बल्लभगढ़ Ballabhgarh | |
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बल्लभगढ़ रेल स्टेशन | |
निर्देशांक: 28°20′20″N 77°19′16″E / 28.339°N 77.321°Eनिर्देशांक: 28°20′20″N 77°19′16″E / 28.339°N 77.321°E | |
ज़िला | फरीदाबाद ज़िला |
प्रान्त | हरियाणा |
देश | भारत |
जनसंख्या (2001) | |
• कुल | 2,14,894 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हरियाणवी, पंजाबी, हिन्दी |
समय मण्डल | IST (यूटीसी+5:30) |
बल्लभगढ़ (Ballabhgarh) भारत के हरियाणा राज्य के फरीदाबाद ज़िले में स्थित एक नगर और तहसील है।[1][2][3]
बल्लभगढ़ हरियाणा राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग के फरीदाबाद ज़िले में एक शहर और तहसील का नाम है। दिल्ली से लगभग ३० किमी दूर स्थित यह शहर भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (ऍन सी आर) का हिस्सा है। बल्लभगढ़ में एक जाट रियासत थी जिसकी स्थापना सन् 1739 में बलराम सिंह ने की थी। यहाँ पर प्रसद्ध नाहर सिंह महल भी खड़ा है और इसका निर्माण भी बलराम सिंह ने ही करवाया था। गुड़गांव, फरीदाबाद और बहादुरगढ़ के बाद मेट्रो कनेक्टिविटी पाने के लिए हरियाणा में बल्लभगढ़ चौथा शहर है।[4]
बल्लभगढ़ का राष्ट्रीय संग्रामों में एक विशेष स्थान रहा है। जब महाराजा सूरजमल के पुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने दिल्ली पर चढाई की तो उन्हे लाल किले के दरवाजे को तोडने में परेशानी हुई दरवाजे पर लगी बडी बडी कीलों से दरवाजा तोडने के लिए लगाए गए हाथियों के माथे लहु लुहान हो गए थे तब महाराजा जवाहर सिंह के मामा राजा बलराम सिंह ने स्वयं को हाथियों के माथे पर बांधने के लिए कहा जिससे लाल किले के दरवाजे तो टूट गए पर राजा बलराम सिंह शहीद हो गए परंतु उन्ही की वजह से महाराजा जवाहर सिंह ने दिल्ली फतह की। उनके मित्र सूरज मल (भरतपुर राज्य के नरेश) ने उनके पुत्रों को फिर बल्लभगढ़ की गद्दी दिलवाई। बाद में जब अफ़ग़ानिस्तान से अहमद शाह अब्दाली ने हमला किया तो बल्लभगढ़ ने उसका सख़्त विरोध किया, लेकिन ३ मार्च १७५७ को हराया गया। और भी आगे चलकर बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह (१८२३-१८५८) ने १८५७ की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और उसके लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें विद्रोह कुचलने के बाद सन् १८५८ में फांसी दी।[5]