विशेष निवासक्षेत्र | |
---|---|
भारत ; नेपाल | |
भाषाएँ | |
नेपाली , मैथिली, हिंदी, मारवाड़ी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, बंगाली और कोंकणी[1] |
बनिया राजशाही एक भारत की एक जाति है।[2]
नेपाली एवंम् भारतीय समाज की चतुष्वर्णीय व्यवस्था में असंख्य बनिया उपजातियों, जैसे :- राजशाही, राघव, भाटी, अग्रवाल, जायसवाल, गुप्ता, मेहता, केजरीवाल, गहोई, महेश्वरी बिश्नोई, बरनवाल, आदि को वैश्य वर्ण का सदस्य माना जाता है।
गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी के अन्त में प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ था। जिस प्राचीनतम गुप्त राजा के बारे में पता चला है वो है श्रीगुप्त। हालांकि प्रभावती गुप्त के पूना ताम्रपत्र अभिलेख में इसे 'आदिराज' कहकर सम्बोधित किया गया है। श्रीगुप्त ने गया में चीनी यात्रियों के लिए एक मंदिर बनवाया था जिसका उल्लेख चीनी यात्री इत्सिंग ने ५०० वर्षों बाद सन् ६७१ से सन् ६९५ के बीच में किया। पुराणों में ये कहा गया है कि आरंभिक गुप्त राजाओं का साम्राज्य गंगा द्रोणी, प्रयाग, साकेत (अयोध्या) तथा मगध में फैला था। श्रीगुप्त के समय में महाराजा की उपाधि सामन्तों को प्रदान की जाती थी, अतः श्रीगुप्त किसी के अधीन शासक था। प्रसिद्ध इतिहासकार के. पी. जायसवाल के अनुसार श्रीगुप्त भारशिवों के अधीन छोटे से राज्य प्रयाग का शासक था। चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार मगध के मृग शिखावन में एक मन्दिर का निर्माण करवाया था। तथा मन्दिर के व्यय में २४ गाँव को दान दिये थे।
उत्तर वैदिककाल के उल्लेखों में पण, पण्य, पणि जैसे शब्द आए हैं। पण या पण्य का अर्थ हुआ वस्तु, सामग्री, सम्पत्ति। बाद में पण का प्रयोग मुद्रा के रूप में भी हुआ। पणि से तात्पर्य व्यापारी समाज के लिए भी था। पणि उस दौर के महान व्यापारिक बुद्धिवाले लोग थे। पणियों की रिश्तेदारी आज के बनिया शब्द से है। पणि (फिनीशियन) आर्यावर्त में व्यापार करते थे। उनके बड़े-बड़े पोत चलते थे। वे ब्याजभोजी थे। आज का 'बनिया' शब्द वणिक का अपभ्रंश ज़रूर है मगर इसके जन्मसूत्र पणि में ही छुपे हुए हैं। दास बनाने वाले ब्याजभोजियों के प्रति आर्यों की घृणा स्वाभाविक थी। आर्य कृषि करते थे और पणियों का प्रधान व्यवसाय व्यापार और लेन-देन था। पणिक या फणिक शब्द से ही वणिक भी जन्मा है। आर्यों ने पणियों का उल्लेख अलग अलग संदर्भों में किया है मगर हर बार उनके व्यापार पटु होने का संकेत ज़रूर मिलता है। हिन्दी में व्यापार के लिए वाणिज्य शब्द भी प्रचलित है। वाणिज्य की व्युत्पत्ति भी पण् से ही मानी जाती है। यह बना है वणिज् से जिसका अर्थ है सौदागर, व्यापारी अथवा तुलाराशि। गौरतलब है कि व्यापारी हर काम तौल कर ही करता है। वणिज शब्द की व्युत्पत्ति आप्टे कोश के मुताबिक पण+इजी से हुई है। इससे ही बना है “वाणिज्य” और “वणिक” जो कारोबारी, व्यापारी अथवा वैश्य समुदाय के लिए खूब इस्तेमाल होता है। पणिक की वणिक से साम्यता पर गौर करें। बोलचाल की हिन्दी में वणिक के लिए बनिया शब्द कहीं ज्यादा लोकप्रिय है जो वणिक का ही अपभ्रंश है इसका क्रम कुछ यूं रहा- वणिक, बणिक, बनिआ, बनिया।[2][3]