बसंती बिष्ट | |
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Basanti Bisht performing Jagar | |
जन्म |
1953 |
राष्ट्रीयता | Indian |
कार्यकाल | 1998– present |
गृह-नगर | Luwani, Dewal tehsil, Chamoli, Uttarakhand |
प्रसिद्धि का कारण | Uttarakhandi folk singer; Grade "A" artiste of Akashwani and Doordarshan; First professional woman singer of the Jagar folk form of Uttarakhand. |
पुरस्कार |
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बसंती बिष्ट (जन्म : ) भारत की एक लोकगायिका हैं जो उत्तराखण्ड राज्य के घर-घर में गाए जाने वाले मां भगवती नंदा के जागरों के गायन के लिये प्रसिद्ध हैं। भारत सरकार ने 26 जनवरी 2017 को उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया है।[1]
गांव और पहाड़ में महिलाओं के मंच पर जागर गाने की परंपरा नहीं थी। मां ने उन्हें सिखाया था लेकिन बाकि कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। वह गीत-संगीत में तो रुचि लेती लेकिन मंच पर जाकर गाने की उनकी हसरत सामाजिक वर्जनाओं के चलते पूरी नहीं हो सकी। शादी के बाद उनके पति ने उन्हें प्रोत्साहित तो किया लेकिन समाज इतनी जल्दी बदलाव के लिए तैयार नहीं था। इसी बीच करीब 32 वर्ष की आयु में वह अपने पति रणजीत सिंह के साथ पंजाब चली गईं।
पति ने उन्हें गुनगुनाते हुए सुना तो विधिवत रूप से सीखने की सलाह दी। पहले तो बसंती तैयार नहीं हुई लेकिन पति के जोर देने पर उन्होंने सीखने का फैसला किया। हारमोनियम संभाला और विधिवत रूप से सीखने लगी।
उत्तराखण्ड आन्दोलन के फलःस्वरुप मुजफ्फरनगर, खटीमा और मसूरी गोलीकांड की पीड़ा को बसंती बिष्ट ने गीत में पिरोया और राज्य आंदोलन में कूद पड़ी। अपने लिखे गीतों के जरिये वह लोगों से राज्य आंदोलन को सशक्त करने का आह्वान करती। राज्य आंदोलन के तमाम मंचों पर वह लोगों के साथ गीत गाती। इससे उन्हें मंच पर खड़े होने का हौसला मिला।
40 वर्ष की आयु में पहली बार वह गढ़वाल सभा के मंच देहरादून के परेड ग्राउंड में पर जागरों की एकल प्रस्तुति के लिए पहुंची। अपनी मखमली आवाज में जैसे ही उन्होंने मां नंदा का आह्वान किया पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। दर्शकों को तालियों ने उन्हें जो ऊर्जा और उत्साह दिया, वह आज भी कायम है। उन्हें खुशी है कि उत्तराखंड के लोक संगीत को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है।[2]बसंती बिष्ट ने मां नंदा के जागर को उन्होंने स्वरचित पुस्तक ‘नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा’ में संजोया है। [3]