में प्रयोग की दिखाई देती है 1500 के आसपास।[2] जो कि अपने चरमोत्कर्ष पर फ्लोरेंस में पहुँची।

एतमादौद्दौलाह का मकबरा, आगरा, भारत में मुगल बादशाह जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ द्वारा, अपने पिता मिर्जा़ घियास बेग के लिये बनवाया हुआ, जिन्हें एतमाद-उद्-दौलाह की उपाधि मिली हुई थी। यहां पर्चिनकारी का भरपूर प्रयोग दिखाई देता है। इस स्मारक को प्रायः रत्न-मंजूषा कहा जाता है। यह स्मारक ताजमहल का मूलरूप माना जाता है, क्योंकि ताजमहल के कई वास्तु तत्त्व यहाँ परखे गए थे।

पीट्रे ड्यूरे शब्द सख्त पत्थर का इतालवी बहुवचन है, या टिकाउ पाषाण

ताजमहल में पुष्पों का पर्चिनकारी में रूपांकन, जिसमें बहुमूल्य पत्थरों का प्रयोग किया हुआ है।

यह अपने आरम्भिक रूप में इटली में थी, परंतु बाद में 1600 शती में, इसके छोटे रूप यूरोप में, यहाँ तक कि मुगल दरबार में [[भारत पहुँचे।[3] जहाँ इस कला को नए आयाम मिले, स्थानीय/ देशी कलाकारों की शैली में, जिसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण ताजमहल में मिलता है। मुगल भारत में, इसे पर्चिनकारी या पच्चीकारी कहा जाता था, जिसका अर्थ है जड़ना।

टिप्पणी

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  1. "frozen-music com". मूल से 27 अप्रैल 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अप्रैल 2008.
  2. "Oxford University Press book blurb". मूल से 29 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अप्रैल 2008.
  3. "rockscape.cc". मूल से 19 मार्च 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अप्रैल 2008.

बाहरी कड़ियाँ

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