पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो बी.पी.आर एण्ड डी | |||||
पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो का चिह्न | |||||
लक्ष्य | पुलिस बल का आधुनिकीकरण | ||||
संस्था जानकारी | |||||
---|---|---|---|---|---|
स्थापना | २८ अगस्त, १९७० | ||||
वैधानिक वयक्तित्व | सरकारी : सरकारी संस्था | ||||
अधिकार क्षेत्र | |||||
संघीय संस्था | भारत | ||||
शासी निकाय | भारत सरकार | ||||
सामान्य प्रकृति |
| ||||
प्रचालन ढांचा | |||||
मुख्यालय | नई दिल्ली, भारत | ||||
संस्था कार्यपालक | राजन गुप्ता[1] आई.पी.एस, महानिदेशक | ||||
मातृ संस्था | गृह मंत्रालय | ||||
प्रभाग | 4
अनुसंधान
विकास प्रशिक्षण दोष-सुधार प्रशासन | ||||
| |||||
जालस्थल | |||||
http://www.bprd.gov.in/ | |||||
पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (अंग्रेज़ी:ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एण्ड डवलपमेंट, लघु:बी.पी.आर एण्ड डी) की स्थापना पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के बारे में भारत सरकार के उद्देश्य को पूरा करने के लिए २८ अगस्त, १९७० को की गई थी।[2] अब यह बहुआयामी एवं परामर्शदाता संगठन है और इसके चार प्रभाग हैं। मूल रूप से संस्थान में दो प्रभाग होते थे: अनुसंधान एवं विकास प्रभाग। बाद में १९७३ में प्रशिक्षण प्रभाग जोड़ा गया। इसके बाद १९८३ में फॉरेन्ज़िक विज्ञान प्रभाग और १९९५ में दिष-सुधार प्रशासन प्रभाग जुड़े। इसके साथ साथ कुछ अन्य विभागों ने संस्थान के कुछ कार्य संभाले, जैसे १९७६ में अपराध विज्ञान एवं फॉरेन्ज़िक विज्ञान ने कुछ संबंधित कार्य संभाला। इस विभाग को बाद में लोक नायक जय प्रकाश नारायण राष्ट्रीय अपराध विज्ञान एवं फॉरेन्ज़िक विज्ञान नाम दिया गया। १९८६ में राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो और २००२ में फॉरेन्ज़िक विज्ञान निदेशालय ने संभाला।
11 जून 2019 को वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वी एस कौमुदी को पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरएंडडी) का महानिदेशक नियुक्त किया गया है।
वर्तमान में इस संस्थान के चार प्रभाग हैं।
अनुसंधान प्रभाग देश की पुलिस सेवाओं की आवश्यकताओं और समस्याओं का पता लगाकर विभिन्न शैक्षिक व पेशेवर संस्थाओं के सहयोग से इस क्षेत्र में अनुसंधान करता है। साथ ही साथ वह इस अनुसंधान के लिए प्रोत्साहन और मार्गदर्शन भी प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त वह देश के पुलिस बलों से संबंधित विभिन्न विषयों पर संगोष्ठियां परिसंवाद कार्यशालाएं व सम्मेलन आयोजित करता है ताकि तत्संबंध में राष्ट्रीय सर्वसम्मति कायम की जा सके और व्यावहारिक समाधान निकाला जा सके। केन्द्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में गठित एक स्थायी समिति को अनुसंधान के लिए उपयुक्त विषय चुनने व ये विषय व्यक्तियों या संस्थाओं के लिए निर्दिष्ट करने के कार्य में इस ब्यूरो को मार्गदर्शन प्रदान करने प्रौद्योगिकी विकास के संबंध में सिफारिश करने और पुलिस कार्य के बारे में प्रभावी योजनाएं व नीतियां निर्धारित करने का दायित्व सौंपा गया है।
समाज के विभिन्न वर्गों से प्राप्त अनुसंधान अध्ययन प्रस्तावों पर विचार किया जाता है और सुझाव सहमति प्राप्त करने के लिए ये प्रस्ताव स्थायी समिति के सदस्यों को प्रस्तुत किए जाते हैं। स्थायी समिति के सदस्यों की सहमति प्राप्त करने के बाद प्रायोजकता के लिए चयनित अनुसंधान विषयों के बारे में मानकों के अनुसार तीन समान किस्तों में धनराशि (बजट) आबंटित की जाती है। किए जा रहे अनुसंधान अध्ययनों के पर्यवेक्षण का दायित्व अनुसंधान प्रभाग के अनुभागों का है जो अध्ययन के विषय निर्दिष्ट करते हैं।
इस प्रभाग में भारत और अन्य देशों में पुलिस कार्य के लिए प्रयुक्त की जा रही विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तकनीकों के क्षेत्र में हो रहे विकास संबंधी जानकारी रखी जाती है। इसके अतिरिक्त यह नई कार्य पध्दतियों का भी अध्ययन करता है ताकि उपयुक्त उपकरण व तकनीकें अपनाई जा सकें। यह निरंतर ही नई प्रौद्योगिकी व वैज्ञानिक उत्पाद की जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है और उन्हें देश में अपनाए जाने की उपयुक्तता पर विचार करता है। यह बॉडी आर्मर, बुलेटप्रूफ वाहनों, शस्त्रों, मोटर वाहनों, इत्यादि जैसे उपकरणों साधनों के प्रयोग के बारे में भी मानक तय करता है। जब से राज्यों ने अपने शस्त्रों उपकरणों को उन्नत करने की योजना बनाई है। इस प्रभाग की प्रासंगिकता पहले की तुलना में काफी अधिक बढ ग़ई है।
पुलिस प्रशिक्षण के बारे में गठित समिति की सिफारिश के आधार पर प्रशिक्षण प्रभाग की स्थापना सितंबर १९७३ को की गई। इसकी स्थपना देश के पुलिस बलों की प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए केन्द्रीय पुलिस प्रशिक्षण निदेशालय के रूप में की गई। प्रशिक्षण प्रभाग के नियंत्रण में चंडीगढ क़ोलकाता और हैदराबाद स्थित तीन केन्द्रीय गुप्तचर प्रशिक्षण स्कूल भी हैं जो वैज्ञानिक अंवेषण के विषय में राज्य पुलिस अधिकारियों के लिए पाठयक्रम संचालित करते हैं। यह पुलिस प्रशिक्षण की भावी आवश्यकताओं का आकलन करके समूचे देश के प्रशिक्षण संगठनों के विद्यमान कार्यक्रमों का मूल्यांकन और उनके लिए प्रशिक्षण नीति एवं कार्यप्रणाली की भी रूपरेखा तैयार करता है।
यह प्रभाग राज्य पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों और अन्य शैक्षिक निकायों से संपर्क बनाए रखता है तथा विभिन्न विशिष्ट पाठयक्रमों का पाठय विवरण व प्रशिक्षण सामग्री तैयार एवं परिचालित करने में सहायता करता है ताकि उन्हें अपग्रेड करने में कोई कठिनाई न आ सके। प्रशिक्षण प्रभाग मित्र देशों के पुलिस अधिकारियों को भारत में प्रशिक्षण देने और भारतीय पुलिस अधिकारियों के लिए भारत व विदेश दोनों ही स्थानों में विदेशी प्रशिक्षकों की सहायता से विशिष्ट पाठयक्रम आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रशिक्षण प्रभाग भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों और अधीनस्थ अधिकारियों के लिए देश में प्रशिक्षण पाठयक्रम आयोजित कर रहा है।
गृह मंत्रालय ने पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो में दोष सुधार प्रशासन प्रभाग की स्थापना की। इस संबंध में उनके दिनांक 16 नवम्बर 1995 के पत्र 110181492-जीपीए का अवलोकन किया जा सकता है।
स्थपना विनिर्दिष्ट कार्यों के लिए की गई जिनमें कारागार प्रशासन को प्रभावित करने वाली समस्याओं का अध्ययन करना और इस विषय में अनुसंधान एवं प्रशिक्षण को बढावा देने का कार्य भी शामिल है। इस दायित्वों को पूरा करने के लिए प्रभाग न केवल अनुसंधान व प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रायोजित कर रहा है बल्कि लोक नीति की दृष्टि से जिन मुद्दों पर प्राथमिकता से ध्यान दिया जाना अपेक्षित है उनके संबंध में स्वयं अपनी भी परियोजनाएं संचालित कर रहा है। इस बारे में प्राथमिकता का निर्धारण विभिन्न मंचों जैसे कारागार सुधार संबंधी सलाहकार समिति राज्यों के कारागार विभाग के प्रमुखों की क्षेत्रीय बैठकों व कारागार अधिकारियों के गठन संपर्क पाठयक्रमों और सभी राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों के कारागार महानिदेशकों/महानिरीक्षकों व सचिव (कारागार) के अखिल भारतीय सम्मेलन में कायम की गई राष्ट्रीय सर्वसम्मति के आधार पर किया जाता है।