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फ़िरंगी महल | |
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स्थान | लखनऊ |
निर्माण | सतरहवीं सदी |
फ़िरंगी महल लखनऊ में विक्टोरिया रोड और चौक के बीच स्थित है। इस भव्य स्मारक का नाम फ़िरंगी नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसके प्रथम मालिक यूरोप से संबंध रखते थे। यह एक स्त्य है कि मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल में अन्य फ्रांसीसी व्यापारियों के साथ यहाँ रहने वाले नील (Niel) नामक एक फ्रांसीसी इमारत का पहला मालिक था। यह एक शानदार निवास था, परन्तु यह एक विदेशी स्वामित्व में था और इसी कारण से एक शाही फ़रमान के तहत सरकार द्वारा इसे ज़ब्त किया गया था।
इस इमारत की क़ुरक़ी के बाद इस्लामी मामलों पर औरंगज़ेब के सलाहकार मुल्ला असद बन क़ुतुब शहीद और उनके भाई मुल्ला असद बन क़ुतुबुद्दीन शहीद के क़ब्ज़े में दे दी गई थी। इन दो भाइयों ने इस आवासीय केंद्र को एक भव्य इस्लामी संस्था में बदल दिया था जिसकी तुलना आम तौर से इंग्लैंड के कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से की जाती थी। महात्मा गांधी ने भी फिरंगी महल में कुछ दिन बिताए और वह कमरा जहाँ वे रुके थे उनकी याद में समर्पित किया गया है। फ़िरंगी महल इस्लामी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण और वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। [1]
जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है, गांधी जी ने कुछ समय फ़िरंगी महल में बताया था। जब वह यहाँ आए थे, वो अपनी बकरी भी साथ लाए थे। फ़िरंगी महल इमारत और आसपास के मुसलमानों ने उनके सम्मान में कुछ दिनों के लिए मांस का उपयोग रोक दिया था। फिरंगी महल ही के मौलवी अब्दुल बारी ने सन् 1920 में पहली बार गांधी जी को हिंदुओं और मुसलमानों का संयुक्त नेता घोषित किया था। मौलवी साहब हिंदुओं और मुसलमानों की एकता और स्वतंत्रता आंदोलन से मुसलमानों को जोड़ने के समर्थक थे।.गांधी जी के अलावा स्वतंत्रता आंदोलन के अन्य नेताओं जैसे सरोजिनी नायडू और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी फ़िरंगी महल का दौरा किया था और यहां के विद्वानों से सलाह ली थी। फ़िरंगी महल के उलेमा ख़िलाफत आंदोलन के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने अंग्रेज़ सरकार के ख़िलाफ़ जिहाद का फ़तवा जारी किया था जिसकी वजह से कई विद्वानों को फांसी की सज़ा दी गई थी। [2]