बंगलौर-मैसूर द्रुतगति मार्ग १११ किलोमीटर लम्बा चार से छह लेन का एक निजी टोल-टैक्स युक्त द्रुतगति मार्ग है जो भारत के कर्णाटक राज्य के दो प्रमुख नगरों बंगलौर और मैसूर को जोड़ता है। इसका निर्माण नन्दी इन्फ़्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर ऐण्टरप्राइज़ेस द्वारा किया जा रहा है जो इसे बिल्ड (निर्माण)-ओन (स्वामित्व)-ऑपरेट (संचालन)-ट्रान्स्फ़र (हस्तान्तरण) आधार पर बनाया जा रहा है।[1][2]
१९९५ में मैसाचुसेट्स के तत्कालीन राज्यपाल विलियम वेल्ड द्वारा प्रायोजित भारत में अपने व्यापार मिशन के संयोजन में एक ज्ञापन सहमति पर हस्ताक्षर किए थे। हस्ताक्षर करने वाली पार्टियाँ थीं कन्सोर्टियम सदस्य, भारतीय अधिकारी, कर्णाटक के तत्कालीन मुख्यमन्त्री देवीगौड़ा और अमेरिकी अधिकारी। इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने के बाद इस परियोजना का मार्ग प्रशस्त हुआ। कन्सोर्टियम नन्दी इन्फ़्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर ऐण्टरप्राइज़ेस में कल्यानी ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज़, वीएचबी इण्टरनैश्नल लिमिटॅड और एसएबी इण्टरनैश्नल लिमिटॅड हैं जिनके द्वारा बंगलौर-मैसूर द्रुतगति मार्ग का निर्माण किया जाना है।
यह परियोजना योजना बनाए जाने के समय से ही विवादों में है। इस परियोजना को कुछ समय के लिए निलम्बित कर दिया गया जब कर्णाटक में जनता दल के देवीगौड़ा और जन कुमारास्वामी की सरकार सत्ता में आई। देवीगौड़ा का आरोप था कि यह देश की सबसे बड़ी धोखाधड़ी है जिसे रोका जाना चाहिए।[3]
दक्षिण बंगलौर में यातायात जाम की समस्या बहुत गम्भीर है और इसका एक प्रमुख कारण है वे वाहन जो दक्षिण बंगलौर से होते हुए मैसूर और अन्य नगरों को जाते हैं। इस द्रुतगति मार्ग की कल्पना इसी उम्मीद में की गई थी कि इस जाम की समस्या से बंगलौर को निजात मिल सके।
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अनुपस्थित (मदद); |accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) (अंग्रेज़ी)