पाकिस्तान में हिन्दी

पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा उर्दू है। जो कि हिन्दी का ही व्याकरण उपयोग करती है। भारत और पाकिस्तान में भाषीय और संस्कृतिक समानताओं के कारण पाकिस्तान में हिन्दी का बहुत प्रभाव देखने को मिलता है। स्वतन्त्रता के पूर्व वर्तमान पाकिस्तानी क्षेत्रों में हिन्दी का बड़ी तेजी से विकास हो रहा था। किन्तु स्वतन्त्रता के बाद पाकिस्तान सरकार की एक सोची-समझी नीति के अन्तर्गत पूरे देश में हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन पर रोक लगा दी गई। वर्तमान में पाकिस्तान के बहुत ही कम संस्थानों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। यह बात समझ से परे है कि पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही हिन्दी को समाप्त करने के लिए चले अभियान पर अभी तक गहराई से अध्ययन क्यों नहीं हुआ ? पाकिस्तान में भाषा को लेकर सरकारी नीति प्रारम्भ से ही बहुत तर्कहीन रही है।

भारत के विभाजन के पहले पंजाब में हिन्दी बहुत लोकप्रिय थी। यशपाल, भीष्म साहनी, कृष्णा सोबती, देवेंद्र सत्यार्थी, उपेंद्रनाथ अश्क, नरेंद्र कोहली समेत हिन्दी के दर्जनों लेखक विभाजन से पहले मौजूदा पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के विद्यालयों-महाविद्यालयों में हिन्दी सीख चुके थे या उन्होंने अपना रचनाकर्म प्रारम्भ कर दिया था। लाहौर में 1947 तक कई हिन्दी प्रकाशन सक्रिय थे, जिनमें राजपाल एण्ड सन्स विशेष था। हिन्दी के प्रसार-प्रचार के लिए कई संस्थाएँ प्रतिबद्धता के साथ जुटी हुई थीं, जिनमें धर्मपुरा स्थित हिन्दी प्रचारिणी सभा के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। किन्तु 15 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान के विश्व के मानचित्र में आते ही हिन्दी 'शत्रुओं की भाषा' हो गयी। हिन्दी के प्रकाशन बन्द हो गये।

निःसन्देह तब पंजाब में उर्दू और पंजाबी का वर्चस्व था किन्तु हिन्दी ने अपने लिए स्थान बनाया हुआ था। लाहौर से आर्य गजट, प्रकाश तथा अमर भारत नाम से हिन्दी के समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे थे, जिनकी प्रसार संख्या हजारों में थी। विभाजन के बाद वहाँ के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में हिन्दी की कक्षाएँ लगनी समाप्त हो गईं, जबकि लाहौर के सरकारी महाविद्यालयों, फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज, खालसा कॉलेज, दयाल सिंह कॉलेज, डीएवी आदि में हिन्दी की स्नातकोत्तर स्तर तक की पढ़ाई की व्यवस्था थी। पंजाब के ही रावलपिण्डी में डीएवी तथा गॉर्डन कॉलेज में भी हिन्दी पढ़ी-पढ़ाई जा रही थी। वहाँ रहकर ही बलराज साहनी, भीष्म साहनी तथा आनन्द बख्शी ने हिन्दी जानी-समझी थी।

सिन्ध की राजधानी कराची, बलूचिस्तान और पाकिस्तान के शेष भागों में भी हिन्दी पढ़ी-लिखी जा रही थी। कराची विश्वविद्यालय का हिन्दी विभाग भी बहुत समृद्ध हुआ करता था। [1]

हिन्दी प्रचारिणी सभा पंजाब के बड़े नगरों जैसे लाहौर, सरगोधा, और रावलपिण्डी में नियमित रूप से हिन्दी भाषा में वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित करती थी। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति (वर्धा), सिन्ध में हिन्दी प्रचार का कार्य कर रही थी।

वर्तमान स्थिति

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हिन्दी फिल्मों और भारतीय टीवी धारावाहिकों के चलते हिन्दी के दर्जनों शब्द आम पाकिस्तानी की आम बोलचाल चाल में शामिल हो गये हैं। उनकी जुबान में अब जन्मतिथि, भूमि, विवाद, अटूट, विश्वास, आशीर्वाद, चर्चा, पत्नी, शान्ति जैसे शब्द सुने जा सकते हैं। इसका एक कारण यह है कि खाड़ी देशों में लाखों भारतीय-पाकिस्तानी एक साथ काम कर रहे हैं। दुबई, अबूधावी, रियाद, शारजहाँ जैसे शहरों में हजारों पाकिस्तानी भारतीय कारोबारियों की कम्पनियों, होटलों, रेस्त्राँ आदि में काम कर रहे हैं। इसके चलते वे हिन्दी के अनेक शब्द सीख लेते हैं। भारतीय समाज और संस्कृति को और अधिक गहनता से जानने की इच्छा के कारण भी अनेक पाकिस्तानी इण्टरनेट के माध्यम से हिन्दी सीख रहे हैं। सिन्ध प्रान्त और उसकी राजधानी कराची में हिन्दुओं की ठीक-ठाक संख्या है।

हालाँकि पाकिस्तान के हिन्दुओं की मातृभाषा हिन्दी नहीं है और वहाँ हिन्दी अध्यापन की व्यवस्था भी नहीं है। इसके बावजूद हिन्दी से उनका भावनात्मक जुड़ाव है और खासकर मध्यवर्गीय हिन्दू तो हिन्दी सीखते ही हैं। उनमें अपने धर्मग्रन्थों को हिन्दी में पढ़ने की लालसा रहती है। सिन्ध और कराची में रहने वाले हिन्दू सिन्धी के माध्यम से हिन्दी का अध्ययन कर रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों से इस्लामाबाद स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ मॉडर्न लैंग्वेज (एन॰यू॰एम॰एल॰) में हिन्दी की कक्षाएँ प्रारम्भ हुई हैं। वहाँ हिन्दी में डिप्लोमा कोर्स से लेकर पीएच॰डी॰ तक करने की सुविधा है और इसके लिए कुल पाँच प्राध्यापक हैं। पर उसमें गिनती के ही छात्र दाखिला लेते हैं। स्पष्ट है कि पाकिस्तान में हिन्दी के प्रति छिटपुट कोशिशें चाहे हों, पर वहाँ हिन्दी अब पहले वाली स्थिति में तो नहीं आ सकती।

संस्कृतिक प्रभाव

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बॉलीवुड फ़िल्मों और भारती टीवी धारावाहिकों के कारण पाकिस्तान में हिन्दी का बहुत प्रभाव है।[2] कई हिन्दी शब्द पाकिस्तान की आम बोल-चाल में शामिल हो गए हैं जैसे कि "विश्वास",[3] आशीर्वाद, चर्चा, पत्नी, शान्ति और इसके अलावा कई और शब्द शामिल हैं।[4][5] कई विशेषज्ञ इसको वैश्वीकरण की एक उदाहरण मानते हैं, जबकि कुछ का कहना है के यह एक सांस्कृतिक आक्रमण है या फिर हिन्दी-उर्दू विवाद को फिर से प्रारम्भ करने का प्रयास है।[4][3][6][7] पाकिस्तानी लोगों के अनुसार हिन्दी सीखने से उन्हें हिन्दी मीडिया देखने का अवसर मिलता है और इसके साथ ही वह भारत में चल रही सरगर्मियों के बारे में जान लेते हैं।[2] कुछ पहली पीढ़ी के लोग, जो स्वतन्त्रता के उपरान्त पाकिस्तान में गए थे, वे भी हिन्दी जानते हैं।[2] ब्रिटिश भारत में भी मौजूदा पाकिस्तान के क्षेत्र में हिन्दी बोली जाती थी।[8]

आधिकारिक उपयोग

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लाहौर में वाघा बॉर्डर क्रॉसिंग पर, भारतीय यात्रियों की सुविधा के लिए साइनबोर्ड में उर्दू / शाहमुखी और अंग्रेजी के साथ हिन्दी चिह्न होते हैं। पाकिस्तान प्रसारण निगम एक हिन्दी रेडियो सेवा संचालित करता है।

सन्दर्भ

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  1. पाकिस्तान में हिंदी की हत्या
  2. Singh, Rohinee (16 September 2015). "Hindi finds more and more takers in Pakistan". DNA India. अभिगमन तिथि 22 September 2015.
  3. "'Vishvas': A word that threatens Pakistan". The Express Tribune. 18 September 2012. अभिगमन तिथि 22 September 2015.
  4. Gangan, Surendra (30 November 2011). "In Pakistan, Hindi flows smoothly into Urdu". DNA India. अभिगमन तिथि 21 September 2015.
  5. Patel, Aakar (6 January 2013). "Kids have it right: boundaries of Urdu and Hindi are blurred". First Post. अभिगमन तिथि 22 September 2015.
  6. Ezdi, Asif (3 September 2012). "A silent invasion". The News. अभिगमन तिथि 22 September 2015.
  7. Tahir, Ali (23 January 2012). "'My children speak Hindi, what do I do?'". Pakistan Today. अभिगमन तिथि 22 September 2015.
  8. Hassan, Shiraz (10 April 2015). "Century-old Golra Railway station now a site for museum goers". Dawn. अभिगमन तिथि 22 September 2015.