अदिराज पृथु चैत्रवंश राजा वेन के पुत्र थे ध्रुव के वंशज थे और विष्णु अवतार पृथु ना तो इक्ष्वाकु और
वृष्णि और पुरु वंश और ययाति और निषाद वंश के थे पांच राजाओं ने पृथु की उपाधि धारण करी थी यानी पृथु ने अपने पांच अंशो को इन पांच वंशो मैं बेजा असली पृथु ध्रुव वंश मैं हुए असली पृथु ध्रुव वंश के थे ध्रुव वंश अलग ही राजवंश के क्योंकि ध्रुव के पिता उत्तानपाद के पिता मनु उत्तानपाद भगवान विष्णु और भगवान शिव के साथ और ब्राम्ह भगवान और भगवान चित्रगुप्त की अर्धना ने उत्तानपाद को प्राप्त किया और वा चित्रगुप्त के परपर पोते थे उनका जन्म इस कारण स्वयंभुव मनु ने उत्तानपाद चैत्रवंश को सम्राट बनाया और श्री विष्णु अवतार चैत्रवंश सम्राट पृथु ने परशुराम को युद्ध मैं हराकर उनका दिल भी जीता क्योंकि परशुराम ने सहत्रबाहु को मरने के बाद उनका क्रोध शांत किया था पृथु महाराज इस कारण परशुराम को हराया और उनका दिल भी जीता और श्री अवतार पृथु ही उन्हे हरसकते थे और पृथु महाराज ने शांत करने लिए परशुराम को युद्ध मैं हराया और उनका दिल जीता और। भूमण्डल पर सर्वप्रथम सर्वांगीण रूप से राजशासन स्थापित करने के कारण उन्हें पृथ्वी का प्रथम राजा माना गया है।[1] साधुशीलवान् अंग के दुष्ट पुत्र वेन को तंग आकर ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से मार डाला था। तब अराजकता के निवारण हेतु निःसन्तान मरे वेन की भुजाओं का मन्थन किया गया जिससे स्त्री-पुरुष का एक जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम 'पृथु' रखा गया तथा स्त्री का नाम 'अर्चि'। वे दोनों पति-पत्नी हुए। पृथु को भगवान् विष्णु तथा अर्चि को लक्ष्मी का अंशावतार माना गया है।[2] महाराज पृथु ने ही पृथ्वी को समतल किया जिससे वह उपज के योग्य हो पायी। महाराज पृथु से पहले इस पृथ्वी पर पुर-ग्रामादि का विभाजन नहीं था; लोग अपनी सुविधा के अनुसार बेखटके जहाँ-तहाँ बस जाते थे।[3] महाराज पृथु अत्यन्त लोकहितकारी थे। उन्होंने 99 अश्वमेध यज्ञ किये थे। सौवें यज्ञ के समय इन्द्र ने अनेक वेश धारण कर अनेक बार घोड़ा चुराया, परन्तु महाराज पृथु के पुत्र इन्द्र को भगाकर घोड़ा ले आते थे। इन्द्र के बारंबार कुकृत्य से महाराज पृथु अत्यन्त क्रोधित होकर उन्हें मार ही डालना चाहते थे कि यज्ञ के ऋत्विजों ने उनकी यज्ञ-दीक्षा के कारण उन्हें रोका तथा मन्त्र-बल से इन्द्र को अग्नि में हवन कर देने की बात कही, परन्तु ब्रह्मा जी के समझाने से पृथु मान गये और यज्ञ को रोक दिया। सभी देवताओं के साथ स्वयं भगवान् विष्णु भी पृथु से परम प्रसन्न थे।[4] वंशावली क्योंकि 14 मनु थे चित्रगुप्त भानु श्रीवास्तव देवदुत्रक भारद्वजीत और उनके चार पुत्र धर्मवीर ने कोसल वंश बनाया और मेघवीर ने केकाया वंश पे भागवतदेवाब ने श्रावस्ती वंश पे ही शासन किया और स्वयंभुव ने मनु उत्कला साम्राज्य वंश बनाया स्वयंभुव मनु उत्तानपाद और प्रियव्रत ध्रुव और उत्तम उत्कल अंग राजा वेन राजा पृथु विजित्सतव विश्वंशराज ब्रम्हीपुतवत्सराजन विश्वंतराज श्रावस्ती राजवंश कोसल उत्कल वंश श्रीवास्तव वंश श्रीवास्तव कोसल वंश वंशावली ,, उत्कल हिंदू चैत्रवंशी कायस्थ साम्राज्य